लेख
16-Sep-2025
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भारतीय समाज “शासन” की सर्वोत्तम व्यवस्था को “रामराज्य” की संकल्पना से संबोधित करता है। यह केवल धार्मिक आदर्श नहीं, बल्कि ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें न्याय, समान अवसर, सुरक्षा, समृद्धि और सांस्कृतिक गौरव सबको समान रूप से प्राप्त हो। आज जब हम देश में हो रहे निर्णय और नीतियों को रामराज्य के आलोक में देखते हैं तो बहुत सी साम्यताएँ अनुभव होती हैं। मैं जब रामराज्य को पढ़ रहा था तब मुझे वर्तमान के निर्णय और नीतियों में उन विधियों के पालन की सुगंध आई जिन्हें मैं ग्रंथों में पढ़ता रहा हूँ। फिर मैंने जब इसे और गहराई से देखा तो अनुभव हुआ कि यह महज़ संयोग नहीं है, यह तो रामराज्य का अनुकरण है। बाबा तुलसी रामराज्य की जो परिकल्पना उत्तरकांड में लिखते हैं, वह प्रारंभ होती है— “सब नर करहिं परस्पर प्रीति। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥” इस विषय को जब मैंने अन्वेषित किया तो मेरे मन में यह विनोदी राजनैतिक दृश्य आए, जो संभव तो नहीं थे पर हमने होते हुए देखे। जन्मजात शत्रुता का दावा करने वाले और निरंतर कटुता रखने वाले लोग, मोदी जी के शासन में राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए, उन लोगों से भी प्रेम करते नज़र आए जिनसे प्रेम की कोई संभावना नहीं थी। जैसे शिवसेना और कांग्रेस का मेल, मायावती और मुलायम सिंह यादव का एक मंच पर आना, लालू यादव और नीतीश कुमार का धुर विरोध के बाद भी साथ आना। इसे भी “रामराज्य का प्रभाव” समझा जाए, जहाँ शत्रु भी मित्र बनने को विवश हो गए। “नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥” जब हम दरिद्रता को मिटाने के प्रयास देखते हैं तो समझ आता है कि सबको पक्का घर हेतु प्रधानमंत्री आवास, घर में शौचालय, हर घर बिजली, स्वच्छ ईंधन उज्ज्वला, हर व्यक्ति का खाता, खाते में जनधन, घर-घर नल—अर्थात दरिद्रता का संपूर्ण समाधान। ये योजनाएँ मात्र विकल्प नहीं, बल्कि रामराज्य की अवधारणा का संकल्प हैं, जिन्हें कठोर परिश्रम और प्रयास से साकार किया जा रहा है। “सब निर्दंभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी॥” रामचरितमानस की इन चौपाइयों का तात्पर्य है कि रामराज्य में कोई बुद्धिहीन और गुणहीन नहीं रहना चाहिए। आज के भारत में मोदी जी की स्किल इंडिया मिशन, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना और नई शिक्षा नीति ने युवाओं को आत्मनिर्भर और कुशल बनाने का भागीरथ प्रयास किया है। यह रामराज्य की अवधारणा को गढ़ने का ही प्रयास है। “सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी॥” रामराज्य में कृतज्ञता का वर्णन बाबा तुलसी करते हैं। मुझे सहज ही स्मरण आता है कि देश में हुई उपलब्धियों के कारण एक बड़ा समूह शासन के प्रति अत्यंत सकारात्मक और पक्षधर हो गया है। विपक्ष ने इन्हें “भक्त” कहना शुरू किया। यहाँ यह चौपाई भी चरितार्थ होती है। विरोधी भी समझ गए हैं कि मोदी जी के भीतर ईश्वरीय प्रेरणाओं और गुणों की शक्ति है। इसलिए उनके समर्थकों को सामान्य समर्थक नहीं, “भक्त” कहा जाने लगा। “दैहिक दैविक भौतिक तापा। रामराज नहिं काहुहि ब्यापा॥” इस चौपाई को पढ़कर स्मरण आता है कि मोदी जी की आयुष्मान भारत योजना विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सुरक्षा योजना है। करोड़ों परिवारों को पाँच लाख रुपये तक का निःशुल्क इलाज, योग को वैश्विक पहचान, आयुष मंत्रालय और जन-औषधि केंद्रों ने इस चौपाई को चरितार्थ कर दिया है। सरकार आम जनमानस को आरोग्य से जोड़कर उन्हें संताप से मुक्त रखकर रामराज्य की अवधारणा को साकार करना चाहती है। “अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥” पीएम श्री एयर एम्बुलेंस जैसी सेवाओं का प्रारंभ, कोविड-19 महामारी में वैक्सीन मित्र बनकर विश्व को जीवनरक्षक टीके देना, आयुष्मान भारत और जन-औषधि केंद्रों ने जनता को अल्प मृत्यु और पीड़ा से बचाने की शक्ति दी है। “चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं॥ राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी॥” रामभक्तों के भीतर आज आनंद है। श्रीराम जन्मभूमि के निर्णय से लेकर भूमि पूजन और भव्य मंदिर निर्माण तक ने भक्तों को गौरवान्वित और आत्मिक प्रसन्नता दी है। पूरे भारत में यही दिख रहा है—श्रीराम के भक्त प्रसन्न हैं और राम के विरोधी दुखी। “हरषित रहहिं नगर के लोगा। करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा॥” भारतवासी विश्व में भारत की बढ़ती शक्ति को देखकर गर्वित और प्रसन्न हैं। जी-20, ब्रिक्स, सौर गठबंधन और योग दिवस जैसे मंचों पर भारत की निर्णायक भूमिका ने आत्मविश्वास और हर्ष की लहर पैदा की है। प्रभु श्रीराम जी अपने शासन के चौथे वर्ष में एक राजसभा का आयोजन करते हैं, जिसमें सब उनसे प्रश्न पूछते हैं और रामजी उसका उत्तर देते हैं। प्रभु श्रीराम जी सुमंत के प्रश्न के उत्तर में अपने शासन आदेश में कहते हैं— “जाति भेदो न ग्राह्न: स्यानन तथा नयमभिन्नता। विवाहे भोजने भेदः स्वीकृतो न कदापि हि। एकजातिवदातिष्ठे नमंत्रं स्यात मैत्रियोजने॥” अतः मेरे राज्य में किसी भी जातिगत भेदभाव को स्वीकार नहीं किया जाएगा। आज आप देख सकते हैं कि मोदी जी सफाई श्रमिकों और दलित परिवारों के साथ बैठकर भोजन करते हैं, उनके चरण प्रक्षालन करते हैं। यह उसी रामराज्य का संकेत है, जिसमें जातीय भेदभाव का कोई स्थान नहीं था। वर्तमान में सभी वर्गों के सम्मान को सुरक्षित करते हुए ऐसे समरसतापूर्ण कठिन निर्णय भी हुए हैं, जो भेदभाव मिटाने के स्पष्ट प्रयास को दर्शाते हैं। वाल्मीकि रामायण में श्रीराम कहते हैं— “इंदुभूतिकामः स्याद्धि राष्ट्रोस्माकं न चान्यथा।। अन्तर्वहिष्च यत्र स्यादिनतुः पालयः प्रयत्नतः॥” भारत ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के माध्यम से सीमाओं के बाहर धार्मिक प्रताड़ना झेल रहे हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समाज को शरण और नागरिकता दी। यह वही भावना है जो श्रीराम के वचनों में व्यक्त हुई, जहाँ करुणा और सुरक्षा का विस्तार सीमाओं से परे था। वाल्मीकि रामायण में यह भी चेतावनी दी गई है— “यद्यहिंसा भवें मार्गे दुष्ट चौराश्य तस्कारः। भुवि प्रादुर्भविष्यन्ति त्वशान्तिमहति भवेत॥” रामराज्य का सिद्धांत था कि अहिंसा की नीति दुष्टों के लिए नहीं है, सज्जनों की रक्षा और दुष्टों का संहार हो। आज मोदी जी भी यही नीति अपनाते हैं। सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक कर आतंकवाद को कड़ा संदेश दिया गया। एनआईए और यूएपीए कानून को सशक्त कर आतंकी नेटवर्क पर प्रहार किया गया। अनुच्छेद 370 हटाना आतंकवाद पोषक समानांतर राजनीति को समाप्त करने का ऐतिहासिक कदम था। जिस लाल चौक पर कभी तिरंगा जलाया जाता था, वहाँ इस वर्ष गणेश उत्सव की झाँकियाँ निकली हैं। यह बदलते भारत की उपलब्धि है, जिसे मोदी जी ने साकार किया है। रामचरितमानस में वर्णन है— “भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला॥ भुअन अनेक रोम प्रति जासू। यह प्रभुता कछु बहुत न तासू॥” आज नरेंद्र मोदी जी वैश्विक नेता के रूप में उभरे हैं। वे सात समंदर पार भी लोकप्रिय हैं। जी-20 की अध्यक्षता, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और योग दिवस को वैश्विक मान्यता दिलाकर भारत की छवि को सशक्त किया। वे विश्व मंच पर भारतीय परंपरा और मर्यादाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। ट्रम्प के टैरिफ वार पर जिस धैर्य, गंभीरता और साहस के साथ उन्होंने सूझबूझ का परिचय दिया और भारत के हितों के प्रति अडिगता दिखाई, वह अभूतपूर्व है। यह पूरे विश्व में उस वाक्य का उद्घोष है जिसमें स्वामी विवेकानंद ने कहा था—“इक्कीसवीं सदी भारत की होगी।” नरेंद्र मोदी जी के ग्यारह वर्ष केवल राजनीतिक उपलब्धियाँ नहीं, बल्कि उस शाश्वत स्वप्न की ओर बढ़ते कदम हैं जिसे हम रामराज्य के नाम से जानते हैं। आज भारत यह कह सकता है कि रामराज्य की संकल्पना अब केवल कल्पना नहीं, बल्कि यथार्थ की ओर बढ़ता हुआ राष्ट्रीय जीवन है। यह आलेख माननीय नरेंद्र मोदी जी के जन्मदिन पर विशेष रूप से सभी देशवासियों को समर्पित है। .../ 16 ‎सितम्बर /2025