जेनेवा,(ईएमएस)। ईरान-इजराइल के बीच भीषण जंग जारी है। इस दौरान इजराइल ने ईरान के कई सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया है। जवाब में ईरान ने भी मिसाइल से हमला कर इजराइल में तबाही मचाई है। बताया जा रहा है कि इजराइल ने ईरान के नतांज और फोर्दो जैसे संवेदनशील परमाणु केंद्रों को निशाना बनाने की कोशिश की । हालांकि, फोर्दो केंद्र, जो जमीन के काफी अंदर और पहाड़ियों के बीच है, अब तक वह सुरक्षित है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इजराइल अब इस केंद्र को नष्ट करने के लिए अमेरिका से अत्याधुनिक बम मिलने का इंतजार कर रहा है। जो इस को भेद सके। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या किसी देश के परमाणु ठिकानों पर हमला अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत वैध है? इस पर 1977 में जेनेवा कनवेंशन में जोड़े गए आर्टिकल 56 का जिक्र जरूरी होता है। यह नियम युद्ध के दौरान नागरिकों की रक्षा के लिए बनाया गया था और इसमें खास तौर पर उन ठिकानों का उल्लेख है जहां से भारी नुक़सान हो सकता है, जैसे डैम, डाइक और परमाणु संयंत्र। नियम में लिखा है कि अगर किसी हमले से रेडियोधर्मी विकिरण फैले और नागरिकों की जान को खतरा हो, तो ऐसे ठिकानों पर हमला नहीं किया जाना चाहिए। इस नियम में अपवाद भी है। अगर किसी परमाणु संयंत्र का इस्तेमाल सैन्य गतिविधियों के लिए हो रहा हो और उसे निष्क्रिय करना जरूरी हो, तो हमला किया जा सकता है, लेकिन इसकी शर्त है कि उस हमले से होने वाला सैन्य लाभ नागरिकों को होने वाले नुकसान से ज्यादा होना चाहिए। इजराइल का दावा है कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार बना रहा है और इन हमलों का मकसद आत्मरक्षा है। दूसरी ओर ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह शांतिपूर्ण बता रहा है और इजराइली हमलों को अपनी संप्रभुता पर हमला बता रहा है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि अमेरिका, इजराइल और भारत जैसे देशों ने जेनेवा कनवेंशन के अतिरिक्त प्रोटोकॉल को मान्यता नहीं दी है। इसलिए वे इन नियमों से बाध्य नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मामले में बंटा हुआ है और अब तक कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई है, जिससे नियमों के पालन की अनदेखी साफ झलकती है। सिराज/ईएमएस 22 जून 2025