लेख
01-May-2023
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राकेश शरद से बहुत दिन से उसके साथ उसके गाँव चलने के लिए कह रहा था, तो इस बार छुट्टियों में शरद तैयार हो ही गया। ट्रेन फिर बस पकड़कर वे गाँव पहुंचे। परंपरागत गाँव,खेत-खलिहान,गाय-बैल, चौपाल, खपरीले मकान सब कुछ गाँव जैसा ही। पर पानी की ज़बरदस्त समस्या। सुबह से ही घर के लोग कुंए से पानी भरकर लाने का काम करने लगे।गांव भर का एक ही कुंआ। सारे लोग वहीं इकट्ठा थे।घरों में पानी की कोई आपूर्ति नहीं। कुछ घरों में हेंडपंप थे, पर पानी उतर जाने से उनमें भी पानी नहीं आ रहा था,तो गांव भर के लिए वह कुंआ ही एकमात्र सहारा था। कुंए का दृश्य देखकर शरद अचकचा गया। कुंए के चारों ओर लोग पानी के वर्तन लिए हुए खड़े थे। बाल्टी से पानी भरा जा रहा था। लोग पानी ढोकर घर ले जा रहे थे। यह देखकर शरद को पानी की क़ीमत समझ में आई। उसे याद हो आया कि शहर में वह किस तरह से नल खुला छोड़ देता है, पानी बहता रहता है, घर का कोई भी आदमी ध्यान ही नहीं देता।उसने तुरंत संकल्प लिया कि वह शहर लौटकर पानी की एक बूंद भी बरबाद नहीं होने देगा,क्योंकि पानी है तो जान है। वह इसी निष्कर्ष पर पहुंचा कि पानी की हर बूंद अमृत के समान है,इसलिए हमें हर हाल में पानी की बरबादी रोकनी होगी। ईएमएस/ 01 मई 23