लेख
29-Jan-2023
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(३० /३१ जनवरी) भगवान रिषभदेव के निर्वाण के सूदीर्घ काल के पश्चात भगवान श्री अजितनाथ जी हुए। विनीता नगरी के इक्ष्वाकूवन्शीय महाराज जितशत्रु की रानी विजयादेवी की रत्न कुक्षी से माघ शुक्ल अष्टमी की रात्रि मे प्रभु ने जन्म लिया। प्रभु के मात्रगर्भ मे आने के बाद से महाराज जितशत्रु किसी भी प्रति्द्वन्द्वी राजा द्वारा जीते नही गए अथवा महाराज की यशोकीर्ति सर्वत्र अजेय रही इसी तथ्य को प्रकट कर महाराज ने अपने पुत्र का नाम अजी्तनाथ रखा। तीर्थन्करत्व की पात्रता को साथ लेकर जन्मे अजी्तनाथ जन्म से ही सान्सारिक भोग -विलासो से उपरत थे। फ़िर भी पिता की आज्ञा से उन्होने वैवाहिक जीवन और राज्य का दायित्व वहन किया। कालान्तर मे माघ शूक्ल नवमी को अपने चचेरे भाई सगर को राज – पाट अर्पित कर प्रभु ने प्रव्रज्या ग्रहण की। एक हजार पुरुषो ने प्रभु का अनुगमन कर आर्हती दीक्षा अन्गीकार की। द्वादश वर्षीय साधना के पश्चात प्रभु केवली बने। धर्मतीर्थ की रचना कर तीर्थन्कर पद पर आरुठ हुए। भगवान के धर्मतीर्थ मे गोता लगाकर लाखो भव्य जीवो ने आत्मकल्याण का पथ प्रशस्त किया। भगवान अजितनाथ के सिन्हसेन आदि पिचान्वे गणधर थे। उनके धर्मसन्घ मे एक लाख श्रमण तीन लाख तीस हजार श्रमणिया दो लाख अठानवे हजार श्रावक एवम पान्च लाख पैन्तीस हजार श्राविकाए थी। चैत्र शुक्ल पन्चमी के दिन सम्मेद शिखर -पर्वत से प्रभु ने प्रीनिर्वाण प्राप्त किया। भगवान के चिन्ह का महत्व हाथी- यह भगवान अजितनाथ का चिन्ह है। हाथी शाकाहारी पशु है तथा बुद्धिमान प्राणी माना जाता है। युद्ध के मैदान में आगे रहकर शत्रुओं का सामना करता है इसलिए जीवन-संग्राम में आगे रहकर कठिनाइयों से मुकाबला करके विजयश्री प्राप्त करने की प्रेरणा देता है। हाथी की लम्बी सूंड अपनी ग्रहणशक्ति को विकसित करने की शिक्षा देती है। बडे-बडे कान सभी की बातें सुनकर अपने पेट में रखने की शिक्षा देते हैं। अपनी विषयांबधता के कारण ही इतना बलिष्ठ होने के बावजूद भी हथिनी के मोह -पाश में जकडा जाता है। मनुष्य भी नारी के मोह पाश में फ़ंसकर परवश-पराधीन हो जाता है जिस कारण उसे उचित-अनुचित का विवेक नहीं रहता। अत: हाथी के चरित्र से विषय -विरक्ति की शिक्षा लेनी चाहिये। माघ सुदी दशमी तप धारा भव तन भोग अनित्य विचारा। इन्द फनिंद जजैं तित आई हम इत सेवत हैं सिरनाई।। ॐ ह्रीं माघशुक्ला दशमीदिने दीक्षाकल्याणकप्राप्ताय श्रीअजित0 अर्घ्यं नि0स्वाहा माघ सुदी दशमी दिन जाये त्रिभुवन में अति हरष बढ़ाये। इन्द फनिंद जजें तित आई हम इत सेवत हैं हुलशाई।। ॐ ह्रीं माघशुक्ला दशमीदिने जन्मंगलप्राप्ताय श्रीअजित0 अर्घ्यं नि0स्वाहा .../ 29 जनवरी 2023