ज़रा हटके
29-Jan-2023
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नई दिल्ली (ईएमएस)। जब हम आंख बंद करते हैं तब हमें कैसे अलग-अलग रंगों की मिश्रित आकृति दिखाई देती है। आखिर इस बारे में क्या कहता है विज्ञान ? वैज्ञानिकों का कहना है कि अलग अलग हालात में बंद आखों से हम अलग-अलग वजहों से रंग देखते हैं। जैसे अगर दिन में पूरे उजाले वाले हालात में जब हम आंखें बंद करते हैं। तो आंखे बंद करने पर भी कुछ रोशनी हमारी पलकों में से अंदर चली जाती हैं और हमें लालिमा दिखाई देती है। पलकों के अंत में जो हिस्सा आंख बंद होने पर मिलता है हां बहुत सारी खून की धमनियां होती हैं जिससे रोशनी उसी का लाल रंग दिखा देती हैं। लेकिन आमतौर पर हम जब भी अंधेरे में भी अपनी आंखें बंद करते हैं तो हमें कई रंग एक साथ दिखते हैं जो अजीब सी आकृतियां बनाती हैं। कभी बिंदुओं और चमकीले पैटर्न दिखाई देते हैं तो कभी सभी रंग किसी कैनवास पर गिर कर लहरों की तरह एक दूसरे से मिलते हुए दिखाई देते हैं। हैरानी की बात लग सकती है लेकिन सच यही है कि इस तरह के रंग घुप्प अंधेरे में खुली आंखों से भी दिखाई दे सकते हैं। या फिर सोते समय रात को अंधेरे में अचानक नींद खुलने पर भी दिखाई दे सकते हैं। इस तरह की के दृश्यों के अहसास को वैज्ञानिक फॉस्फीन्स कहते हैं जो प्रकाश की एक सम्वेदना होती है जोकि वास्तव में प्रकाश की वजह से होती ही नहीं है। फॉस्फीन्स एक तरह की प्रकाश की संवेदना है जिसमें प्रकाश का कोई योगदान नहीं है। यह आंखे या दिमाग में शुरू हो सकती है लेकिन यहां जिसका जिक्र हो रहा है वह रैटीना यानि आंख के पर्दे की सामान्य क्रियाओं की वजह से होती है। रेटीना ही आंखों के पीछे के हिस्से का पर्दा होता है जो प्रकाश की किरणों की पहचानने का काम करता है। दरअसल हमारी आंखे पलकें बंद होने पर या अंधेरे में काम करना बंद नहीं करती हैं। बल्कि आंखों से तब भी आंतरिक तौर पर प्रकाश का आभास देने वाले संकेत जाते रहते हैं। ये संकेत हमारे आंखों की कोशिकाएं बनाती हैं। इन्हीं कोशिकाओं की गतिविधियों के कारण ये रंग भी स्थिर नहीं बल्कि सक्रिय दिखाई देते हैं। ये सभी संकते दिमाग तक पहुंचते हैं जिन्हें दिमाग एक अव्यवस्थित गतिविधि की तरह महसूस करता है। हमारा दिमाग यह नहीं पहचान पाता है कि यह प्रभाव वास्तविक प्रकाश का है या नहीं। इसलिए हमें लगता है कि हम एक रंगीन पैटर्न देख रहे हैं जो असल में होता ही नहीं है। इस तरह से यह एक प्रकार का दृष्टिभ्रम है। इसके कई और कारणों से भी इस तरह के अहसास पैदा कर सकते हैं जैसे आंख मलने पर भी कोशिकाओं पर दबाव पड़ता है और फॉस्फीन्स का प्रभाव पैदा होता है। ऐसे में कई तरह के पैटर्न के अनुभव में आते हैं। सुदामा/ईएमएस 29 जनवरी 2023