लेख
29-Jan-2023
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30 जनवरी 1948 का दिन शाम होते होते यह दिन इतिहास में सबसे दुखद दिनों में शुमार हो गया। इस दिन शाम को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की जान ले ली। यह विडंबना ही कहा जाय कि अहिंसा को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाकर अंग्रेजों को देश से बाहर का रास्ता दिखाने वाले महात्मा गांधी खुद हिंसा का शिकार हुए। वह उस दिन भी रोज की तरह शाम की प्रार्थना के लिए जा रहे थे। उसी समय गोडसे ने उन्हें बहुत करीब से गोली मारी और साबरमती का संत हे राम कहकर दुनिया से विदा हो गया। अपने जीवनकाल में अपने विचारों और सिद्धांतों के कारण चर्चित रहे मोहन दास करमचंद गांधी का नाम उनकी मृत्यु के बाद दुनियाभर में कहीं ज्यादा इज्जत और सम्मान से लिया जाता है। गांधी मरे नहीं वरन उन्हें मार दिया गया। जिंदा तो दुनिया में सदा रहने आया कोई नहीं जिस तरह वह गए वैसे जाता भी नहीं कोई। पूरी दुनिया के सामने एक अमिट गाथा लिख दी। डॉ राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि 19वीं शताब्दी में दो महान घटनाएं हुई एक गांधी और दूसरा आइंस्टीन। एक ने दुनिया को अहिंसा और दूसरे ने हिंसा एक ने सत्याग्रह और दूसरे ने अणुबम दिया है। महात्मा गांधी ऐसे शख्सियत हुए जिन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन अर्थात सत्याग्रह की अवधारणा को दुनिया में जमीन पर उतारा। गांधी खुद बनाई सत्याग्रह की भट्टी में तप कर निकली आग उससे निकली रोशनी और तप से बने पारस थे। सत्याग्रह उनकी अद्भुत खोज है ।हर छोटे से छोटे कमजोर से कमजोर आदमी को सत्य और न्याय के लिए बड़े से बड़े ताकतवर आदमी के जुल्मो-अन्याय के खिलाफ अहिंसा से लड़ने की राह गांधी ने ही दिखाई है। दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान मोहनदास करमचंद गांधी ने रंगभेद का दंश भोगा। महसूम भी किया और पहचाना कि यह दंश महारोग का एक लक्षण मात्र है। उसका सहज एक परिणाम। असल महारोग है- रंग-द्वेष।इस महारोग की शिनाख्त के पश्चात गांधी ने मन ही मन सोचा कि मेरा कर्तव्य क्या है? मुझे यहां रहकर अपने हक और हकूक के लिए संघर्ष करना चाहिए? या अपने मुल्क लौट जाना चाहिए? अथवा अपमान का दंश सहकर अपना काम खत्म करके अपने देश वापस जाना चाहिए? गांधी ने संघर्ष की राह चुनी। इस निर्णय के बाद वे सार्वजनिक जीवन की तरफ कदम- दर- कदम बढ़ाने लगे। लोगों से जुड़ते गए। संस्था बनाई। संगठन बनाया। इंडियन ओपिनियन अखबार निकाला। दोहरी चुनौती थी गांधी के सामने।एक रंगभेद निजाम की नीतियों के खिलाफ संघर्ष। इससे सम्बद्ध एक चुनौती और भी थी। रंगभेद की मार्फत जिन्हें विशेषाधिकार हासिल था उसके नजारा सा संघर्ष। दो दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीय जो रोज-ब-रोज रंगभेद का दंश झेलते हुए इसे वैद्य सहज एवं स्वाभाविक मान चुके थे उनकी मानसिक बुनावट से संघर्ष। इन्हें रंगभेद की अमानवीयता का एहसास कराना यह समझाना कि रंगभेद की मुखालफत में एकजुट होकर संघर्ष करना हमारा फर्ज है कि इससे निजात पाया जा सकता है। संघर्ष के पक्ष में लोगों को बनाए रखने और संघर्ष को अपने नजरिए के हिसाब से जारी रखने के साथ-साथ जिससे संघर्ष कर रहे थे उसे अपना पक्ष समझाने के लिए गांधी को भाषण करते लेख लिखते। दक्षिण अफ्रीका में हुए संघर्ष में गांधी केंद्रीय शख्सियत के रूप मे उभरे। सैकड़ों साल की गुलामी से जकड़े भारत का तन और मन दोनों ही बीमार थे।वो सीधे तन कर खड़ा भी न हो सकता था। उसे बोलने में भी डर लगता था। गांधी ने इस लाचारी को सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने पर 1917 में अंग्रेजों द्वारा बिहार में चंपारण में अंग्रेजो के खिलाफ उनके द्वारा चलाए गए सत्याग्रह आंदोलन में देखा। उन्होंने सत्याग्रह की अवधारणा धारण कर भारत की आजादी के लिए उसके टूटे मन को ताकत देने का काम इस तरह किया कि जो लड़ नहीं सकते वह बोल तो सकते हैं बोल नहीं सकते तो मौन समर्थन तो दे सकते हैं। कमजोर से कमजोर के दिल- दिमाग में एक आग प्रज्ज्वलित कर रोशनी देने का काम किया। पूरे देश और दुनिया को भारत की गुलामी की और उसके दर्द की तस्वीर दिखाई। आग से निकली गांधी रूपी रोशनी में जो भी नही लिया या तपकर बने गांधी रूपी पारस को जिसने भी छू लिया वह सोना बन गया। उसके घर में आजादी की आग लग गई।पं मोतीलाल नेहरू ने भी उस आग में तपकर बने गांधी रूपी पारस को छू लिया। उनका पूरा परिवार जो अंग्रेज कमिश्नर अमीर उमराव की पार्टी से रोशन होता था। देश की आजादी के लिए वह पूरा परिवार जेल जाने लगा। खान अब्दुल गफ्फार खान नेल्सन मंडेला मार्टिन लूथर राम मनोहर लोहियालोकनायक जयप्रकाश नारायण से लेकर आजादी इंसाफ और इंसानियत के लिए मर मिटने वालों की एक लंबी श्रृंखला है। जो गांधी रूपी पारस को छूकर सोना और सत्याग्रह की भट्टी में तप कर खुद पारस बन गए। आग को जिसने भी छुआ उसकी रोशनी जहां भी पहुंची उसकी जिंदगी में रात का अंधकार खत्म हुआ और नया सवेरा आ गया। गांधी ने दुनिया में जिस अंग्रेजी राज की हुकूमत चलती थी जिसका सूरज कभी नहीं डूबता था उसके हीरे मोती सूट-बूट में वायसराय के साथ अपनी धोती में लिपटी अर्धनग्न देह में एक टेबल पर एलुमिनियम के डब्बे में खुद का बना सादा खाना खाया। जो सामान्य अंग्रेज के साथ संभव नहीं था। यह विचित्र किंतु सत्य का नजारा था लेकिन पाखंड का वाहक नहीं था। बहुत ही स्वाभाविक था। गांधी ने अपनी पत्नी को डांट कर उनसे आश्रम में शौचालय साफ करवाया। पुत्र का विद्रोह झेला। गांधी के सिद्धांतों से उनका आश्रम भी जेल था और सत्याग्रह से जेल भी आश्रम था। गांधी आजादी में आजादी में हिंसक बनकर राह भटकने पर आंदोलन समाप्त कर देते थे। उन्हें साधन की अपवित्रता मंजूर नहीं थी। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान गांधी महज देश की आजादी के लिए प्राण-पण से नहीं जुटे थे अपितु इसके साथ ही अपने आदर्श के अनुकूल लोगों का मानसिक बुनावट रचने के प्रयास कर रहे थे। गांधी प्रयासरत थे एक ऐसे सम्पूर्ण मनुष्य की रचना में जो भौतिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित हो। सुप्रसिद्ध गांधीवादी विचारक एवं पद्मश्री से सम्मानित प्रो. रामजी सिंह बताते हैं कि -अपने विचार को जाहिर करने के लिए गांधी ने हिंद स्वराज रचा। इस किताब में हिंदुस्तान की वास्तविक दशा बताई और अपने विचार की दिशा भी बताई। वह पुस्तक गांधी की चेतना व चिंतन की बुनियाद भी है और बुलंदी भी।अपनी सोच को अमली रूप देने के लिए गांधी ने कई प्रयोग किए। जो सोचा अपने विचार जाहिर किए उस मार्ग पर पहला कदम खुद बढ़ाया। अपने मूल दृष्टिकोण- सत्य और अहिंसा का पक्ष अनेक मौकों पर स्पष्ट किया। इसकी अहमियत पर अनेक दफा प्रकाश डाला। गांधी अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने के लिए लड़े। गांधी की मातृभाषा गुजराती थी किन्तु उन्होंने देश की एकता के लिए हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने हिमायत की।15 अक्टूबर 1917 को भागलपुर के कटहलबाड़ी क्षेत्र में बिहारी छात्रों का सम्मेलन और महात्मा गांधी का अध्यक्षीय उदगार महत्वपूर्ण है। अपने संबोधन में महात्मा गांधी ने कहा था- ‘मुझे अध्यक्ष का पद देकर हिन्दी में व्याख्यान देने और सम्मेलन का काम हिन्दी में चलाने की अनुमति देकर आप विद्यार्थियों ने मेरे प्रति अपने प्रेम का परिचय दिया है।’ यह सम्मेलन आगे चलकर भारत की राजनीति विशेषकर स्वतंत्रता संग्राम में राजनीति का आधार बना जिससे घर-घर में स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद करना मुमकिन हो सका। काका कालेलकर ने इस सम्मेलन को राष्ट्रीय महत्व प्रदान कर राष्ट्रभाषा हिन्दी की बुनियाद डाली थी। गांधी पक्के के हिंदू थेलेकिन वे उससे भी बड़े मुसलमान ईसाई हरिजन बने।गांधी फकीर थेलेकिन बिड़ला बजाज से देश के लिए दोस्ती रखी। गांधी बोलते थे उससे ज्यादा दोनों हाथों से लिखते थे और पढ़ते थे गांधी ने सत्याग्रह को खुद पर धारण किया और हर बार नया रास्ता चुना। गांधीवाद भारत की जमीन पर उतर नहीं सका है। यह देश का दुर्भाग्य है। सुप्रसिद्घ गांधीवादी राजगोपाल पी. वही. का कहना है -भारत में महात्मा गांधी का बहुत सम्मान है ऐसा लगता नहीं है। जो पार्टी उनके नाम पर सत्ता में है या विपक्ष में है उन्हें गांधी से कोई लेना-देना नहीं है। सत्ता में बने रहने के लिए उनका नाम उपयोगी है तो उसे उपयोग करने में उन्हें कोई ऐतराज़ नहीं है उनके द्वारा सुझाव गए कार्यक्रमों के प्रति रत्ती भी श्रद्धा नहीं है। गांधी ने शरीर पर आधी धोती धारण की वो भी उनकी अनुभूति थी। दक्षिण अफ्रीका से भारत आए तो सूट-बूट में थे। भारत आकर उन्होंने धोती- कुर्ता निमास्तीन काठीबाड़ी पगड़ी धारण कर ली। बिहार में नील की खेती पर अंग्रेजों के विरुद्ध उनके सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय वे रोज सुबह लोगों के घरों पर उन्हें बुलाने जाते थे वे लोग दरवाजा नहीं खोलते थे क्योंकि घर में महिलाओं के तन पर पूरे वस्त्र नहीं होते थे। वे बिहार मद्रास गए। वहां एक सभा में भाषण कर रहे थे लेकिन उनके दिमाग में दृश्य बिहार की महिलाओं का घूम रहा था वह मंच से उतरे उनके दिमाग में विचार आया कि जिस देश में नारी के तन पर वस्त्र नहीं वहां पर मैं अकेला पांच लोगों के वस्त्र कैसे पहन सकता हूं और सिर्फ धोती धारण कर ली। आध्यात्मिक रूप से श्रेष्ठ मनुष्य की रचना गांधी के मुताबिक आधुनिक सभ्यता में मुमकिन नहीं। इसलिए गांधी ने आधुनिक सभ्यता के बरअक्स कर पहलु के बारे में सोचा और चिंतन का इजहार किया। बड़े -बड़े कल-कारखानों के समानान्तर छोटे-छोटे उद्योग-धंधे और नगर केन्द्रित विकास के बजाय गाँव को केन्द्र में रखकर विकेन्द्रित विकास का ढाँचा प्रस्ताव इसी मक़सद का परिणाम था। गांधी के स्वराज की राह में बाधा शैतानी सभ्यता के प्रति मोहभाव रखने वाले थे। इससे भी बड़ी बाधा पेश कर रहे थे प्राचीन संस्कृति के नाम पर समाज में अस्पृश्यता देवदासी जैसी घिनौनी प्रथा के समर्थक। साथ ही मंदिर में पूजा और मस्जिद में इबादत करने वालों के बीच दुश्मनी मानने- फैलाने वाले लोग। गांधी इन दोनों तरह के लोगों के कृत्य को धर्म विरोधी मानते थे ऐसे लोगों के खतरनाक रवैये के प्रति सचेत रहने के लिए प्रेरित करते थे। आजादी के बाद गांधी का मिशन कमीशन में बदल गया। बाद में कमीशन भी छोटा पड़ गया। वो एक काम्पिटीशन में बदल गया है। आज सत्ता की प्राप्ति हेतु मची आंधी दौड़ जिनमें साम-दाम-दंड-भेद से बने अश्वमेध के घोड़े पर बैठकर लूट खसोट की जिस किस्म की राजनीति हो रही है उसने गांधी की तस्वीर पर एक धुंध सी ला दी है लेकिन हकीकत इससे उलट भी है। न मालूम कहां कहां सा अपने हक के लिए मजदूरी खेती किसानी जल जंगल जमीनजाति संप्रदाय मीडिया पर पाबंदी बोली पर रोक शोषण गरीबी लाचारी जुल्म-अन्याय के विरुद्ध चल रहे संघर्ष और आती आवाजें बत्ती है कि गांधी अभी ज़िंदा है। हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। एक लंबे अरसे के बाद सभी राजनीतिक दल देश सही रास्ते पर ले जाने में पूर्ण रूप से विफल हुए हैं। गांधीवाद राजगोपाल पी. व्ही. कहते हैं कि -ताकतवर लोगों को ताकतवर बनाने तथा भ्रष्टाचार को सम्मानित करने में सभी राजनीतिक दलों की भूमिका रही है। वर्तमान वैश्वीकरण की इस व्यवस्था में जीवन जीने के संसाधनों को ताकतवर लोगों के हाथों में सौंपने के मामले में एक दूसरे को पीछे छोड़ते जा रहे हैं। स्वावलंबी समाज रचना के बदले कल्याणकारी शासन के नाम पर पूरे समाज को भिखमंगा बनाने में सभी पार्टियों बढ़-चढ़कर भूमिका है। गांधी को नकारना सबकी आवश्यकता है क्योंकि गांधी इन सब के लिए चुनौती बन कर खड़े हैं और ऐसे मौकों पुर जनसंगठनों और सामजिक संगठनों के बीच में टूटन पैदा करना इनकी आवश्यकता है ताकि इन्हें चुनौती देनेवाला कोई न रहें। राजनीति सेवा से सत्ता में बदल गयी है। भ्रष्टाचारऐश ऐश्वर्य भोग विलास ने सत्याग्रह पर ग्रहण लगा दिया है जिसकी गिरफ्त में देश के सभी राजनीतिक दल आ गए हैं। गांधी की प्रेम और अहिंसा की ताकत जो दुनिया की हर हिंसा और नफरत पर भारी थी। वह लुप्तप्राय दिखती है। ईएमएस / 29 जनवरी 23