नई दिल्ली (ईएमएस)। दिल्ली की आबादी अब 100 गुना बढ़ चुकी है, लेकिन ड्रेनेज यानी पानी निकासी का कोई नया मजबूत प्लान नहीं बना। आखिरी बार 1976 में ड्रेनेज का मास्टर प्लान बना था। इसके बाद 2015-16 में आईआईटी दिल्ली को नया ड्रेनेज प्लान बनाने की ज़िम्मेदारी दी गई, लेकिन उसमें भी कई ज़रूरी बदलाव नहीं हो पाए। दिल्ली में जो भी काम हो रहे हैं, वो बस अस्थाई राहत देने के लिए हैं। असली जरुरत एक टिकाऊ और स्मार्ट अर्बन सिस्टम बनाने की है, जो अब स्मार्ट सिटी योजना के तहत तैयार हो रहा है। दिल्ली की बड़ी समस्या यह है कि यमुना के एक तिहाई हिस्से में अनाधिकृत कॉलोनियां बस गई हैं, जिससे पानी का रास्ता रुक गया है। पूरे शहर में लगभग 3740 किलोमीटर लंबी ड्रेन हैं, लेकिन उनकी सफाई और रखरखाव ठीक से नहीं हो रहा। ट्रैफिक पुलिस ने ऐसे 50 स्थान चिह्नित किए हैं, जहां बारिश के बाद पानी भरने से ट्रैफिक रुक जाता है। इसका हल तभी मिलेगा जब हम कंप्यूटर और तकनीक से काम की निगरानी करेंगे। बारिश का पानी हमारे लिए एक संपत्ति (एसेट) है, लेकिन उसे हम व्यर्थ जाने दे रहे हैं। दिल्ली में 1200 से ज्यादा वॉटर बॉडी (जलाशय) हैं, लेकिन हमने उन्हें नजरअंदाज कर दिया है। 800 से ज्यादा जलाशयों पर अवैध कब्जे हो चुके हैं। हमें इस पानी को फिल्टर करना चाहिए और दोबारा इस्तेमाल (सर्कुलर वॉटर मैनेजमेंट) की दिशा में काम करना चाहिए। 1911 में जब दिल्ली बसी थी, तब शहर की रीढ़ उसका ड्रेनेज सिस्टम था। आज जरुरत है कि सरकार ड्रेनेज को लेकर एकजुट और साझा सोच अपनाए। फिलहाल ड्रेनेज की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी, नगर निगम और डीडीए जैसी कई एजेंसियों में बांटी हुई है, जिससे सही काम नहीं हो पाता। पुराने इंजीनियरों को रियल टाइम तकनीक का अनुभव नहीं है और हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी नई तकनीक का सही इस्तेमाल नहीं कर पा रहे, जबकि हांगकांग जैसे एशियाई देश इसका अच्छा उपयोग कर रहे हैं। अब वक्त है कि हम नई तकनीक अपनाएं और एक मजबूत, टिकाऊ ड्रेनेज सिस्टम बनाएं ताकि दिल्ली हर साल पानी और जलभराव की समस्या से न जूझे। अजीत झा/ देवेन्द्र/नई दिल्ली/ईएमएस/26/जून/2025
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