लेख
26-Mar-2023
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कांग्रेस नेता और देश में लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में तेजी से उभर रहे राहुल गांधी के साथ जो हुआ, उसको लेकर कांग्रेस आक्रोशित है जबकि आम तौर पर जनता व्यथित है। क्योंकि एक लोकतांत्रिक देश में जब भी सत्ता निरंकुश होती है तो जनता विकल्प तलाश लेती है। एकतरफा बहुमत सत्ता को किस तरह अनियंत्रित कर देता है, यह भारतीय लोकतंत्र में पहले भी सामने आ चुका है और अब भी यही स्थिति है। राहुल गांधी को मानहानि के मामले में 2 साल की सजा सुना दी गई और इसके साथ ही उन्हें संसद की सदस्यता के अयोग्य घोषित कर दिया गया। कांग्रेस पूरे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है। उसने तय किया है कि जनता के बीच जाएगी। राहुल गांधी कह रहे हैं कि वह किसी से नहीं डरते। भारत की आवाज उठाते रहेंगे। उन्हें लोकसभा की सदस्यता चली जाने का कोई मलाल नहीं है। वैसे यह अवसर है जो राहुल गांधी को अनायास मिल गया है। यह भी संभव है कि सोची-समझी रणनीति के तहत कांग्रेस ने बहुत बड़ा दांव खेला है। कल तक विपक्ष के जो नेता कांग्रेस और राहुल गांधी के साथ खड़ा होने से बिचक रहे थे, वह आज राहुल और कांग्रेस के साथ खड़े हैं। यह राजनीतिक ध्रुवीकरण आगे चलकर कांग्रेस के कितने काम आएगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता। लेकिन शुरुआत हो गई है। यदि कांग्रेस राहुल गांधी की सजा के खिलाफ कानूनी रास्ता तय करने की बजाए जनता के बीच जाती है तो कांग्रेस के इतिहास में यह एक टर्निंग प्वाइंट होगा। कहा जा रहा है कि इंदिरा गांधी को भी अयोग्य घोषित किया गया था। सोनिया गांधी को भी विषम स्थिति का सामना करना पड़ा था लेकिन परिणाम गवाह हैं कि इंदिरा गांधी पूरी ताकत के साथ सत्ता में वापस आ गई थीं। किंतु उस दौर में कांग्रेस ने जो गलतियां कीं, उससे आहिस्ता आहिस्ता भारतीय जनता पार्टी पनपती चली गई। कांग्रेस के ही बहुतेरे नेताओं ने भाजपा का पोषण किया। वह अपने तात्कालिक लाभ के लिए भाजपा के नेताओं को संरक्षण देते रहे और कालांतर में स्थिति यह बन गई कि आज कांग्रेस महा संकट के दौर से गुजर रही है। उस के सबसे बड़े मैदानी नेता के सामने जटिल स्थिति उत्पन्न हुई है। कांग्रेस जब केंद्र की सत्ता में लगातार 10 साल तक रही, तब चाहती तो जाने कितने राजनीतिक दांवपेंच आजमा कर भाजपा के हौसले पस्त कर सकती थी लेकिन कांग्रेस के कई नेता भाजपा को आगे बढ़ाने के जिम्मेदार रहे हैं। कांग्रेस की सरकारों के समय भाजपा के लोगों को उपकृत किया गया। उसका दुष्परिणाम आज कांग्रेस को भोगना पड़ रहा है। अब भी कांग्रेस इस कमजोरी से निजात नहीं पा सकी है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में क्या हो रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेसी दुखी हैं जबकि भाजपा के नेताओं को सत्ता से बाहर होने के बावजूद किसी तरह की कोई कमी नहीं खटक रही। जब देश में कांग्रेस एकछत्र राज कर रही थी, सर्वाधिक राज्यों में उसकी सरकार चल रही थी तब यदि कांग्रेस ने भाजपा को पोषित नहीं किया होता तो कुपोषण का शिकार होकर भाजपा राजनीतिक तौर पर कमजोर बनी रहती। कहते हैं कि बोए बीज बबूल के, आम कहां से होय!कांग्रेस ने भी यही किया, जिसका खामियाजा उसे आज भुगतना पड़ रहा है। यह केवल एक इत्तेफाक नहीं है कि नेहरू गांधी खानदान के वफादार रहे कांग्रेसी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हीरो बताते हैं। कुछ नेता कांग्रेस से बगावत कर गए और भाजपा के सहयोगी के रूप में सामने हैं। यह इसका नतीजा है कि कांग्रेस ने अपने ऐसे नेताओं पर नजर नहीं रखी और वे भाजपा को आगे बढ़ाने में सीभूमिका निभाते रहे। क्या कांग्रेस के भीतर कांग्रेस के खिलाफ या यह कहें कि नेहरू गांधी परिवार के खिलाफ कोई साजिश चल रही है? इसका इशारा भाजपा की ओर से दिया जा रहा है। कांग्रेस को यह पता करना चाहिए कि राहुल गांधी को इस स्थिति में पहुंचाने के लिए कांग्रेस के भीतर से किसने कैसी साजिश रची। कांग्रेस ऐसी बातों पर भरोसा नहीं करेगी लेकिन तब भी स्पष्ट है कि कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले फिर से खड़ा होने के लिए आत्ममंथन करना होगा। उसे यह देखना होगा कि उसकी गलतियों अथवा दरियादिली का भाजपा को कोई फायदा नहीं मिलने पाये। यदि अब भी कांग्रेस के नेताओं ने भाजपा के साथ अपने अंतरंग संबंधों को दरकिनार नहीं किया तो फिर कांग्रेस को इसी हाल में गुजारा करना होगा। राहुल गांधी का संघर्ष सिरे चढ़ाना है तो कांग्रेस का शुद्धिकरण जरूरी है।