अंतर्राष्ट्रीय
19-Jun-2025
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कई बार पहले भी हो चुकी उन्हें मारने की कोशिश तेहरान(ईएमएस)। अमेरिका का दो टूक कहना है कि ईरान के शीर्ष नेता अयातुल्ला अली खामेनेई उसके टारगेट पर हैं। इसके अलावा इजरायल पहले ही उन्हें मारने की धमकियां दे रहा है। इस तरह इजरायल और ईरान के बीच जारी जंग अब खामेनेई पर आकर अटक गई है। बताया जा रहा हैं कि उन्हें भी शिकार बनाया जा सकता है। धमकी के बाद ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई को तेहरान के एक सीक्रेट बंकर में छिपा दिया गया हैं। लेकिन हम आपको बात दें कि मौत के साए में जी रहे खामेनेई के लिए जान का खतरा कोई नई बात नहीं है। इस्लामिक क्रांति के दो साल बाद ही 1981 में खामेनेई पर जानलेवा हमला हुआ था। ख़ामेनेई एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे कि तभी उनके नजदीक रखे एक टेप रिकॉर्डर में ब्लास्ट हुआ। विस्फ़ोट में ख़ामेनेई का दायां हाथ पैरलाइज़ हो गया और एक कान के सुनने की क्षमता कम हो गई। लेकिन इसके बावजूद भी अपनी इन शारीरिक कमजोरियों के साथ ही ईरान की सत्ता के सूत्र मजबूती से संभाले हुए हैं। ईरान को एक मजहबी तानाशाही में लाने में खामेनेई और उनके गुरु रोहेल्ला खुमैनी का बड़ा योगदान माना जाता है। खामेनेई का जन्म 1939 में ईरान के नजफ में हुआ था। उनके पिता जावेद खामेनेई एक मौलवी थे। जावेद के कुल 8 बच्चों में दूसरे नंबर के खामेनेई थे। वह काफी कम उम्र में ही मौलवी बन गए थे। उनके दो और भाई भी मौलवी हैं। उनसे छोटे भाई हादी खामेनेई एक अखबार के संपादक भी हैं और मौलवी भी हैं। खामेनेई के पिता अजरबैजानी मूल के थे और ईस्ट अजरबैजान प्रांत के खामानेह के रहने वाले थे। इसी खामानेह के नाम पर परिवार ने अपना सरनेम ही खामेनेई चुन लिया। 1979 की ईरानी इस्लामिक क्रांति में खामेनेई ने रुहल्ला खुमैनी के नेतृत्व में हिस्सा लिया था। फिर शाह मोहम्मद रजा पहलवी जब सत्ता से बेदखल किए गए तब खुमैनी का दौर आया। वह खुमैनी के इतने करीब आ गए कि उन्हें 1981 में राष्ट्रपति का पद मिल गया। रुहल्ला खुमैनी तब ईरान के शीर्ष नेता थे। 1989 में जब खुमैनी का निधन हुआ, तब खामेनेई ने उनकी जगह ली और तब से राष्ट्रपति कोई और बनता है। फिलहाल देश के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान हैं। राष्ट्रपति की सभी जरूरी शक्तियों को शीर्ष नेता के नाम पर ट्रांसफर कर दिया गया। इस तरह वह ईरान में सर्वशक्तिमान हैं। यही नहीं सेना के सुप्रीम कमांडर भी हैं। नीतिगत मामलों से लेकर सेना तक के अहम मसलों में भी उनका ही निर्णय अंतिम होता है। इस तरह संविधान से मिली ताकत और इस्लाम के नाम पर मजहबी आधार के चलते खामेनेई ईरान में बेहद ताकतवर शख्स हैं। माना जाता है कि राष्ट्रपति भी एक तरह से उनका रबर स्टांप ही होता है। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि 1981 में देश की सत्ता संभालने के बाद से अब तक अयातुल्ला अली खामनेई ने कोई भी विदेश दौरा नहीं किया है यानी वह ईरान से बाहर निकले ही नहीं हैं। आशीष/ईएमएस 19 जून 2025