लेख
25-Sep-2023
...


इन दिनों मिडिल क्लास वाले भारी परेशान हैं,उनका कहना है कि सरकारें उनका कोई ध्यान नहीं रख रही, जो कुछ भी कर रही है या तो उच्च वर्ग के लिए कर रही है या फिर निम्न वर्ग के लिए ,हम लोग बीच में लटके हुए हैं हमारी तरफ किसी का ध्यान नहीं है कि हम किस तरह अपनी रोजी-रोटी चल रहे हैं । अब इन मीडिल क्लास वालों को कौन समझाए कि भैया इतिहास गवाह है बीच वाले को कभी कोई महत्व नहीं मिला ,घर में ही देख लो बड़े बेटे को बाप चाहता है तो सबसे छोटा अम्मा का लाडला होता है, मंझला तो हमेशा से ही उपेक्षित रहा है और रहेगा। पुराण में भी कहा गया है कि जब विश्वामित्र ने एक राजा को अपनी ताकत से स्वर्ग भेजा तो इंद्रदेव से उसे स्वर्ग से धकेल दिया पर विश्वामित्र की ताकत ने उसे धरती पर नहीं आने दिया और इंद्र ने उसे स्वर्ग में प्रवेश नहीं करने दिया वो बेचारा बीच में ही लटका रह गया जिससे त्रिशंकु कहा गया और वो ही त्रिशंकु वर्तमान में मिडिल क्लास बन गया है ,ये तो हजारों साल से चला आ रहा है आप अगर मंझले हो मिडिल क्लास के हो तो आप ऐसे ही अधर में लटके रहोगे, लेकिन इन मिडिल क्लास वालों से एक सवाल है कि हुजूर किसने कहा था कि आप मिडिल क्लास के घर में पैदा हो, हो जाते अंबानी अडानी के घर में सोने की चम्मच मुंह में दबाकर या फिर अवतरित हो जाते निचले तबके में, जहां बिजली अनाज, मकान, सब फ्री मिल रहा है और अब तो नगद नारायण भी हर महीने जेब में आ रहे हैं ,लेकिन आपको तो मिडिल क्लास में ही पैदा होना था तो हो गए अब चिल्लाचोंट मचाने से क्या होने वाला है? अपने केंद्रीय गृहमंत्री ने तो साफ-साफ पहले ही कह दिया था कि मिडिल क्लास से हमारा कोई लेना देना नहीं और क्यों न कहें, मिडिल क्लास वाले जब जब चुनाव होता है वोट डालने तो जाते नहीं ड्राइंग रूम में बैठकर जुगाली करते रहते हैं तो जब वोट नहीं तो नोट नहीं, ये तो साधारण सी बात है जो समझ लेना चाहिए इन मिडिल क्लास वालों को । लोग कहते हैं कि बहुत बड़ी ताकत है मिडिल क्लास वालों की, अपने को तो लग रहा है कि ये सब कहने की बातें हैं अगर मिडिल क्लास में इतनी ताकत होती तो सरकारें उनके चरणों पर आ गिरती लेकिन सरकारों को मालूम है कि अगर पैसे वालों को सपोर्ट करेंगे , बड़े-बड़े उद्योगपतियों का कर्ज माफ करेंगे उसके बदले में उनकी पार्टी को चंदा मिलेगा दूसरी तरफ निचले तबके को खुश करेंगे तो वोट मिलेंगे । इन मिडिल क्लास वालों से क्या मिलना है और जिससे मिलना नहीं उसको देने का फायदा क्या है ? अपने को तो पता लगा है कि तमाम मिडिल क्लास वाले 2009 में शुरू होने वाले एक टीवी सीरियल अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजे की तर्ज पर भगवान से एक ही प्रार्थना कर रहे हैं कि है ईश्वर अगले जनम मोहे मिडिल क्लास में पैदा न कीजो देखना है कि ऊपर वाला भी उनकी सुनता है या वो भी राजनेताओं की तरह उनकी प्रार्थना को इग्नोर कर देता है। इतने में तो शेर पकड़ लेते ऐसा माना जाता है कि चूहा सबसे कमजोर प्राणी है लेकिन वो बड़े-बड़े जाल को भी कुतर लेता है जहां कहीं किसी डिपार्टमेंट में घपलेबाजी होती है वहां फाइलों को कुतरवाने में चूहों की मदद ली जाती है ताकि उसकी जांच ना हो सके और जिम्मेदारी चूहों के सर पर डाल दी जाए , लेकिन क्या चूहा इतना पावरफुल हो सकता है कि एक चूहे को पकड़ने के लिए सरकार को 41000 रुपया खर्च करना पड़ जाए ? ये कोई गपबाजी नहीं बल्कि सच्चाई है। एक भाई साहब ने रेलवे में आरटीआई लगाई थी कि बताइए आप लोगों ने ट्रेनों में चूहे पकड़वाने के लिए कितना पैसा खर्च किया है और कितने चूहे पकड़े हैं। कहने को तो बहुत से रेलवे के डिवीजन है लेकिन जवाब सिरफ लखनऊ डिवीजन से मिला और उन्होंने बताया कि हमने 2 साल में करीब 69 लाख से ज्यादा रुपया चूहों को पकड़ने में लगा दिया और इन दो सालों में कुल जमा 168 चूहे हम लोगों ने पकड़े, आरटीआई वाले ने हिसाब लगाया तो पता लगा कि प्रति चूहा 41000 रुपए का खर्चा आया है दूसरे डिविजन इसलिए जवाब नहीं दे रहे कि हो सकता है उनका खर्च इससे भी ज्यादा बढ़कर आया हो। मानते हैं अपन इन चूहों को जिनके लिए रेलवे ने 2 साल में 69 लाख से ज्यादा रुपया खर्च कर दिया ।अगर उनका अपना घर होता तो एक पिंजरा ले आते हैं दो ढाई सौ रुपए का और एक झटके में चूहा पकड़ लेते लेकिन जब सरकारी पैसा है और वो भी चूहा पकड़ने के लिए है जो किसी भी चीज को कुतरने के लिए मशहूर है तो फिर ये कर्मचारी खुद ही चूहा बनकर सरकारी पैसे को कुतर गए ।अपन को तो लगता है कि जितनी राशि में रेलवे ने एक चूहा पकड़ा उस राशि में तो एक शेर पकड़ में आ जाता , लेकिन फिर सरकारी नोट कुतरने का मौका कैसे मिलता है खैर चलो गनीमत है कि 168 चूहे तो पकड़े गए देखना बस ये होगा कि ये चूहे फिर से उन डिब्बों में ना छोड़ दिए जाए ताकि अगली बार फिर इतना पैसा मिले और कर्मचारियों की पौ बारह हो जाए । जिसे देखो उसकी टिकट पक्की एमपी विधानसभा के चुनाव में थोड़ा टाइम है सुन रहे हैं कि अगले महीने तक आचार संहिता लग जाएगी और शायद नवंबर में वोटिंग होगी। इधर टिकट को चाहने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है और जिस भी उम्मीदवार से ये पूछो कि भैया क्या उम्मीद है तो एक ही जवाब मिलता है अपनी टिकट तो पक्की है भैया बस आशीर्वाद चाहिए अपनी तो हमेशा मैथ्स कमजोर रही है इसलिए समझ में नहीं आता कि एक टिकट दस लोग कैसे पक्की बता रहे हैं, कोई ऐसा नेता नहीं है जो ये कहता हो कि अभी कुछ कह नहीं सकते ,छाती ठोक कर ,फुल कॉन्फिडेंससे एक ही जवाब मिलता है कि अपनी टिकट बिल्कुल फाइनल है ऊपर वालों ने कह दिया है कि जाओ इलाके में काम करो ,अब ये ऊपर वाले कौन है जिनकी खुद की टिकट पक्की है कि नहीं लेकिन वे इन नेताओं को गारंटी जरूर दे रहे कि तुम लोग चिंता मत करो जब तक हम हैं तुम्हारी टिकट कोई नहीं काट सकता । उधर दूसरी तरफ पार्टी भारी पशोपेश में है कि टिकट दें तो किसको दें, टिकट एक है और लेने वाले दर्जनों । अपना तो पार्टियों से एक ही कहना है कि फालतू झंझट क्यों पालते हो जिसको टिकट नहीं दोगे वही नाराज हो जाएगा सबसे अच्छा है लॉटरी निकालो, जिसकी किस्मत जोर मार रही होगी उसके नाम की टिकट निकल आएगी आप लोगों पर भी पक्षपात का आरोप नहीं लगेगा ,आप भी कह सकते हो कि भैया टिकट उसकी किस्मत में थी अपन ने तो लॉटरी डाली थी सबको बाकायदा मौका दिया था अब जिसकी लाटरी निकल आई वह चुनाव लड़ेगा ना किसी से बुराई ना किसी से अच्छाई। सुपर हिट ऑफ़ द वीक एक औरत अकेले कब्रिस्तान मे एक कब्र पर बैठी थी। श्रीमान जी उधर से गुजरे और उससे पूछा तुम्हें कब्रिस्तान अकेले में बैठे हुए डर नहीं लगता क्या इसमें डरने की क्या बात है कब्र के अंदर गर्मी लग रही थी तो बाहर आ गई । औरत ने कहा तब से श्रीमान जी बेहोश पड़े हैं .../ 25 ‎सितम्बर 2023