बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर, माफी मांगने व मुआवजा देने की मांग नई दिल्ली,(ईएमएस)। भारत की कोल्हापुरी चप्पल को लाखों रुपए में बेच कर मुनाफा कमा रही इटली की फैशन लक्जरी ब्रांड फंस गई है। कोल्हापुरी चप्पलों के अनधिकृत इस्तेमाल का आरोप लगाते हुए प्राडा के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में प्राडा पर भारतीय कारीगरों के डिजाइन की नकल करने का आरोप लगाया है और प्राडा से कारीगरों को मुआवजा देने के आदेश की मांग की गई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मामला तब सुर्खियों में आया जब प्राडा ने हाल ही में अपने एक फैशन शो में अंगूठे वाली चप्पलों का कलेक्शन पेश किया। ऐसे एक जोड़ी चप्पल के लिए कंपनी ने एक लाख से सवा लाख रुपए तक कीमत वसूली। याचिका में कहा गया है कि प्राडा द्वारा प्रदर्शित चप्पलों का डिजाइन हूबहू कोल्हापुरी चप्पल से मिलता है। यह याचिका प्राडा समूह और महाराष्ट्र सरकार के कई अधिकारियों के खिलाफ दायर की गई है। याचिका में प्राडा को बिना किसी अनुमति के इस चप्पल का व्यवसायीकरण और इस्तेमाल करने से रोके जाने की मांग की गई है। वहीं फैशन ब्रांड प्राडा को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने और कोल्हापुरी चप्पलों के इस्तेमाल की बात स्वीकार करने का निर्देश दिए जाने की भी अपील की गई है। याचिका में कहा गया है कि कोल्हापुरी चप्पल पहले से ही कानून के तहत जीआई के रूप में संरक्षित है। जनहित याचिका में कहा गया है कि कोर्ट प्राडा द्वारा अनधिकृत जीआई उपयोग पर स्थायी रोक लगाने और कारीगरों के समुदाय को प्रतिष्ठा और आर्थिक नुकसान के लिए मुआवजा दिए जाने का आदेश दे। इसमें जीआई-पंजीकृत मालिकों और कारीगरों के समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए प्राडा के खिलाफ जांच का अनुरोध किया गया है। जनहित याचिका में कहा गया है कि प्राडा ने निजी तौर पर स्वीकार किया है कि उसका यह संग्रह भारतीय कारीगरों से प्रेरित है, लेकिन उसने अभी तक मूल कारीगरों से माफी नहीं मांगी या उन्हें मुआवजा नहीं दिया है। याचिका में कहा गया है कि निजी तौर पर स्वीकृति आलोचना से बचने का एक सतही प्रयास मात्र प्रतीत होता है। बता दें भारत में इस बात को लेकर विवाद बढ़ने के बाद प्राडा ने माना कि डिजाइन भारतीय हस्तनिर्मित चप्पल से ‘प्रेरित’ है। प्राडा ने कहा कि ‘मेन्स 2026 फैशन शो’ में जो सैंडल प्रदर्शित की गई वे अब भी डिजाइन चरण में हैं और रैंप पर मॉडलों द्वारा पहनी गई, किसी भी चप्पल के व्यावसायीकरण की पुष्टि नहीं हुई है। बता दें कोल्हापुरी चप्पलें आमतौर पर महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली, सतारा और सोलापुर के आसपास के जिलों में हाथ से बनाई जाती हैं। भारत में कोल्हापुरी चप्पलों का निर्माण 12वीं या 13वीं शताब्दी से चल रहा है। मूल रूप से इस क्षेत्र के राजघरानों द्वारा संरक्षित कोल्हापुरी चप्पल स्थानीय मोची समुदाय द्वारा वनस्पति-टैन्ड चमड़े का उपयोग करके तैयार की जाती है और पूरी तरह से हाथ से बनाई जाती है। इसमें किसी कील या सिंथेटिक घटकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। सिराज/ईएमएस 05जुलाई25