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16-Aug-2025
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-विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय करने का मामला नई दिल्ली,(ईएमएस)। राष्ट्रपति और राज्यपाल के विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय करने को लेकर केंद्र ने सुप्रीम आदेश पर आपत्ति जाहिर की है। इसी साल अप्रैल में दो जजों की बेंच ने कहा था कि राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधेयकों पर एक तय समयसीमा के अंदर ही फैसला लेना चाहिए। दो जजों की बेंच ने कहा था कि किसी बिल पर फैसला लेने के लिए राष्ट्रपति को तीन माह और राज्यपालों को एक माह से ज्यादा का समय नहीं मिलना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता हैं, तब कोर्ट दखल दे सकता है। वहीं मामले पर केंद्र का कहना है कि अगर इस तरह से सुप्रीम कोर्ट दखल देता है, तब संवैधानिक अराजकता पैदा होगी। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित में जबाव देकर कहा है कि इस तरह की समयसीमा तय करने से संवैधानिक संकट पैदा होगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब देकर कहा कि आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को जो विशेष शक्तियां दी गई हैं, उसमें संविधान में संशोधन या फिर कानून निर्माताओं को हराने की मंशा से कदम उठाने का अधिकार नहीं मिला है। सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि इस तरह से राज्यपाल जैसे पद की गरिमा को कम नहीं कर सकते है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल या फिर राष्ट्रपति का पद लोकतांत्रिक व्यवस्था के शीर्ष पद पर हैं। अगर किसी तरह की परेशानी होती है, तब इस मामले को राजनीतिक और संवैधानिक तरीके से हैंडल किया जाएगा। इसमें न्यायपालिका का हस्तक्षेप उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि आर्टिकल 200 के तहत राज्यपाल के पास अधिकार है कि वे विधेयकों को मंजूरी दे सकते हैं या फिर राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। तमिलनाडु को लेकर सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 08 अप्रैल को फैसला देकर कहा था कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को भी बिल को मंजूरी देने को लेकर समयसीमा का पालन करना चाहिए। इसके बाद राष्ट्रपति कि ओर से प्रेसिडेंशियल रेफेरेंस भेजा गया जिसपर 12 अगस्त तक सभी पक्षों को लिखित जवाब देना था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत प्रेसिडेंशियल रेफरेंस भेजकर सुप्रीम कोर्ट से कुल 14 सवाल किए थे। अब सुप्रीम कोर्ट के एक संवैधानिक पीठ 19 अगस्त को मामले की सुनवाई करेगी जिसमें सीजेआई बीआर गवई भी शामिल होने वाले है। कोर्ट का कहना है कि दोनों पक्षों को बहस के लिए चार-चार दिन का मौका दिया जाएगा और 10 सितंबर तक सुनवाई पूरी होगी। सुनवाई की सुविधा के लिए दोनों को लिए सुप्रीम कोर्ट ने नोडल वकील नियुक्त कर दिया है। कपिल सिब्बल की तरफ से मिशा रोहतगी नोडल वकील होंगी। वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहती की तरफ से अमन मेहता नोडल वकील बनाया गया। आशीष दुबे / 16 अगस्त 2025