लेख
26-May-2023
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भारत के नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह आजादी के 75 वें साल में होने जा रहा है l इस ऐतिहासिक समारोह को ऐतिहासिक बनाने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी की जा रही है। हजारों वर्षों की राजतंत्र की गुलामी के बाद 1947 में मिली आजादी के बाद लोकतंत्र की शुरुआत हुई थी। जिसमें जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथ में सत्ता आई। 1950 में भारत का संविधान लागू हुआ। राजतंत्र के स्थान पर लोकतंत्र की स्थापना हुई। संविधान में जनता का, जनता के द्वारा जनता पर शासन को लोकतंत्र के रूप में परिभाषित किया गया। संसद भवन में संविधान को शासन व्यवस्था का प्रतीक मानकर रखा गया। नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में एक जो नई बात होने जा रही है। उसमें राजसी परंपरा का राजदंड स्थापित करने को लेकर देश में नई बहस शुरू हो गई है l यह कहा जा रहा है,कि आजादी के 75 वर्ष बाद क्या हम एक बार फिर राजतंत्र की ओर लौट रहे हैं। राजतंत्र में राजदंड की व्यवस्था होती थी। नए संसद भवन में राजदंड को स्थापित कर वर्तमान सरकार लोकतंत्र को, राजतंत्र में परिवर्तित करने के लिए राजदंड की स्थापना करने जा रही है? भारत अब लोकतांत्रिक राष्ट्र के स्थान पर हिंदू राष्ट्र बनाने का रास्ता तैयार किया जा रहा है? केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जानकारी देते हुए बताया है,कि तमिलनाडु से आए विद्वान धार्मिक क्रियाओं को पूर्ण करने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सैंगोल (राजदंड) सौंपेंगे। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा,कि यह राजदंड 15 अगस्त 1947 की आधी रात को अंग्रेज वाइसराय ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सत्ता हस्तांतरण के समय सौंपा था। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू से पूछा था, कि सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक को किस तरह से सेलिब्रेट करना चाहते हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सी राजगोपालाचारी ने जो मद्रास के मुख्यमंत्री रह चुके थे। उन्होंने नेहरू को राजदंड भेंट करने वाली तमिल राजवंश की परंपरा के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि नए राजा को सत्ता ग्रहण करते समय राजदंड भेंट किया जाता है। जिस तमिल राजा की परंपरा का उन्होंने उल्लेख किया उस राजा का राजदंड राजगुरु थिरवदथुरै मठ के अधीन था। राजगोपालाचारी ने सुझाव दिया था, कि आपके प्रधानमंत्री बनने पर माउंटबेटन राजदंड, स्वतंत्रता और सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में ले सकते हैं। कांग्रेस पार्टी एवं जवाहरलाल नेहरु राजगोपालाचारी के इस मार्गदर्शन से सहमत हो गए थे। इसकी जानकारी उन्होंने लॉर्ड माउंटबेटन को दी। राजा गोपालाचारी के निर्देशन में मद्रास के 1 जोहरी को सोने का राजदंड बनाने को कहा गया। राजदंड के ऊपर नंदी की आकृति उकेरी गई। राजदंड को दिल्ली लाने के लिए जवाहरलाल नेहरू ने एक विशेष विमान भेजा था। 14 अगस्त 1947 की रात 11:45 बजे मठ के पुजारी ने यह राजदंड माउंटबेटन को सौंपा था। इसके बाद राजदंड में पवित्र जल छिड़का गया, इसे सत्ता परिवर्तन के समय जवाहरलाल नेहरू को सौपा गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत किस तरह की शासन व्यवस्था को अपनाए। इसके लिए संविधान सभा का निर्माण किया गया। संविधान सभा में सभी पक्षों के विद्वानों को रखा गया। संविधान सभा ने स्वतंत्रता के पश्चात नागरिकों के मौलिक अधिकार और राजतंत्र के स्थान पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को वरीयता दी। 26 जनवरी 1950 को संसद में संविधान को स्थापित किया गया। उसके बाद से संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत शासन संचालित हो रहा है। जिसमें जनता ही शासक है। संविधान की प्रस्तावना के अनुसार जनता का, जनता के द्वारा, जनता का शासन, की अवधारणा से शासन व्यवस्था चल रही है। भारत में राजाओं द्वारा राज तिलक होने के अवसर पर राजपुरोहित के माध्यम से राजदंड नए राजा को प्रदान किया जाता था। धार्मिक आस्था और परंपरा के अनुसार राजदंड के विशेषाधिकार से शासन व्यवस्था चलाने की परंपरा राजतंत्र में रही है। हिंदू मठ और सन्यासियों के गुरुकुल में दंड के माध्यम से शिष्यों को नियंत्रित किए जाने परंपरा रही है। 1947 में भारत, ब्रिटिश राजतंत्र की गुलामी से आजाद हुआ था। राजदंड राजतंत्र की पहचान है। दंड की व्यवस्था राजा को विशेष अधिकार संपन्न बनाती थी। भारत में चुंकि लोकतांत्रिक व्यवस्था 1950 से लागू है। जिसके कारण सत्ता स्थानांतरण के प्रतीक के रूप में मिला राजदंड कभी संसद में स्थापित नहीं किया गया। आजादी के अमृत काल में जिस तरह से हिंदू राष्ट्र बनाने की बात हो रही है। संसद का नया भवन बनाया गया है। उसमें राजदंड के रूप में (सैंगोल) को हिंदू धार्मिक परंपरा के विधि विधान से, स्थापित किया जा रहा है। इससे एक बार फिर लोकतंत्र के स्थान पर राजतंत्र लागू करने की अटकलें शुरू हो गई हैं। विपक्षी राजनीतिक दल संसद के लोकार्पण कार्यक्रम का बहिष्कार कर रहे हैं। लोकतंत्र बचाने की बात भी कई मंचों से कही जा रही है। धार्मिक स्थलों और हिंदू संतो द्वारा हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग, पुरजोर तरीके से पिछले कई वर्षों से हो रही है। इसको लेकर नई संसद भवन के उद्घाटन समारोह को लेकर भारत की राजनीति एवं राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच में एक नई बहस छिड़ गई है। आम जनता में भी इसको लेकर चर्चाएं हो रही हैं। राजतंत्र और लोकतंत्र के अंतर और अधिकारों को जानने की जिज्ञासा भी आम जनमानस के बीच में शुरू हो गई है। आजादी के 75 वर्ष के बाद, जब जनता पर जनता का शासन है। कोई राजा का शासन नहीं है। ऐसी स्थिति में राजदंड को लेकर जो नया विवाद शुरू है, उसको लेकर अटकलों और विवाद का बाजार गर्म है। ईएमएस / 26 मई