============= तज दो मदिरापान तुम, वरना हो अवसान। मदिरा से दूरी रहे,तब ही हो उत्थान।। बहुत बड़ा अभिशाप है,यह जो मदिरापान। तन को जो दूर्बल करो,हर लेता सम्मान।। मदिरापानी लोग तो,होते हैं नाकाम। जीवन मुरझाता सदा,असमय आती शाम।। धन हर लेता,रोग दे,मदिरा करती नाश। जागें सारे लोग अब,समझें-बूझें काश।। मदिरा संग अनिष्ट है,मदिरा है अविवेक। तजकर मदिरापान अब,बन जायें सब नेक।। मदिरा रचती है कलह,दारुण दुख-आधार। तज मदिरा को हम रचें,अब सुखमय संसार।। मदिरा को रिपु मानकर,अभी करो तुम त्याग। तज दोगे मदिरा अगर,जाये क़िस्मत जाग।। मदिरा हरे विवेक को,रचे मूर्खता नित्य। नशा मारता ज़िन्दगी, नष्ट करे लालित्य।। शक्तिहीनता को रचे,लाती है अवसाद। मदिरा बहकाती हमें,कर देती बर्बाद।। मदिरा बिलकुल काल है,करती जो संसार। हरकर उजियारा सभी,ला देती अंधियार।। ईएमएस / 19 मार्च