21-Jul-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। भारत और इंग्लैंड के बीच मौजूदा टेस्ट सीरीज में अंपायरों को कई बार गेंद की शेप जांचते हुए देखा गया, खासकर ‘रिंग टेस्ट’ करते हुए। इसके मायने यह है कि गेंदें जल्दी अपना आकार खो रही हैं। ऐसे में सभी के मन में सवाल उठता है कि जब गेंद बदलनी होती है तो रिप्लेसमेंट गेंदें आती कहां से हैं, उन्हें कैसे परखा जाता है और इस्तेमाल में कैसे लाया जाता है? हर टेस्ट मैच से पहले मेजबान राज्य या काउंटी एसोसिएशन चौथे अंपायर को अपने स्टेडियम में खेले गए फर्स्ट-क्लास मैचों में इस्तेमाल की गई पुरानी गेंदें देता है। उदाहरण के लिए, वानखेड़े में मैच हो तो मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन, और ओल्ड ट्रैफर्ड में हो तो लंकाशायर ये गेंदें देता है। इन गेंदों को एक खास गेज या माप उपकरण से परखा जाता है। अगर गेंद एक रिंग से निकल जाती है लेकिन दूसरी से नहीं, तो उसे बॉल लाइब्रेरी में रखने योग्य माना जाता है। वहीं से रिप्लेसमेंट गेंदें मैच के दौरान ली जाती हैं। भारत, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में आमतौर पर करीब 20 रिप्लेसमेंट बॉल्स रखी जाती हैं, लेकिन कुछ देशों में ये संख्या कम भी हो सकती है। अगर जरूरत से ज्यादा गेंदें खराब हो जाएं, तो चौथा अंपायर नई गेंदों के लिए एसोसिएशन से और गेंदें मंगवा सकता है। कभी-कभी टीमों से उनके नेट्स में इस्तेमाल हुई गेंदें भी ली जाती हैं, जिन्हें जांच के बाद रिप्लेसमेंट के लिए चुना जाता है। गेंदों की रिप्लेसमेंट में यह जरूरी नहीं होता कि नई गेंद उतने ही ओवर पुरानी हो जितनी पिछली थी। हरे मैदान पर 60 ओवर तक चली गेंद को सूखे मैदान की 30 ओवर पुरानी गेंद के बदले इस्तेमाल किया जा सकता है, बशर्ते उसकी गुणवत्ता ठीक हो। लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि रिप्लेसमेंट गेंद बिल्कुल वैसी नहीं होती जैसी खराब हुई हो। अंपायर केवल उसके सबसे करीबी विकल्प को ही चुन सकते हैं, जिससे कभी-कभी टीमें असंतुष्ट भी होती हैं। गेंद तभी बदली जाती है जब उसका आकार बिगड़ जाए, गीली हो जाए या उस पर साफ चोट हो। सिर्फ नरम होने पर उसे बदला नहीं जाता। गेंद पर किसी तरह का मार्किंग नहीं होता, इसलिए अगर कोई गेंद पहले स्विंग दे चुकी हो, तो भी उसे पहचानना मुश्किल होता है। सुदामा/ईएमएस 21 जुलाई 2025