लेख
22-Sep-2023
...


================= (1) करना मत तुम भेद अब,बेटा-बेटी एक। बेटी प्रति यदि हेयता,वह बंदा नहिं नेक।। वह बंदा नहिं नेक,करे दुर्गुण को पोषित। बेटी हो मायूस,व्यर्थ ही होती शोषित।। दूषित हो संसार,पड़ेगा हमको भरना। संतानों में भेद,बुरा होता है करना।। (2) बेटा कुल का नूर है,तो बेटी है लाज। बेटा है संगीत तो,बेटी लगती साज़।। बेटी कभी न बोझ,बढ़ाती दो कुल आगे। उससे डरकर दूर,सदा अँधियारा भागे।। जहाँ पल रहा भेद,वहाँ तो मौसम हेटा। नहिं किंचित उत्थान,जहाँ बस भाता बेटा।। (3) गाओ प्रियवर गीत तुम,समरसता के आज। सुता और सुत एक हैं,जाने सकल समाज।। जाने सकल समाज,बराबर दोनों मानो। बेटी कभी न बोझ,बात यह चोखी जानो।। संतानों से नेह,बराबर उर में लाओ। फिर सब कुछ जयकार,अमन के नग़मे गाओ।। (4) जाने कैसी भिन्नता,मान रहे हैं लोग। बेटा-बेटी भेद का,पाले बैठे रोग।। पाले बैठे रोग,बेटियाँ होतीं आहत। बेटी कभी न बोझ,करो नहिं ख़ुद को तुम क्षत। कहता सच मैं आज,भले कोई नहिं माने। बेटा-बेटी एक,सकल यह युग अब जाने।। (5) अँधियारा छाने लगा,भरी दुपहरी आज। सामाजिक अपराध का,करते हम सब काज।। करते हम सब काज,भेद संतति में देखें। बेटी को तो बोझ,मूर्ख ही केवल लेखें।। दोनों एक समान,सदा कुल का उजियारा। मिलकर करते दूर,आज घर का अँधियारा।। ईएमएस / 22 सितम्बर 23