बिलासपुर (ईएमएस)। हाईकोर्ट ने अनुबंध के मामलों में प्रशासनिक कार्रवाई पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए मेडिकेयर कंपनी के खिलाफ जारी ब्लैकलिस्टिंग आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने माना कि केवल एक लंबित आपराधिक जांच के आधार पर इतना कठोर कदम नहीं उठाया जा सकता। कोर्ट ने टिप्पणी की कि ब्लैकलिस्टिंग के आदेश के गंभीर नागरिक परिणाम होते हैं, जो सिविल डेथ के समान है, और इसे केवल गंभीर मामलों के लिए ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए, न कि केवल इसलिए कि संस्थान के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस बिभू दत्त गुरु की खंडपीठ ने रिकॉर्डर्स एंड मेडिकेयर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर एक रिट याचिका पर यह फैसला दिया। याचिका में छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सीजीएमएससी) द्वारा कंपनी को तीन साल के लिए प्रतिबंधित करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। नोटिस पर कंपनी ने बताया- मोक्षित कॉर्पोरेशन से संबन्ध नहीं याचिकाकर्ता कंपनी ने चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति के लिए वर्ष 2022-23 में टेंडर प्रक्रिया में भाग लिया लेकिन असफल रही।30 जनवरी, 2025 को सीजीएमएससी ने कंपनी को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें धोखाधड़ी और भ्रष्ट आचरण, मिलीभगत से बोली लगाना, और महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाने का आरोप लगाया गया।याचिकाकर्ता ने 1 फरवरी, 2025 को विस्तृत जवाब प्रस्तुत किया, जिसमें आरोपों का खंडन किया गया और सफल निविदाकर्ता, मोक्षित कॉर्पोरेशन के साथ किसी संबंध से इनकार किया। हालांकि, 5 फरवरी, 2025 को सीजीएमएससी ने याचिकाकर्ता को तीन साल के लिए ब्लैकलिस्ट करने का आदेश जारी कर दिया। याचिकाकर्ता का तर्क- मनमानी कार्रवाई की मेडिकेयर कंपनी पर कार्रवाई का एकमात्र आधार एसीबी, ईओडब्ल्यू द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज की गई एक एफआईआर थी, जिसमें याचिकाकर्ता और अन्य संस्थाओं पर मिलीभगत से बोली लगाने और भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता किशोर भादुड़ी ने तर्क दिया कि ब्लैकलिस्टिंग का आदेश मनमाना और अवैध था। केवल एक प्राथमिकी दर्ज होने के कारण किसी कंपनी को ब्लैकलिस्ट नहीं किया जा सकता, क्योंकि अदालत में कोई भी आरोप साबित नहीं हुआ है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी इस संदर्भ में उल्लेख किया। कोर्ट ने कहा- दरों में अंतर मिलीभगत से बोली लगाने का निर्णायक सबूत नहीं सीजीएमएससी के वकील ने इसे उचित, न्यायपूर्ण और तर्कसंगत कार्रवाई बताते हुए आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने बहुत चालाकी से अपनी बोलियों को मोक्षित कॉर्पोरेशन से 20-25 प्रतिशत अधिक रखा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बाद वाली कंपनी को एल-1 बोलीदाता घोषित किया जाए, जो विभाग को धोखा देने के लिए सुनियोजित प्रयास और दुर्भावनापूर्ण सांठगांठ को दर्शाता है।हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद ब्लैकलिस्टिंग के आदेश को समय से पहले और अनुपातहीन पाया। कोर्ट ने माना कि बोली दरों में 20-25 प्रतिशत का अंतर मिलीभगत से बोली लगाने का निर्णायक सबूत नहीं हो सकता। कोर्ट ने दृढ़ता से कहा, याचिकाकर्ता कंपनी के खिलाफ केवल एक अपराध का पंजीकरण स्वत: यह नहीं दर्शाता कि याचिकाकर्ता कंपनी उस अपराध के लिए दोषी है जिसका उस पर आरोप लगाया गया है। मनोज राज/योगेश विश्वकर्मा 04 सितंबर 2025