लेख
01-May-2023
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जल संकट दुनिया के लगभग सभी देशों के साथ भारत के लिए भी एक विकट समस्याबन चुका है। गर्मी के मौसम की शुरुआत के साथ स्थिति बिगड़ने लगती है।भारत में वैश्विक जनसंख्या का करीब 18 फीसदी हिस्सा निवास करता है, जबकिभारत को केवल चार फीसदी जल संसाधन ही उपलब्ध हैं। हालांकि देश के सातराज्यों की 8,220 ग्राम पंचायतों में भूजल प्रबंधन के लिए अटल भूजलयोजना चल रही है, लेकिन भूजल के गिरते स्तर के मद्देनजर इसे पूरी गंभीरता के साथ देशभर में चलाए जाने की दरकार है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की सीएसई रिपोर्ट में चेताते हुए कहा गया है कि भारत में गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु जैसी नदियां करोड़ों लोगों को पानी देती हैं, लेकिन नई वैज्ञानिक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की दस नदियों के सूखने का खतरा पैदा हो गया है। एक आकलन के अनुसार, दुनियाभर में इस समय करीब दो अरब लोग ऐसे हैं, जिन्हें स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा और इसके कारण लाखों लोग बीमार होकर असमय काल का ग्रास बन जाते हैं। हालांकि पृथ्वी का करीब तीन चौथाई हिस्सा पानी से लबालब है, लेकिन धरती पर मौजूद पानी के विशाल स्रोत में से महज एक-डेढ़ फीसदी पानी ही ऐसा है, जिसका उपयोग पेयजल या दैनिक क्रियाकलापों के लिए करना संभव है। हमारी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति भूमिगत जल से ही होती है, लेकिन इसकी मात्रा इतनी नहीं है कि लोगों की आवश्यकताएं पूरी हो सकें। इस समय दुनियाभर में तीन बिलियन लोगों के समक्ष पानी की समस्या मुंह बाए खड़ी है। विकासशील देशों में तो यह समस्या कुछ ज्यादा ही विकराल हो रही है, जहां करीब 95 फीसदी लोग इस समस्या को झेल रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान दुनिया को चेता चुके हैं कि उन्हें इस बात का डर है कि आगामी वर्षों में पानी की कमी गंभीर संघर्ष का कारण बन सकती है। अगर पृथ्वी पर जल संकट इसी कदर गहराता रहा तो इसे निश्चित मानकर चलना होगा कि पानी हासिल करने विभिन्न देश आपस में टकराने लगेंगे और दो अलग-अलग देशों के बीच युद्ध की नौबत भी आ सकती है। जैसी कि आशंकाएं जताई जा रही है कि अगला विश्व युद्ध भी पानी की वजह से लड़ा जा सकता है। भारत ऐसा देश है, जिसकी गोद में कभी हजारों नदियां खेलती थीं, लेकिन आज इन हजारों नदियों में से कुछ सौ ही शेष बची हैं और वे भी अच्छी हालत में नहीं हैं। हर गांव-मोहल्ले में कुएं और तालाब हुआ करते थे, जो अब पूरी तरह गायब हो गए हैं। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पृथ्वी की सतह पर उपयोग में आने लायक पानी की मात्रा वैसे ही बहुत कम है और अगर भूमिगत जलस्तर भी निरंतर गिर रहा है तो हमारी पानी की आवश्यकताएं कैसे पूरी होंगी। इसके लिए वर्षा के पानी पर आश्रित रहना पड़ता है, लेकिन वर्षा के पानी का सही तरीके से संग्रहण न हो पाने के कारण इस पानी का भी समुचित उपयोग नहीं हो पाता। वर्षा के पानी का करीब 15 फीसद वाष्प के रूप में उड़ जाता है और करीब 40 फीसद पानी नदियों में बह जाता है, जबकि शेष पानी जमीन द्वारा सोख लिया जाता है, जिससे थोड़ा बहुत भूमिगत जल स्तर बढ़ता है और मिट्टी में नमी की मात्रा में कुछ बढ़ोतरी होती है। हमें यह समझना होगा कि बारिश की एक-एक बूंद बेशकीमती है, जिसे सहेजना बहुत जरूरी है। हम संकट का समाधान चाहते हैं तो समय रहते हमें समझना होगा कि पानी प्रकृति की अमूल्य देन है और यह बेहद जरूरी है कि हम प्राकृतिक संसाधनों को दूषित होने से बचाएं। ईएमएस / 01 मई 23