लेख
29-Mar-2024
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ऐसे भोजन का सेवन जो एक दूसरे के विरुद्ध हो, जहर के समान शरीर को क्षति पहुंचाता है, विरुद्ध भोजन तेज जहर की तरह प्राण हर लेता है, अथवा गर ज़हर की तरह शनै शनै प्राण हरता है, विश्व का प्रत्येक जीव आहार की अपेक्षा करता है, सूक्ष्म जीव से लेकर दीर्घतम जीव तक का आहार के बिना कार्य व्यापार होना संभव नहीं है, मनुष्य अपने पास बुद्धि होने से आहार का चयन, स्वाद, स्वरूप, गंधादि अनेक मापदण्डों से करता है, तथा भोजन में में सदैव भिन्नता, रुचि और आस्वाद की कामना करता है, आज के व्यस्तम जीवन में यहां वक्त जुटा पाना अत्यंत दुष्कर हो गया है मनुष्य भोजन को अधिक से अधिक दुर्लक्षित करने लगा है, जिव्हा लौलुप्य तथा उदर भरण तक आज के भोजन की सीमा रह गई है, चटकारेदार भिन्न-भिन्न प्रकार का भोजन तथा उसमें भिन्न भिन्न संयोग जिव्हा को तो रुचिकर लगता है, किंतु क्या ऐसा भोजन उस पाचन संस्थान को उपयुक्त बनता है, जो शरीर के लिए पोषक रस का निर्माण करता है। हमारे शरीर में लिया गया प्रत्येक अन्न भिन्न-भिन्न पाचन अवस्थाओं से होकर, अंत में शरीर उपयोगी पोषक रस के स्वरूप में रूपांतरित होता है अर्थात श्रेष्ठ भोजन का भी सम्यक स्वरूप से पाचन होने पर ही उसके गुणों की प्राप्ति होती है, अथवा वह भी शरीर के लिए व्यर्थ हो जाता है यह पाचन क्रिया जटिल एवं पेचीदा होती है, भोजन के सभी घटक पाचन में विभिन्न रूप से सक्रिय रहते हैं, यही वजह है कि यदि भोजन में किसी प्रकार की गड़बड़ी हो जाती है, तो तुरंत ही इसका दुष्प्रभाव पाचन पर पड़ता है, तथा अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य पर भी, हमारे भोजन में कई प्रकार के आहार द्रव्यों का समावेश रहने पर ही हम आहार को संतुलित आहार मानते हैं, ऐसे संतुलित आहार का ही सेवन करना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार के भोजन में रहे हुए घटक पाचन को उचित रूप से प्राप्त होकर सर्वोत्तम पोषक रस का निर्माण करेंगे इसी कारण भोजन के संयोजन की आवश्यकता रहती है यदि किसी प्रकार संयोजन में कुछ खाद्यय पदार्थों का संयोग इस प्रकार हो कि वह पाचन के समय इस प्रकार का पोषण रस बनाए, जो शरीर के लिए अहितकर हो अथवा आहार द्रव्यों का संयोजन पाचन व्यवस्था में ही विकार उत्पन्न करें तो यह संयोजन व्यक्ति के लिए हानिकारक होता है जिस प्रकार का आहार संयोजन आहार में विरुद्धता का निर्देश करता है, उसी को विरुद्वताभी कह सकते हैं। जो आहार संयोजन अन्न द्रव्यों को एक साथ मिलाने पर अथवा एक के बाद दूसरे का सेवन करने पर अथवा किसी विशेष अवस्था में संयोजन होने पर यदि शरीर के लिए हानिकारक बन जाये, तो वह विरुद्ध आहार है, ऐसे संयोगों का सेवन शरीर के लिए घातक होते हुए अनेक रोगों की उत्पत्ति करता है नपुंसकता, अंधापन, पागलपन, भगंदर, मूर्छा, पेट फूलना, पीलिया, सफेद कोढ़, कुष्ठ रोग, शोथ, सूजन, अम्ल पित्त, बुखार, क्षय प्रमेह, अशमरी, मूढगभ॔ और अनेक प्रकार के त्वचा रोगों तथा पेट से संबंधित रोगों की उत्पत्ति के निरंतर सेवन से होती है। इस कारण विरुद्ध हार का संपूर्ण त्याग करना लाभदायक तथा स्वस्थ हैं, किंतु यदि दीर्घकाल से किसी प्रकार के विरुद्ध आहार का सेवन करने की लत हो तो उसे तुरंत बंद न करते हुए धीरे-धीरे उस आहार की मात्र कम करते हुए उसका परित्याग करना चाहिए, विरुद्ध आहार कौन-कौन से हैं उनका विवरण इस प्रकार है--- दूध के साथ - मांस, बड़हर का फूल, आम, शहद, करौदा, केला, बड़ा बेर, जामुन, कत्था, इमली, अखरोट, कटहल, नारियल, अनार, आंवला, कुलथी, मोठ, प्याज, नमक, संतरा, मौसंबी, जैसे खट्टे फल, मांस - तिल, गुड, उड़द, मूली, कमलडंडी, अंकुरित धान्य, शहद, घी - गुड, बड़हल का फल, समान मात्रा में शहद तेल, बड़हल का फल - उडद की दाल, गुड बगुले का मांस - -शराब दही - मुर्गी, ताड़ का फल, उड़द की दाल - मूली, दही शहद - तेल, कमलगट्टा खिचड़ी - दूध के साथ ------एक के बाद दूसरा खाने पर विरुद्ध---- दूध - मूली, लहसुन खीर - सत्तू शहद - गरम पानी अवस्था से विरुद्ध ---- गर्म करके - शहद, दही कांसे के बर्तन रखा - पुराना घी तांबे के बर्तन में पकाया - खट्टा खाना फ्रिज में रखे - तरबूज, ककड़ी, संतरा (लेखक मध्य प्रदेश शासन से मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं) .../ 29 मार्च 2024