07-Jul-2025
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भोपाल(ईएमएस)। मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज ने कहा कि व्यक्ति को जीवन में कभी भी आदेशात्मक, आरोपात्मक, अलोचनात्मक तथा अपमान जनक भाषा का उपयोग नहीं करना चाहिये, उन्होंने कहा कि यह आपकी नकारात्मकता का घोतक है। उन्होंने जीवन व्यवहार के अनेक उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुये कहा कि बातें तो सभी एक है,लेकिन सभी का कहने कहने का ढंग हुआ करता है। सामने वाले से यदि आपने उसकी किसी कमी के बारे में सीधे सीधे पूंछा तो उसको बुरा लगेगा और वही बात को यदि थोड़ा शव्दों की चासनी के साथ पूंछा तो उसको बुरा भी नहीं लगेगा और वह अपने दिल की बात भी आपको बता देगा। वह आपके प्रति हमेशा सकारात्मक रुख रखेगा। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अपने मान की रक्षा करता है, तो वह सामने बाले के मान का भी ख्याल रखता है। आप यदि अपने जीवन के प्रति सकारात्मक है तो औरों के प्रति भी आप सकारात्मक ही होंगे। मुनि श्री ने कहा कि घर परिवार रिस्तेदार मित्र, अपने से नीचे काम करने बाले कर्मचारियों,आंफिस में दुकान में कभी भी किसी से भी आदेशात्मक,अपमानजनक, भाषा का उपयोग मत करो, मुख से अपशव्दों का उच्चारण वैचारिक रुप से दरिद्रता का सूचक होता है। मुनि श्री ने कहा कि हमें हमारी भाषा और बोली पर नियंत्रण होंना चाहिये। जो व्यक्ति अपने मान की रक्षा करता है, वह सामने बाले के मान का भी ख्याल रखता है। उन्होंने उदाहरण देते हुये कहा कि मेरे संपर्क में अनेकों ऐसे व्यक्ति है जो शिखर पर पहुंच चुके है लेकिन वह विनम्रता की प्रतिमूर्ति है। आज उनका समाज में, कंपनी में, घर परिवार में, सभी लोग आदर की दृष्टि से देखते है। मुनि श्री ने कहा कि जो काम सेबक का है, वह कार्य सेबक ही करेगा। उसके बिना आपका काम नहीं चल सकता, इसलिये उसे कमतर मत आंकिये। एक बार आपके बिना तो उसका काम चल जाऐगा, लेकिन आपका काम नहीं चलेगा। इसलिये यदि कभी किसी सेवक या आंफिस के कर्मचारी अथवा घर परिवार के किसी सदस्य से कोई गल्ती हो भी जाऐ तो उसकी गल्ती को विना उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाऐ, आराम से समझायें। वह सहजता से अपनी गल्ती को भी मान लेगा तथा पुन: गल्ती नहीं करेगा। तथा हमेशा आपकी इज्जत करेगा। उन्होंने आचार्य गुरूदेव श्री विद्यासागर महाराज का उदाहरण देते हुये कहा कि गुरुदेव की यह विशेषता थी, वह कभी आदेशात्मक भाषा का उपयोग नहीं करते थे। यदि किसी को कोई संदेश पहुंचाना हो तो हमेशा यह कहते कि इस कार्य को देख लेना जबकि हम लोग हमेशा उत्कंठित रहते थे, कि वह हमें कोई कार्य करने को कहें। मुनि श्री ने कहा कि गुरुदेव ने कभी आदेशात्मक भाषा का उपयोग नही किया। वह हमेशा कहते थे कि आगम मित्र की तरह है, तथा आदेश शत्रु है, इसलिये हमेशा आदेश परख वचनों से बचना चाहिये। अपनी भाषा को ऐसी बोलो जिससे आपके व्यवहार का पता लग सके आरोपात्मक भाषा का उपयोग नहीं करना चाहिये। कभी -कभी सामने वाला दोषी दिख रहा है, लेकिन वह दोषी होता नहीं। लेकिन हम आवेश में आकर उसको दोषी मान लेते है और तत्काल खरी खोटी सुना देते है, जबकि वह अपनी बात को कहना चाहता है। लेकिन उसकी बात को सुने बिना अपना निर्णय सुना देते है और वही छोटी छोटी बातें कभी कभी विक्रत रुप धारण कर लेती है। जिसको हम अक्सर घटनाओं के रुप में देखते है। मुनि श्री ने कहा कि आलोचना परख भाषा हमेशा चुभती है, लेकिन वही भाषा को आप थोड़ा घुमा फिराकर धीरे से कहेंगे तो वह चुभेगी नहीं। उन्होंने किटिसाईज और किटी गाईड में अंतर बताते हुये कहा कि सीधे सीधे आरोप लगाना किटीसाईज है, जबकि उबकी अच्छाइयों को उभारकर उसकी कमियों को बताना ही किटी गाईड है। किसी को रिसपेक्ट न दे सको तो कोई बात नहीं लेकिन अपमान जनक भाषा से हमेशा बचना चाहिये। उपरोक्त जानकारी प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने देते हुये बताया विद्या प्रमाण गुरुकुलम् अवधपुरी में चातुर्मास की तैयारियां जोरों से चल रही है। श्रद्धालुओं के लिये वाटरप्रूफ विशाल डोम लगाया गया है। आगामी 10 जुलाई को मुनि श्री संधान सागर महाराज का मुनि दीक्षा दिवस 11 जुलाई को वीरशासन जयंति तथा 12 जुलाई को गुणायतन परिवार का वार्षिक अधिवेशन एवं 13 जुलाई को चातुर्मास कलश स्थापना समारोह है। गुणायतन परिवार,धर्म प्रभावना समिति विद्या प्रमाण गुरुकुलम् तथा विद्यासागर प्रवंधकीय संस्थान के सभी पदाधिकारियों ने कार्यक्रम में पधारने का सभी से निवेदन किया है। अविनाश जैन विद्यावाणी / 07 जुलाई, 2025