लेख
25-Jan-2023


(जन्मदिन बसंत पंचमी पर विशेष) सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला हिन्दी साहित्य ऐसे कवि हैं जिन्होंने अपने समकालीन अन्य कवियों से अलग उन्होंने कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है और यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है। वे हिन्दी में मुक्त छंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। 1930 में प्रकाशित अपने काव्य संग्रह परिमल की भूमिका में वे लिखतेहैं- मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छन्दों के शासन से अलग हो जाना है। जिस तरह मुक्त मनुष्य कभी किसी तरह दूसरों के प्रतिकूल आचरण नहीं करता उसके तमाम कार्य औरों को प्रसन्न करने के लिए होते हैं फिर भी स्वतंत्र। इसी तरह कविता का भी हाल है। इस महान कवि का व्यक्तित्व काफी चर्चित रहा है। उनके स्वभाव और व्यवहार के कारण विभिन्न विशेषणों की संज्ञा दी जाती रही उनके अंतविरोधों पर चर्चाएं भी हुई परंतु निराला जी किसी की परवाह न करते हुए अपनी धुन में आगे बढ़ते गए। अपनी इन्हीं विविधताओं एवं विचित्रताओं के कारण वे विरोधाभास के रूप कभी बने परंतु कुछ भी उनके आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान को डिगा नहीं पाया। उनकी यही विशेषता उनकी रचनाओं में परिलक्षित होती हैं। हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक चर्चित साहित्यकार सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जन्म बंगाल की रियासत महिषादल (जिला मेदिनीपुर) में 21 फरवरी 1896 को वसंत पंचमी के दिन हुआ था। उनके पिता पंण्डित राम सहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गढ़कोला नामक गाँव के निवासी थे। हाई स्कूल तक शिक्षा के बाद हिन्दी संस्कृत और बांग्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। पन्द्रह वर्ष की अल्पायु में निराला का विवाह मनोहरा देवी से हो गया। रायबरेली जिले में डलमऊ के पं. रामदयाल की पुत्री मनोहरा देवी सुन्दर और शिक्षित थीं उनको संगीत का अभ्यास भी था। पत्नी के जोर देने पर ही उन्होंने हिन्दी सीखी। इसके बाद अतिशीघ्र ही उन्होंने बंगला के बजाय हिन्दी में कविता लिखना शुरू कर दिया। बचपन के नैराश्य और एकाकी जीवन के पश्चात उन्होंने कुछ वर्ष अपनी पत्नी के साथ सुख से बिताये किन्तु यह सुख ज़्यादा दिनों तक नहीं टिकाऔर उनकी पत्नी की मृत्यु उनकी 20 वर्ष की अवस्था में ही हो गयी।एक के बाद एकआघातों से वे टूट चुके थे परंतु वे अपने दायित्वों के निर्वहन से मुक्त नहीं हुए।पुत्र रामकृष्ण त्रिपाठी एवं पुत्री सरोज त्रिपाठी के लालन पोषण के साथ पूरे संयुक्त परिवार को संभालते रहे अपना दायित्व बखूबी निभाया।पुत्री के विवाह के कुछ समय उपरांत उसका निधन हो गया जिसे वे काफी प्यार करते थे।यह सरोज स्मृतिसे स्पष्टहोता है। 1918 से 1922 के बीच महिषा दल राज्य की सेवा की। उसके बाद संपादन स्वतंत्र लेखनऔरअनुवाद कार्य किया।इन्होंने 1922 से 23 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित समन्वय का संपादनकिया। 1923 केअगस्तसे मतवाला के संपादक मंडल में काम किया।इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालयऔरवहाँ से निकलने वाली मासिक पत्रिका सुधा से 1935 के मध्य तक संबद्ध रहे।इन्होंने 1942 से मृत्युपर्यन्त इलाहाबाद में रहकर स्वतंत्र लेखनऔरअनुवाद कार्य भी किया।वे जयशंकर प्रसादऔर महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जातेहैं।निराला की शक्ति यह है कि वे चमत्कार के भरोसे अकर्मण्य नहीं बैठ जातेऔर संघर्ष की वास्तविकचुनौती से आँखें नहीं चुराते।कहीं-कहीं रहस्यवाद केफेर में निराला वास्तविकजीवन-अनुभवों के विपरीत चलतेहैं।हर ओर प्रकाश फैला है जीवन आलोकमय महासागर में डूब गया है इत्यादि ऐसी ही बातें है।अनेक बार निराला शब्दों ध्वनियों आदि को लेकर खिलवाड़ करतेहैं।इन खिलवाड़ों को कलाकी संज्ञा देना कठिन काम है।लेकिन सामान्यत: वे इन खिलवाड़ों के माध्यम से बड़े चमत्कार पूर्ण कलात्मक प्रयोग करते हैं।इन प्रयोगों की विशेषता यह है कि वे विषयया भाव को अधिक प्रभावशाली रूप में व्यक्त करने में सहायक होते हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मृत्यु 15 अक्टूबर 1961 में प्रयाग में हुई। आघातों पर आघात स्वयं के और संयुक्त परिवार निर्वहनबचपन में मां का न होना शायद यही सब कारण उनके इस तरह होने के पीछे हो सकते हैं जिससे उनके स्वभाव में विसंगति सी आ गयी एक कठोरता भीऔरअतिरिक्त संवेदनशीलता भी इसलिए उनकी सहानुभूति शोषितों वंचितोंश्रमजीवियों भिक्षुकों के प्रति दिखायी देती है जो उनकी रचनाओं में भी प्रकट हुई जैसे वह तोड़ती पत्थर में — वह तोड़ती पत्थर देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर वह तोड़ती पत्थर। कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुईस्वीकार; श्यामतन भर बंधा यौवन नतनयन प्रिय-कर्म-रत मन गुरु हथौड़ा हाथ करती बार-बा रप्रहार उनकी मानवीय चेतना उपरोक्त पंक्तियों में स्पष्ट दिखायी देती है। भिक्षुक कविता मेंसामाजिक दुर्गति का दारूण चित्रण है।भिक्षुक कविता में निराला उस उपेक्षित वर्ग को अपनी समस्त करुणा समर्पित करते हैं जिन्हें समाज व्यक्ति मानने की भी इच्छा नहीं रखता। वह आता दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ परआता। पेट पीठ दोनों मिलकरहैं एक चल रहा लकुटिया टेक मुट्ठीभर दाने को—भूख मिटानेको मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ परआता। कृषकों की व्यथा उनसे देखी नहीं गयी।अपनी कविता बादलराग में कहते हैं कि शोषण के कारण किसान की बाँहें शक्ति हीन हो गईहैं उसका शरीर कमजोर हो गया है।वह शोषण को खत्म करने के लिए अधीर होकर तुझे बुला रहा है।शोषकों ने उसकी जीवन-शक्ति छीनली है उसका सारतत्त्व चूस लियाहै।अब वह हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गयाहै। हेजीवन-दाता! तुम बरस कर किसान की गरीबी दूर करो। क्रांति करके शोषण को समाप्त करो। ”जीर्ण बाहु है शीर्ण शरीर तुझे बुलाता कृषक अधीर ऐ विप्लव केवीर! चूस लिया हैं उसका सार धनी वज़-गजन से बादल। त्रस्त-नयन मुख ढाँप रहेहैं। ऐ जीवन के पारावार !” निराला के लिए प्रकृति जड़ नही है।उन्होंने इसमें सजीवता के दर्शन कर मानवीय भावनाओं का आरोप किया है तथा साथ ही जीवन के साथ उसका तादात्म्य भी स्थापित कियाहै।इसी कारन उनको प्राकृतिक भी रोटी हुई प्रतीत होती है कभी हँसती हुई कभी प्रेमी –प्रेमिका की भांति चेष्टा करती हुई प्रतीत होती है।बंगाल की स्वछंद प्रकृति ने निराला प्रकृति सम्बंधी दृष्टिकोण को उन्मुक्तता प्रदान की है।उनका बादलों केप्रति विशेष अनुराग है तथा यहअनुराग बादल -राग कविता में भली –भाँति रूप से दृष्टिगोचर होता है।निम्न उदहारण कवि और बादलों केसम्बंध को घोषित करताहै - पार ले चल तू मुझको बहा दिखा मुझको भी निज गर्जन -भैरव -संसार। उनकी कविताओं को पढ़कर विभिन्न विचारधारा के साहित्यकार अपनी विचारधारा से जुड़े बताते हैं परंतु वे किसी एक विचारधारा के साहित्यकार नहीं थे।उन्होंने सभी विचार धाराओं और समस्त विधाओं में रचनाएं लिखी चाहे वह छंदयुक्त कविताहो मुक्तछंद की कविता हो नवगीत हो।उनकी कविताओं में छायावाद भी मिलेगारहस्यवाद भी मिलेगा यर्थाथ भी मिलेगा राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी रचनाएं भी मिलेगीसामाजिक सरोकार भी तीब्रता से रहेंगे।वे अद्भुत जीजीविषा के धनी थे।मृत्यु के बारे में उनकी कविता घ्वनि बहुत कुछ कहतीहै। अभी न होगा मेरा अंत मेरे ही अविकसित राग से विकसित होगा बन्धु दिगन्त; अभी न होगा मेराअन्त। परंतु वे धीरे—धीरे थकने लगे और अकेलापन महसूस करने लगे वे जीवन की सांघ्यवेला कोआते देख रहे थे फिर वे बीमार हो गए उनकी पीड़ा जो अकेला में दृष्टिगत होती है। मैं अकेला; देखता हूँ आर ही मेरे दिवस की सांघ्य बेला। पके आधे बाल मेरे हुए निष्प्रभ गाल मेरे चाल मेरी मन्द होतीआ रही हट रहा मेला। जानता हूँ नदी-झरने जो मुझे थे पार करने कर चुका हूँ हँस रहा यह देख कोई नहीं भेला मैं अकेला मैंअकेला” ये पंक्तियां उनके एकाकीपन और हताशा को इंगित करती है।निराला युग प्रवर्तककविहैं।उनकी रचनाओं में न केवल उनका युग बल्किआज का एवं आनेवाला युग भी बिंबायित है।उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से अतीत वर्तमान एवं भविष्य की मूकता को वाणी प्रदान की। .../ 25 जनवरी 2023