लेख
15-Jul-2025
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श्रीनगर में सोमवार को जो कुछ देखने को मिला है वह बड़ा आश्चर्यचकित करने वाला है। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को शहीद दिवस मनाने को लेकर पहले उन्हें घर पर ही हाउस अरेस्ट किया गया। इसके बाद भी जब वह शहीद दिवस मनाने के लिए जबरदस्ती अपने घर से निकले तो सुरक्षा कर्मियों ने उनको रोकने का प्रयास किया। वह नहीं माने और मंत्रियों के साथ कब्रिस्तान में जाकर 1931 में हुए शहीदों के नाम पर फातिहा पढ़ना चाह रहे थे। उन्हें रास्ते में ही रोक लिया गया। सुरक्षा कर्मियों ने मुख्यमंत्री के साथ झूमाझपटी की। इसके बाद भी वह रुके नहीं, स्कूटर से वह कब्रिस्तान की ओर रवाना हुए। रास्ते में उन्हें फिर रोक दिया गया। लगभग 1 किलोमीटर पैदल चलते हुए वह नक्शबंद की साहिब कब्रिस्तान पर पहुंचे। कब्रिस्तान का दरवाजा बंद था, वहाँ सुरक्षा कर्मी खड़े हुए थे। उन्होंने दीवाल फांदकर कब्रिस्तान के अंदर प्रवेश किया। वहां उन्होंने शहीदों की याद में फातिहा पड़ा। उसके बाद वह बाहर निकले। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया पर अपने साथ हुए व्यवहार की फोटो और वीडियो पोस्ट की। मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया है, उप राज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा शहीदी दिवस मनाने से रोकना पूरी तरह गलत था। पिछले कई दशकों से शहीद दिवस पर फातिहा पढ़ने के लिए जाया जाता था। फौत हो चुके बुजुर्गों और शहीदों की याद में फातिहा पढ़ना हमारा अधिकार है। मैं एक निर्वाचित मुख्यमंत्री हूं। मेरे ही राज्य में सुरक्षाकर्मियों द्वारा उप राज्यपाल के आदेश पर मुख्यमंत्री और मंत्रियों के साथ जिस तरह की झूमाझटकी की गई है, उससे ऐसा लगता है, हम स्वतंत्र नहीं हैं। एक गुलाम प्रदेश का निर्वाचित मुख्यमंत्री हूं। जम्मू कश्मीर की सत्ता केंद्र सरकार और उपराज्यपाल के हाथों में है। केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समय जिस तरह के हालात वहां देखने को मिलते रहे, अब वही हालात जम्मू कश्मीर में देखने को मिल रहे हैं। जम्मू कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य था। केंद्र ने पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म करके केंद्र शासित प्रदेश के रूप में तब्दील कर दिया है। जम्मू कश्मीर विधानसभा के चुनाव हो गए हैं। केंद्र सरकार ने पूर्ण राज्य का दर्जा वापस करने के लिए सुप्रीम कोर्ट और लोकसभा में आश्वासन दिया हुआ है। शहीद दिवस के रूप में कब्रिस्तान में जाकर फातिहा पढ़ना उनका धार्मिक और निजी मामला था। शहीद दिवस मनाने के कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार फातिहा पढ़ने से कैसे रोका जा सकता था। वह भी इस राज्य के संवैधानिक मुख्यमंत्री के रूप में जब उमर अब्दुल्ला की जिम्मेदारी है। संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोगों के साथ यदि उनके ही सुरक्षाकर्मी तथा उनके ही राज्य की पुलिस इस तरह का व्यवहार करेगी तो संविधान मौलिक अधिकार स्वतंत्रता केंद्र एवं राज्यों के बीच के अधिकार जैसे कई प्रश्न उत्पन्न हो जाते हैं। जिसको लेकर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी लड़ाई लड़ना शुरू की है। वह एक नई दिशा की ओर आगे बढ़ रही है। कुछ दिन पहले ही पहलगाम में 26 पर्यटकों की हत्या की गई थी, वहां पर सुरक्षा व्यवस्था के कोई इंतजाम नहीं थे। अभी तक हमले के जिम्मेदारी आतंकवादी नहीं पकड़े गए। हाल ही में उपराज्यपाल ने उक्त घटना को लेकर जिम्मेदारी स्वीकार की है। अभी यह मामला ठंडा भी नहीं हुआ था, जम्मू कश्मीर में एक नया विवाद शुरू हो गया है। एनडीए और इंडिया गठबंधन को लेकर पक्ष और विपक्ष के बीच में पहले से ही तलवारें खिंची हुईं थीं। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बनने के बाद उमर अब्दुल्ला द्वारा केंद्र सरकार विशेष रूप से प्रधानमंत्री के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में सहयोग देने का काम किया जा रहा था, जिसके कारण उन्हें इंडिया गठबंधन की आलोचनाओं का भी शिकार होना पड़ रहा था। उसके बाद भी इस घटना ने केंद्र एवं राज्यों के संबंधों और अधिकारों को लेकर एक नए विवाद की शुरुआत कर दी है। इस विवाद का अंत किस तरह से होगा यह कह पाना मुश्किल है, लेकिन जिस तरह से एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के साथ झूमाझटकी की गई उन्हें बिना किसी सुरक्षा व्यवस्था के दो पहिया वाहन और पैदल बिना किसी सुरक्षा के चलकर जाना पड़ा दीवाल फांदकर कब्रिस्तान के अंदर प्रवेश करना पड़ा, यह राजनीतिक अपरिपक्वता और अहंकार का परिचायक ही माना जा सकता है। उपराज्यपाल को मुख्यमंत्री से इस संबंध में बात करके निर्णय लेना था। वर्तमान घटना को देखते हुए यही लगता है उपराज्यपाल के रूप में मनोज सिन्हा अपने आपको सुपर सीएम मानकर चलते हैं। जम्मू कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी उन्हीं के पास है। ऐसी स्थिति में मानसून-सत्र शुरू होने पर संसद में यह मामला तूल पकड़ेगा। पहलगाम की घटना को लेकर भले मनोज सिन्हा ने जिम्मेदारी ले ली हो, लेकिन यह मामला अब एक बड़े राजनीतिक परिवर्तन का संकेत माना जा रहा है। ईएमएस / 15 जुलाई 25