लेख
02-Jun-2023
...


फर्जीवाड़े की खबरें कोई नई बात नहीं है, जब तब छपती रहती हैं। हालात ये हो गए हैं कि काफी दिनों तक कोई नया फर्जीवाड़ा सा जीसीमने न आए तो लगने लगता है, क्या हो गया ‌? नेता-घोटालेबाज समीकरण में कुछ घालमेल हो गया है या फिर सदाचार पखवाड़ा आ गया है। ताज़ा तरीन मामला मध्‍य प्रदेश के निजी नर्सिंग कालेजों में हुए फर्जीवाड़े का है जो तकरीबन रोज ही अखबारों की सुर्खियां बटोर रहा है। अभी तक जो कुछ भी सामने आया है वह सरकारी तंत्र की लापरवाही और शिक्षा के नाम पर लूट की पहचान बन चुके शिक्षा माफिया और सरकारी तंत्र द्वारा पैसे की अंधी हवस में की गई ऐसी साठगांठ उजागर करता है कि कहते कलेजा मुंह को आता है। प्रदेश में 700 से ज्यादा नर्सिंग कॉलेज संचालित हैं। इन कालेजों पर नियंत्रण और निगरानी करने वाली संस्था एमपीएनआरसी वर्तमान में सरकार की मनपसंद रोज़गार व्यवस्था यानी आउटसोर्स कर्मचारियों के हवाले है और प्रशासक और रजिस्ट्रार को छोड़ बाकी सभी कर्मचारी आउटसोर्स पर हैं। इन कर्मचारियों की योग्यता जानने के लिए सूचना के अधिकार कानून के तहत कई आवेदन भी आए, पर काउंसिल ने जानकारी देने से मना कर दिया। समय समय पर प्रकाश में आने वाली अनियमितताओं के बावजूद इन नर्सिंग कालेजों में से अधिकांश में चल रही धांधलियां बदस्तूर जारी रहीं। प्रशासनिक रुख में संजीदगी तब आई जब माननीय उच्च न्यायालय ने इस संबंध में जारी याचिका का संज्ञान लिया और सीबीआई ने जांच शुरू की। प्रदेश के 364 नर्सिंग कालेज इस जांच के घेरे में हैं। इन कालेजों के मैनेजमेंट और सरकारी निगरानी तंत्र ने जैसे इस बात का बीड़ा ही उठा लिया था कि तय मापदंड सिर्फ कागजों के लिए बने हैं और उन्हें लेकर गंभीर होने की कोई जरूरत नहीं है। जांच में सामने आया है कि कुछ कालेज ऐसे हैं जो 2400 वर्ग फुट में बने किराये के मकानों और यहां तक कि एक-दो कमरों तक में चल रहे हैं। स्पष्ट है कि मान्यता/संबद्धता संबंधी कार्यवाही हेतु आवश्यक स्थल निरीक्षण के लिए जिम्मेदार लोगों ने या तो अपने वातानुकूलित आफिसों से निकलने की जहमत ही नहीं उठाई या फ़िर उनकी आंखों पर नोटों की ऐसी पट्टी बांधी गई कि गुलाबी के अलावा दूसरा रंग दिखाई देना ही बंद हो गया। और तो और कई कॉलेजों ने मोटी फीस लेकर प्रवेश पहले दे दिए और निर्धारित मान्यता/संबद्धता बाद में प्राप्त की। दूसरा संगीन मामला फर्जीवाड़े में शामिल इन कालेजों में काम करने वाली फैकल्टी का निकला। एक ही मास्साब तीन-तीन, चार-चार कालेजों में शिक्षा देते पाए गए। कई अद्भुत प्रतिभा के धनी ऐसे भी निकले जो एक से अधिक कालेजों में प्राचार्य जैसा महत्वपूर्ण ओहदा संभाले हुए थे। हम संचार क्रांति के उस युग में रह रहे हैं जब आधार कार्ड, पैनकार्ड, वोटर कार्ड जैसी आईडी के बलबूते देश के सौ करोड़ से ज्यादा लोगों का बिना किसी दोहराव के ख़्वाब टीका करण अभियान संभव हो सका। इसी क्रांति ने यह संभव बनाया है कि पेटीएम जैसे यूपीआई माध्यमों से हर दिन करोड़ों लेन-देन होते हैं और मजाल है कि पैसा किसी गलत अकाउंट में चला जाए। जाहिर है, या तो जिम्मेदारों ने डुप्लीकेट फैकल्टी की जांच के लिए केवायसी के इन फूलप्रूफ साधनों पर गौर ही नही किया या जानबूझकर इसे अनदेखा किया। बहरहाल मानवीय उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद सरकार हरकत में आई दिखती है। जरा से मामले पर आसमान सर पे उठा लेने वाला विपक्ष भी इस विषय पर खामोश है। और यह खामोशी यकीनन बेवजह नहीं है। जांच में शामिल कॉलेजों में से कई ृराजनीतिक दलों से जुड़े बड़े नेताओं के भी है। हमाम में सब नंगे हैं। बकौल स्व. श्रीलाल शुक्ल, जिसकी दुम उठाकर देखो वही मादा नजर आता है। हाईकोर्ट में बहस के दौरान अदालत ने भी बेहद तल्ख टिप्पणी की है कि हमसे ज्यादा मत सुनिए, ये नर्सिंग कॉलेज राजनीतिक संरक्षण में चल रहे हैं। ताजा तरीन खबर यह है कि ऐसे 364 कालेजों के फर्जीवाड़े की जांच सीबीआई कर रही है । पाया गया है कि 200 कालेजों में डुप्लीकेट फैकल्टी काम कर रही थी यानी एक ही बंदा दो से तीन कॉलेजों में बहैसियत शिक्षक या प्रिंसिपल नियुक्त था । अब इन सब नियुक्तियों की जांच के लिए दस्तावेज के तौर पर फैकल्टी का पैन कार्ड आधार कार्ड के साथ ही सैलरी अकाउंट का बैंक स्टेटमेंट भी मांगा गया है। दरअसल इस सारी सख्ती की वजह यह भी है कि अगर सीबीआई जांच में गड़बड़ी मिलती है तो नर्सिंग काउंसिल और मेडिकल यूनिवर्सिटी भी लपेटे में आएंगी । यह परिस्थितियां समूची शिक्षा व्यवस्था के निजीकरण का एक भयावह पहलू हैं। निजीकरण व्यवस्था सिद्धांतत: बुरी नहीं है बशर्ते उसके नियमन के लिए लागू सरकारी तंत्र अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाए। बस यहीं चूक हो रही है। पुरानी कहावत है, जब बाड़ी ही खेत खाने लगे तो फसल का भगवान ही मालिक है। सरकार शाश्वत परंपरा का सतत निर्वाह करते हुए मूल बीमारी छोड़कर लक्षणों के इलाज में व्यस्त है। हाईकोर्ट के दबाव में फर्जी कालेजों के खिलाफ एक्शन ले रही है, जुर्माना वसूल रही है। मगर व्यवस्था के उस सरकारी तंत्र के खिलाफ जिसकी संगामित्ती और भ्रष्टाचार के चलते यह फर्जीवाड़ा संभव हुआ , के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। क्या इसलिए कि ऐसी किसी कार्यवाही की आंच से उसका अपना दामन जलने का खतरा है ! बिना मापदंड चल रहे जिन दो सौ कालेजों की मान्यता समाप्त की गई उनकी जांच करने वाले अधिकारियों पर क्या कार्रवाई की गई, पता नहीं है। जब ऐसे कालेजों के पास निर्धारित संसाधन ही नहीं थे तो फिर निरीक्षण दल ने मान्यता देने की अनुशंसा कैसे कर दी ! बहरहाल अपने मां बाप की गाढ़ी कमाई इन कालेजों की भारी भरकम फीस में लुटा देने वाले छात्र छात्राओं का भविष्य दांव पर लगा है। कई विवादग्रस्त कालेजों की मान्यता रद्द/स्थगित हो गई है। सैकड़ों छात्र छात्राओं के एनरोलमेंट कैंसिल हो गए हैं। परीक्षा परिणाम का कहीं अता-पता नहीं है और भावी परीक्षाएं भी अनिश्चित हैं। सरकार रोज़गार देने के वादे करते नहीं थकती मगर यह भूल‌ जाती है कि रोजगार पाने की मूल आवश्यकता यानी संबंधित शैक्षणिक योग्यता दांव पर लगी हुई है। मजबूर अभिभावक और बच्चे इन फर्जी संस्थाओं से मिलने वाली तथाकथित शैक्षणिक योग्यता को रोजगार पाने का एकमात्र गेटपास मानकर उनमें प्रवेश लेते हैं और लुटते हैं। सरकार अब अपने खुद के दामन में झांकेगी और ऐसे फर्जीवाड़े रोकने के ठोस उपाय करेगी। या फिर ऐसी अनियमितताओं की जांच के लिए हमेशा न्यायालय के हस्तक्षेप की प्रतीक्षा ही की जाती रहेगी। अब जिसको जैसा लगे, जो कह दिया सो कह दिया। ईएमएस/02 जून 23