लेख
29-Nov-2023
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जाको राखे साईयां मार सके ना कोई यह कहावत उत्तरकाशी में सुरंग में फंसे मजदूरों पर सार्थक हो गई l रैट माइनर्स की टीम की 21 घंटे कड़ी व कमरतोड़ मेहनत कामयाब हो गई और मजदूरों क़ो नवजीवन मिल गया और 418 घंटे का रेस्क्यू ऑपरेशन खत्म हो गया l आखिरकार मजदूर जिंदगी की जंग जीत गए बेचारे 17 दिन से सुरंग में जिंदगी व मौत क़े बीच झूल रहे मजदूरों ने मौत क़ो मात दे दी l प्रशासन ने काफ़ी मशक्त करते हुए मजदूरों क़ो सुरक्षित बाहर निकाल दिया l बेकसूर मजदूरों ने 17दिन और 16 रातें कैसे निकाली होगी यह मजदूर ही जानते होंगे l खौफनाक मंजर क़ो कभी नहीं भूल पाएंगे l 12 दिन बाद सूर्य क़े दर्शन करेंगे l मजदूरों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा की जिस सुरंग का निर्माण कर रहे हैं उसमें कैद हो जाएंगे l करोड़ों देश वासिओं की दुआएं रंग लाई और मजदूरों क़ो नया जीवन मिल गया और 12दिन सुरंग की कैद से मुक्त हो गएl 12 तारीख क़ो एक तरफ रविवार क़ो दीपावली क़े दिन जहाँ पूरा भारतवर्ष दिवाली की खुशियाँ मना रहा था वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड क़े उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सुरंग में बहुत ही भयंकर दुःखद हादसा हुआ जब सुरंग ढहने से 40 मजदूर सुरंग क़े अंदर फंस गए थे l उत्तरकाशी क़े सिल्कयारा में राष्ट्रीय राजमार्ग पर बनी सुरंग में फंसे 40 मजदूर जिंदगी व मौत क़े बीच झूल रहे थे सरकार द्वारा मजदूरों क़ो बाहर निकालने क़े लिए जारी रेस्क्यू अभियान का आज 17वें दिन था l 17 दिन ऑपरेशन जारी रहा और मजदूरों क़ो सुरक्षित बाहर निकाल दिया गया l देश में प्रतिदिन ऐसे मर्मातंक हादसे होते है मगर प्रकाश में नहीं आते। ।इन बीते हादसों में सैंकड़ों बच्चे अनाथ हो गए और कई मां-बहनों का सिदूर मिट गया और बहनों के भाई मारे गए।केन्द्र सरकार को इन हादसों के संदर्भ में छानबीन करवानी चाहिए तथा दोषियों को सजा देनी होगी। समजदूरों क़े साथ हादसे रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं lकहते हैं अगर बीते हादसों से सबक सिखा जाये तो आने वाले हादसों क़ो रोका जा सकता है लेकिन सबक न सीखना और फिर हादसा हो जाना एक बहुत ही त्रासदी है l मजदूरों क़े परिजन ईश्वर से दुआ कर रहे थे कि उनके अपने सुरक्षित बाहर निकल जाये l सबकी दुआ काम आई lयह कोई पहला हादसा नहीं है इससे पहले बहुत दुख़द व दर्दनाक हादसे हो चुके हैं l देश क़े कारखानों में जल कर मजदूर मर रहे हैं। आकडों क़े अनुसार कुछ साल पहले हिमाचल में भी फोरलेन सुरंग में भी तीन मजदूर दब गए थे काफ़ी दिन कि मशकत क़े बाद दो मजदूरों क़ो बचा लिया था लेकिन तीसरे मजदूर की लाश तक नहीं मिली थी,बीते वर्ष राजधानी दिल्ली के बाहरी जिले में स्थित बवाना औद्योगिक क्षेत्र में एक पटाखें की फैक्टरी के गोदाम में भीषण आग लगनें के कारण 17 लोगों की मौत हो गई और तीस लोग बुरी तरह झुलस गए थे । मरने वालों में 10 महिलाएं तथा 7 पुरुष थे ।मजदूरों ने सपने में भी नही सोचा होगा कि यह पटाखा गोदाम शमशान बन जाएगा ।पल भर में जिन्दा लोग राख में बदल गए यह बहुत ही त्रासदी थी ।लगभग तीन घंटे की मश्क्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका था तब तक सब कुछ राख हो चुका था।आग के कारणो का पता नहीं चल पाया था ।प्रशासन को चाहिए कि लापरवाही बरतने वालों को सजा दी जाए ताकि फिर एसे हादसे न हो सके।कानपुर में भी दो मजदूरों की मलबे में दबने से दर्दनाक मौत हो गई। एक दिन में ही 19 मजदूर मारे गए थे ।यह बहुत ही दुखद था । देश में हर वर्ष मजदूर दबकर व जलकर मारे जा रहे हैं। कभी सुरगों व उद्योगों में बेमौत मारे जा रहे हैं। मगर केन्द्र व राज्य की सरकारों को जरा सा सदमा होता तो मजदूरों के हितों में कदम उठाती लेकिन सरकारें तो तब जागती हैं जब बड़ा हादसा घटित हो जाता है।बीते वर्ष में रायबरेली के उंचाहार में एटीपीसी संयत्र का बायलर फटने से 30 मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई थी तथा 100के लगभग घायल हो गए थे।500 मैगावाट इकाई के बायलर में यह हादसा हुआ था उस समय 200 कामगार मौजूद थे सरकारों ने मृतकों को मुआवजे की घोषणा करती है मगर मुआवजा इसका हल नहीं है।एक ऐसा ही हादसा जयपुर के पास खातोलाई गांव में घटित हुआ था जहां टाªसफारमर फटने से 14 लोगों की मौत हो गई थी। इन हादसों ने औद्याोगिक क्षेत्रों में मजदूरों की सुरक्षा पर प्रशनचिन्ह लगा दिया है इन हादसों पर संज्ञान लेना होगा तथा मजदूरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होगें ताकि भविष्य में ऐसे हादसों पर रोक लग सके। गत वर्ष जम्मू के उधमपूर से 80 किलोमीटर दूर रामबन जिले के चंद्रकोट में जम्मू-कश्मीर हाईवे पर टनल कर्मचारियों की बैरक में आग लगने से दस श्रमिक जिंदा जल गए थे। यह बैरक लोहे व फाईबर की बनी थी। यह बहुत ही दुखद हादसा था। आग लगने का कारण बिजली का शार्टसर्किट था।इस बैरक में 100 से अधिक लोग रहते थे। मगर छुटटी होने के कारण आसपास के लोग अपने घरों को चले गए थे। गनीमत रही की यह अपने-अपने घरों को गए थे वरना मृतको की संख्या 100 के लगभग होती ।नया वर्ष इन मजदूरों के लिए यमराज बन कर आया था और बेचारे टनल में ही जिन्दा जलकर राख हो गए थे इन अभागों ने सपने मे भी नहीं सोचा होगा की नया साल उनके लिए घातक साबित होगा।मारे गए मजदूरों में एक मजदूर हिमाचल के कांगड़ा का था तथा एक पंजाब का था बाकि बनिहाल-रामबन क्षेत्र के निवासी थे।सुरगं में घटित इस दर्दनाक हादसे ने कई प्रशन खड़े कर दिए है कि आखिर यह हादसे कब रुकेगें।यह कोई पहला हादसा नहीं है देश में अब तक हजारों मजदूर बेमौत मारे जा चुके है।एक साल पहले हिमाचल के बिलासपुर में भी एक ऐसा ही हादसा घटित हुआ था जब फोरलेन का काम करते समय सुरंग ढह गई और तीन मजदूर उसमें दब गए मगर 12 दिन की कड़ी मशक्क्त के बाद दो मजदूरों को जिन्दा निकाला गया था। एक मजदूर हिरदा राम कोई पता नहीं चल पाया था कि वह जिन्दा था या मर चुका था लगभग 9 महीने बाद उसका शव बरामद हुआ था। हिमाचल के जिला किन्नौर में एक निर्माणाधिन प्रोजेक्ट की दीवार गिरने से चार मजदूर बेमौत मारे गए थे। यहां पर 11 मजदूर काम कर रहे थे कि अचानक दीवार गिर गई सात मजदूर तो भागकर बच गए मगर बेचारे चार मजदूर जिन्दा दफन हो गए।इन मजदूरों पर 42 मीटर लंबी दीवार गिर गई थी। हिमाचल में ऐसे बहुत हादसे हो रहे है हमीरपुर में बीते वर्ष दर्जनों मजदूर मारे गए थे। 2015 के फरवरी माह में एक सप्ताह में दो दर्दनाक हादसों में 10 मजदूर मारे गए और 20 मजदूर घायल हो गए। पहला हादसा हिमाचल के कुल्लु में हुआ तथा दूसरा मुम्बई में हुआ। मुम्बई के अलीबाग में एक पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 9 मजदूर मारे गए थे और 19 घायल हो गए थे। और दूसरी घटना में 24 फरवरी 2014 को कुल्लु के मणीकर्ण में करंट लगने से एक मजदूर की मौत हो गई थी जो बिजली विभाग के एक ठेकेदार के पास काम कर रहा था इस दर्दनाक हादसे में एक अन्य मजदूर घायल हो गया था। गोवा के कनाकोना शहर में एक निर्माणाधीन इमारत गिरने से 7 लोगों की मोैेत हो गई थी और 40 से अधिक लोगों की इमारत के भितर दब गए थे। यह हादसा कनाकोना शहर में घटित हुआ था जो राजधानी पणजी से 80 किलोमीटर दूर था। यह हादसा दोपहर तीन बजे के करीब हुआ जब यह इमारत ढही उस समय 40 लोग काम कर रहे थे गत वर्ष महाराष्ट्र में एक इमारत के गिरने से 75 मजदूरों की असमय मौत गई थी और 60 मजदूर घायल हो गए थे आखिर कब तक मजदूर इमारतों में जमीदोज होते रहगें ।यह बहुत ही दर्दनाक हादसा था जिसने एक साथ इतने लोगों को लील लिया था । भले ही प्रशासन मुआवजे का मरहम लगाता है मगर जो बेमौत मारे गये क्या वे लौट आएगें यह एक यक्ष प्रशन बनता जा रहा है।ऐसे हादसे पहले भी हो चुके है जिसमें सैंकड़ों लोग लापरवाही के कारण मारे जा चुके हैं। इमारतों के नीचे दबकर मजदूर काल का ग्रास बन रहे है।हादसों को देखकर रौगंटे खडे़ हो जाते हैं देश के राज्यों में चल रहे ईटों के भठठों में मजदूर मारे जा रहे हैं।मजदूरों के पसीने से ही ईटें पकती हैं मगर भठठा मालिक मजदूरों का शोषण कर रहे हैं मजदूर खून-पसीना बहाकर काम करते है।मगर बदले में मेहनताना नाममात्र दिया जाता है।मालिक मजदूरों के सिर पर करोड़ों रुपया कमा रहे है।आंकडे़ बताते है कि 2001 से नवंबर 2023 तक हजारों मजदूर मारे जा चुके हैं। उत्तरकाशी इस घटना ने सवाल खड़े कर दिये हैं कि बार-बार हो रहे इन हादसों के कारण क्या है इस घटना ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बीती घटनाओं से न तो सरकार ने सबक सिखा और न ही लोगों ने सीखा। पिछले कई सालों से ऐसे दर्दनाक हादसे हो रहे हैं सरकारें ऐसी घटनाओ के बाद मुआवजों की घोषणा करने तथा जांच के आदेश देने में देरी नहीं करती।इन हादसों में सैंकड़ों बच्चे अनाथ हो गए और कई मां-बहनों का सिदूर मिट गया और बहनों के भाई मारे गए।केन्द्र सरकार को इन हादसों के संदर्भ में छानबीन करवानी चाहिए तथा दोषियों को सजा देनी होगी। समय रहते इन घटनाओं को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने होगें ताकि भविष्य में ऐसी दर्दनाक हादसों पर विराम लग सके।अगर अब भी सरकार ने लापरवाही बरती तो निदोर्ष लोग व मजदूर बेमौत मरते रहेगें।ऐसे हादसो पर रोक के लिए पुख्ता इंतजाम किए जाए ताकि भविष्य में ऐसे दर्दनाक की पुनरावृति न हो सके। ईएमएस/29 नवंबर2023