-ट्रम्प–मुनीर व्हाइट हाउस मुलाक़ात के भीतर की कहानी वॉशिंगटन,(ईएमएस)। इज़राइल‑ईरान युद्ध की आहट के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर की हालिया व्हाइट हाउस बैठक ने कूटनीतिक हलकों में हलचल बढ़ा दी है। बैठक, जो एक अनौपचारिक लंच के रूप में आयोजित की गई, पर अब पूर्व पेंटागन अधिकारी और अमेरिकन एंटरप्राइज़ इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ विश्लेषक माइकल रूबिन के खुलासों ने नई बहस छेड़ दी है। दरअसल रूबिन का दावा है कि ट्रम्प प्रशासन पाकिस्तान को “पसंदीदा मित्र” बताकर रणनीतिक सौदा करना चाहता है। उनके अनुसार, यदि अमेरिका‑इज़राइल गठजोड़ ईरान के परमाणु ठिकानों पर निर्णायक कार्रवाई करता है, तो वहां बची‑खुची संवेदनशील परमाणु सामग्री को पाकिस्तान में अस्थायी रूप से रखा जा सकता है। रुबिन ने कहा है कि ट्रम्प पाकिस्तान को दोस्त इसलिए कह रहे हैं क्योंकि उन्हें उस दोस्ती से फ़ायदा उठाना है। इसी के साथ रूबिन ने यह भी जोड़ा कि पाकिस्तान आज स्वतंत्र नहीं, बल्कि चीन का प्रॉक्सी बन चुका है। ऐसे में संभव है कि मुनीर ने व्हाइट हाउस में बीजिंग के संदेश भी पहुँचाए हों। चीन की सबसे बड़ी चिंता फारस की खाड़ी से होने वाली तेल आपूर्ति पर संभावित बाधा है; लंबा युद्ध उसकी अर्थव्यवस्था को अमेरिका से कहीं ज़्यादा चोट पहुँचा सकता है। रूबिन आगाह करते हैं कि अमेरिका को पाकिस्तान को एक डॉलर भी नहीं देना चाहिए, क्योंकि वह अपने स्वार्थ में ही साथ देगा। दूसरी ओर, यदि वाकई ईरान का परमाणु जखीरा हटाना पड़ा, तो अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा‑तंत्र को किसी विश्वसनीय तीसरे देश की आवश्यकता होगी। क्या यह भूमिका पाकिस्तान निभाएगा या कोई और—अभी स्पष्ट नहीं, पर ट्रम्प‑मुनीर लंच ने विकल्पों के दरवाज़े ज़रूर खोल दिए हैं। दबाव और ‘दोस्ती’ का दोहरा फार्मूला रूबिन का मानना है कि ट्रम्प, जनरलों से प्रभावित रहते हैं; लिहाज़ा पाकिस्तान के निर्वाचित नेतृत्व से अधिक मुनीर उन्हें उपयोगी लगते हैं। हो सकता है निजी मुलाक़ात में ट्रम्प ने कड़वी चेतावनी दी हो और सार्वजनिक मंच पर दोस्ती की मिठास दिखाई हो। रणनीतिक लिहाज़ से क्यों अहम है पाकिस्तान 900किमी सीमा— पाकिस्तान‑ईरान बॉर्डर अमेरिकी सेनाओं को ज़मीनी या हवाई अभियानों के लिए अग्रिम आधार दे सकता है। एयरस्पेस एक्सेस— अफ़ग़ानिस्तान युद्ध की तरह, अमेरिकी बमवर्षक और ड्रोन ईरान के पूर्वी मोर्चे पर अधिक सहजता से पहुँच पाएंगे। लॉजिस्टिक नेटवर्क— कराची और ग्वादर बंदरगाहों के माध्यम से उभरता नौसैनिक सहयोग अमेरिका को मध्य‑पूर्व में लचीलापन देगा। पाकिस्तान के लिए दुविधा ट्रम्प ने हाल में इस्लामाबाद को पसंदीदा मित्र कहा है। कूटनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यही सौहार्दपूर्ण बयान आगे चलकर राजनयिक दबाव में बदल सकता है। सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान चीन एवं घरेलू राजनीति के बीच संतुलन बना पाएगा, या वाशिंगटन की रणनीतिक माँगों के आगे झुकना पड़ेगा? हिदायत/ईएमएस 19जून25