लेख
20-Nov-2023
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दुनियां के शक्ति संपन्न देश पिछले दो दशक से एक ही मोर्चे पर काम करते दिख रहे हैं। इसके तहत व्यापारिक क्षेत्र को बढ़ाने के साथ ही आधुनिक हथियारों के दम पर ज्यादा से ज्यादा देशों को अपने पक्ष में करना इनका शगल बन चुका है। इसके लिए प्रत्येक मंच पर ये शक्तियां एक-दूसरे को नीचा दिखाने और खुद को बेहतर बताने से गुरेज नहीं करती हैं। इनके ऐसा करने से तब तक हर्ज नहीं जब तक कि हथियारों का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। जब ये ताकतें हथियार उठा लेती हैं और जैसे ही जान-माल को नुकसान होने वाले कदम उठाए जाने लगते हैं वैसे ही इंसानीयत चीख उठती है। इसका विरोध भी होता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ उन्हें ऐसा नहीं करने के लिए चेतावनी भी देता है। यह भी हकीकत है कि सुनता कोई नहीं और ताकत के जोर पर सभी परिस्थितियों को अनदेखा कर ये ताकतें मनमर्जी से फैसले ले कार्रवाई करती नजर आती हैं। इनके इरादों में जो पानी फेरता दिखता है या ऐसा करने की कोशिश करता है उसे सबक सिखाने के लिए ये ताकतें सैन्य कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटती हैं। यही वजह है कि आज दुनियां तीसरे विश्व युद्ध के कगार पर खड़ी नजर आ रही है। पहले अफगानिस्तान में तालिबान के नाम पर अमेरिका ने जो किया वह सभी के सामने है। इसके बाद सीरिया को केंद्र में रखकर दुनियां की ताकतों ने अपने अत्याधुनिक हथियारों के साथ शक्ति प्रदर्शन किया। वहीं यूक्रेन में रूस की सेनाओं ने भी अपनी ताकत का मुजाहिरा करवाया। अब हमास के इजराइल पर किये गये अनैतिक हमले को लेकर गाजा और फिलस्तीन में जो हो रहा है वह भी कहीं से सही नहीं ठहराया जा सकता है। हमास ने जो किया उसे किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है, लेकिन उसके बाद इजराइल जो आमजन के साथ कर रहा है वह भी कहीं से सही नहीं है। दरअसल यहां भी खून का बदला खून की तर्ज पर हमास को जड़ से खत्म करने के नाम पर गाजा और फिलस्तीन के आम लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। खबर तो यहां तक आती है कि अस्पतालों और कैंप में भी हमले किये गये और उसे हमास का ठिकाना करार दिया गया। बात यहीं खत्म हो जाती तब भी कोई बात न थी, लेकिन हमास को सबक सिखाने के बहाने जिस तरह से दुनियां की ताकतें दो धड़ों में बंटकर गाजा को युद्ध का क्षेत्र बनाने में लगी हैं, वह भी सही नहीं है। इससे विश्वयुद्ध भड़कने का अंदेशा बढ़ता ही जा रहा है। सबसे दु:खद ओर चिंताजनक बात यह है कि इस पूरे मामले में बातचीत का सहारा कतई नहीं लिया गया। न ही यह समझने और समझाने की कोशिश की गई कि आखिर इस समस्या की जड़ में क्या है। क्योंकि किसी भी समस्या का हल शांति और सद्भाव के साथ बातचीत के जरिये ही निकाला जा सकता है। इसके अतिरिक्त समाधान का और कोई दूसरा रास्ता हो ही नहीं सकता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अफगानिस्तान हमारे सामने मौजूद है। हमने देखा है कि किस प्रकार से तालिबान को आतंकवादी घोषित करने वाली महाशक्तियों ने उसी से बातचीत कर, उसे ही अफगानिस्तान की कमान सौंप, किस तरह पीठ दिखाकर वापस अपने देश भागे थे। इसका अर्थ यही हुआ कि इससे पहले शुरु में जो रुस अफगानिस्तान में करना चाह रहा था वह उसकी अपनी सोच थी और उसे विफल करने में अमेरिका का सबसे बड़ा हाथ रहा। अब ऐसा ही एक अनचाहा और अनजाना खेल गाजा में देखने को मिल रहा है। इजराइल चूंकि अत्याधुनिक हथियारों से परिपूर्ण है, इसलिए वह हमास जैसे अनेक संगठनों व समूहों को बिना रुकावट जवाब देने की स्थिति में है। ऐसे शक्ति संपन्न देशों को तो शांति के साथ बातचीत का रास्ता अपनाना ही चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि कोई अन्य संगठन या समूह आंतकवाद की राह में आगे न बढ़ने पाए। इससे बेहतर उपाय किये जा सकते हैं, लेकिन अहिंसा की डगर इन्हें कठिन प्रतीत हो रही है, जबकि मानवता की चित्कार सुनना इन्हें भा रहा है। इस समय हिंसा को सिरे से खारिज कर दुनिया के तमाम देशों को एकजुट होकर शांति की राह में आगे बढ़ना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी को दुनियां रहने लायक मिल सके। यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि युद्ध अपने पीछे दर्दनाक मंजर के साथ ही आधा-अधूरा मानव संसार छोड़कर जाता है। युद्ध में हारने वाला तो सब कुछ खोता ही खोता है, लेकिन जीतने वाला भी मन, वचन और कर्म से कभी पूर्ण नहीं हो पाता है। फिलहाल महाशक्तियों के झमेले में पड़े गाजा और फिलस्तीन की नजरें अब भारत पर टिक गई हैं। भारत से इसका हल निकालने और बातचीत के रास्ते खोलने के लिए कहा गया है। ऐसा इसलिए भी सही लगता है क्योंकि भारतीय संस्कृति और धर्म अहिंसा परमोधर्म: पर आधारित है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने तो अहिंसा को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर भारत को स्वतंत्रता हासिल करवा दी थी, जिसका दुनिया ने गुणगान किया। उसी दुनिया के अनेक देश आज भी गांधी के सिद्धांतों पर चलने की कसमें खाते नजर आ जाते हैं। इस दिशा में भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम ताकतबर देशों को आगे बढ़ने की आवश्यकता है। अमेरिका और रूस ही नहीं चीन और जापान समेत अन्य शक्तिसंपन्न देश व्यापारिक लाभ-हानि को एक पल के लिए भूल कर दुनिया में शांति कायम करने के लिए विचार करें। आतंकवाद का हल भी यहीं से निकलेगा और एक बार फिर दुनियां को स्वर्ग बनाने की दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा। इसके बगैर गाजा में शांति संभव नहीं है। यदि समय रहते इस पर अमल नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जबकि गाजा पट्टी तृतीय विश्वयुद्ध का मैदान साबित हो। इससे शांतिप्रिय देश भी अपने आपको युद्ध की विभीषिका से बचा नहीं पाएंगे। इसलिए समय रहते शांति और सद्भाव के साथ बातचीत के रास्ते खोले जाना चाहिए। ऐसा करना एक बड़े युद्ध से दुनिया को बचाना जैसा महान काम होगा। हिदायत/ 20 नवम्बर 2023