लेख
05-Jun-2023
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चुनावी कुंभ मेले की आहट ज्यों-ज्यौं नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे प्रतिदिन नई राजनीतिक दुकानें खुलती जा रही है, इसी तरह की एक दुकान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जी ने खोली हैं, जिसे मोहब्बत की दुकान नाम दिया गया है, उनका यह भी दावा है कि उन्होंने यह दुकान नफरत के बाजार में खोलने का दुस्साहस किया है, और अपनी इस दुकान से उन्होंने वोटों की बरसात की उम्मीद में पकवान बेचना भी शुरू कर दिए दिया है, किंतु ऐसे पकवानों के स्वाद विशेषज्ञों का कहना है कि यह पकवान फीके हैं, इनमें अपेक्षित स्वाद नहीं है, वह इसलिए क्योंकि इन पकवानों में प्यार व स्नेह की मिठाई का मिश्रण नहीं, बल्कि देश के प्रधान की आलोचना का कसीला रस डाला गया है, जो मोहब्बत की मिठास का एहसास नहीं कराता। फिर उन्होंने अपने पकवानों की बिक्री की शुरुआत भी अपने देश में नहीं बल्कि सात समंदर पार जाकर अमेरिका में की जो उनके स्वयं के लिए कतई श्रेयस्कर नहीं कही जा सकती। अब राहुल जी के इस करतब को भारत में इसलिए आश्चर्य से देखा जा रहा है, क्योंकि अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को शहर में जाकर भारत के प्रधानमंत्री व उनकी नीतियों की आलोचना करने का क्या मतलब है? क्या राहुल जी मोदी जी की अंतरराष्ट्रीय छवि से परेशान हैं और इसलिए विदेशों में जाकर उनकी आलोचना कर रहे हैं? इसके पहले भी राहुल जी ने लंदन जाकर वहां मोदी जी की नीतियों के साथ उनकी व्यक्तिगत आलोचना की थी आखिर कांग्रेस और स्वयं उन्हें भारत में राजनीति करना है या विदेश में? फिर विदेश प्रवासी भारतीय क्या राहुल जी के बयानों से प्रभावित होकर भारत में मोदी के खिलाफ वोट करने आएंगे? अब तो यह अक्सर देखा जाने लगा है कि राहुल जी विदेशों में जाकर ऐसी बातें कह देते हैं जो भारत की प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं होती, इस बार उन्होंने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान उस झूठे विमर्श को हवा दी जिसमें कहा जाता है कि भारत में अल्पसंख्यकों पर हमले किए जा रहे हैं, अब यहां अहम सवाल यही पूछा जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राहुल जी भारत की छवि कैसी बनाना चाहते हैं? विदेशों में जाकर मोदी जी के बारे में अनावश्यक बेहुदी टिप्पणियां करने से क्या भारत में कांग्रेस की सरकार बन जाएगी? ....फिर मोदी जी के बारे में टिप्पणियां भी कैसी? उन्होंने कहा कि मोदी जी तो भगवान को भी समझा सकते हैं कि ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई? और भगवान को दुनिया कैसे चलाना चाहिए? आखिर अमेरिका में जाकर वहां बसे भारतीयों के सामने इस तरह की बातें करने का क्या मतलब है? क्या राहुल जी को भारत में इस तरह के विचार प्रकट करने से कोई रोक रहा है? ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री जी भी कहां पीछे रहने वाले थे? उन्होंने भी राहुल जी को उनके पूज्य पिताजी स्वर्गीय राजीव जी के उस कथन की याद दिला दी जिसमें उन्होंने सरकार के जनहित के कार्यों की राशि का 85 फ़ीसदी हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने व केवल शेष 15 फ़ीसदी भाग जनहित कार्यों में खर्च होने की बात कही थी, मोदी का कहना था कि यदि कांग्रेस की गारंटीयां पूरी हो जाए तो देश दिवालिया हो जाए। इस तरह का फिलहाल चुनाव पूर्व का वाक युद्ध जारी है अब देखिए आगे आगे और क्या होता है? किन्तु.... हां.... फिर वही मोहब्बत की दुकान का सवाल यदि बकौल राहुल ने नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान चलाना ही है तो वह अपने ही देश में चलाएं विदेश में चलाने का कोई मतलब नहीं है? ईएमएस / 05 जून 23