लेख
02-Jun-2023
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भारत की आंदोलनकारी महिला खिलाड़ियों को यह समझ में आने लगा है, कि सराहना कुछ समय के लिए ही मिलती है। उसके बाद तो उन्हें अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए कदम-कदम पर संघर्ष करना ही पड़ता है। वैश्विक स्तर का मेडल हासिल करने के बाद जब महिला खिलाड़ी भारत आई थी, तो एयरपोर्ट से लेकर प्रधानमंत्री, खेल मंत्री, मुख्यमंत्री सब ने उनका सम्मान किया। उत्साह बढ़ाने के लिए उन्हें पुरस्कृत भी किया। पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का गौरव बढ़ाने वाली महिला खिलाड़ियों को यौन उत्पीड़न की शिकायत करने के बाद, न्याय मिलना तो दूर, उनका जो सम्मान था, वह भी चला गया। जिस तरीके से उन्हें अपने ही देश में प्रताड़ित किया जा रहा है। उसके बाद कई नए सवाल भारत की न्याय व्यवस्था को लेकर भी खड़े हो रहे हैं। क्या भारत में दो तरह के कानून है। एक सरकार जैसा चाहे कानून का उपयोग कर सके। दूसरा उनके लिए जिन्हें सरकार जिस तरह से प्रताड़ित करना चाहे, उसे प्रताड़ित कर सके। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जिन महिला खिलाड़ियों की एफआईआर दर्ज हुई। उन्ही महिला खिलाड़ियों के चरित्र पर किस तरह की उंगली उठाई जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद, दिल्ली पुलिस ने दर्ज एफआईआर पर, कार्रवाई करने के स्थान पर जांच के नाम पर दोषी को बचाने का शर्मनाक प्रयास कर रही है। पास्को एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी के नियम की व्यवस्था होने के बाद भी, दिल्ली पुलिस आरोपी को गिरफ्तार करने के स्थान पर, शिकायत दर्ज करने वालों पर ही उत्पीड़न की कार्रवाई कर रही है। उसका असर अब सारे देश में देखने को मिलने लगा है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गौरव प्राप्त खिलाड़ियों को जहां सम्मान और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। उसके स्थान पर जिस तरह से आंदोलन के दौरान जंतर-मंतर से उन्हें अमानवीय ढंग से गिरफ्तार किया गया। इसे सारे देश ने देखा। महिला खिलाड़ियों ने यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने में इतनी देर क्यों लगाई। इस संबंध में जब पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि यदि उस समय हम यौन उत्पीड़न की शिकायत करते, तो हमारे परिवार के लोग हमें ट्रेनिंग और खेलने से ही रोक देते। हमारी शादियां करवा देते। अन्तरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा जीतने के बाद भी यौन उत्पीड़न रुक नहीं रहा था। जिसके कारण हमें यह लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इस घटना की बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई है। इसके बाद भी सरकार, खेल मंत्रालय, दिल्ली पुलिस आरोपी को बचाने का हर संभव प्रयास कर रही है। केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी की छवि इस कारण विपरीत असर पड़ रहा है। महिला और युवा जो हिंदुत्व के नाम पर आंख मूंदकर भारतीय जनता पार्टी को समर्थन करते थे। आंदोलनकारी सभी खिलाड़ी हिंदू ही हैं। केन्द्र सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के रहते हुए, हिंदू खिलाड़ियों, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के तिरंगे हिन्दू हृदय सम्राट को फैराकर, जिन्होंने भारत का सम्मान बढ़ाया था। उनके साथ जो दुर्वव्यवहार हो रहा है। यौन उत्पीड़न के साथ-साथ उनके चरित्र पर जो गलत आरोप लगाए जा रहे हैं। उससे महिला खिलाड़ी हतप्रभ हैं। इसका असर अब न्यायपालिका की साख पर भी पड़ने लगा है। महिला पहलवान न्याय के लिये सुप्रीम कोर्ट याचिका लेकर गए थे। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से एफआईआर दर्ज हुई। पॉक्सो एक्टमें एफआईआर होने के बाद भी दिल्ली पुलिस द्वारा आरोपी को गिरफ्तार नहीं करना भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका की स्थिति, विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता को लेकर दो तरह के कानून बन गए है। सक्षम के लिये अलग कानून, कमजोर के लिये अलग कानून। आम आदमी संसय में हैं। जब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त महिला खिलाड़ियों के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है। तो न्याय कैसे मिलेगा, आम लोगों के मन में न्याय पालिका के प्रति अविश्वास देखने को मिल रहा है। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कहीं से भी इसे अच्छा नहीं कहा जा सकता है। पास्को एक्ट के आरोपी सांसद की गिरफ्तारी नहीं होने तथा नवीन संसद के शुभारंभ समारोह में वीवीआइपी गेस्ट का दर्जा मिलना महिला खिलाड़ियों के घावों में नमक डालने जैसा था। देश एवं विदेशों में इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हो रही है। ईएमएस / 02 जून 23