लेख
27-Apr-2024
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दुनिया में प्रकृति को नजर अंदाज करते हुए, मानवीय विकास को लेकर जो नए-नए शोध और कार्य हुए हैं। उनसे प्रकृति को जिस तरह से खुली चुनौती दी जा रही है। विकास के नाम पर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करते हुए मानव विकास की जो नई संरचना तैयार की जा रही है। वह अपनी उच्चतम सीमा में पहुंच चुकी है। इस कारण अब प्रकृति ने भी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए प्रतिरोध करना शुरू कर दिया है। जिस मानवीय विकास की संरचना को बनाने में कई दशक लगे। प्रकृति ने उसे एक ही झटके में समाप्त कर, यह बता दिया है, कि सीमा रेखा तोड़ोगे तो उसका फल भी भुगतना पड़ेगा। उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग बेकाबू हो चुकी है। पांइस में स्थित आईटीआई का भवन जंगल की आग में पूरी तरह जल गया है। जंगल की आग नैनीताल हाईकोर्ट तक पहुंच गई है। नैनीताल, भीमताल, रानीखेत, अल्मोड़ा, कमाऊ के जंगल धधक रहे हैं। सेना एवं स्थानीय प्रशासन आग बुझाने में लगी। आग पर काबू पाने में बहुत समय लगा, जिससे जंगल ही बर्बाद हो गया। इसके पहले भी हिमालय की तराई में भू-स्खलन की सैकड़ो घटनाएं हो चुकी हैं। पहाड़ फट रहे हैं। पिछले दो दशकों में हिमालय के पहाड़ों को खोदकर जिस तरह बांध बनाए गए हैं। पावर स्टेशन खड़े किए गए हैं। रोड बनाने के लिए पहाड़ों को काटा गया है। रेल मार्ग के लिए पहाड़ों को एक-दूसरे से जुदा कर दिया गया है। इन सब कृत्यों से शांत पहाड़ों में ऐसा कंपन शुरू कर दिया गया, जिसके कारण हिमालय अब अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए, मानवीय विकास की कल्पनाओं और संरचनाओं को एक ही झटके में धूल-धूसरित कर रहा है। हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। पिछले साल ही शिमला, उत्तराखंड के कईं इलाकों में भूस्खलन की बड़ी-बड़ी घटनाएं हुई। यहां का मौसम भी बड़ी तेजी के साथ बदलने लगा। अप्रैल के महीने में जून जैसी गर्मी पहाड़ों में पड़ रही है। हिमालय के ग्लेशियर पिघलने लगे। भारत में नहीं, बल्कि दुनिया के कई अन्य देशों में प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप बढ़ रहा है। जो मानवीय एवं प्रकृतिजन्य जीवन के लिए सबसे बड़ा संकट माना जा रहा है। जिस तरह से इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए पहाड़ों और प्राकृतिक संरचनाओं को खोखला किया गया। इसका विरोध समय-समय पर वैज्ञानिकों, साधु संतों और (शंकराचार्यों) ने भी किया था। भारत सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। परिणाम स्वरूप प्राकृतिक एवं धार्मिक स्थल भी अब सुरक्षित नहीं हैं। अयोध्या मैं रामलला के मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर चारों शंकराचार्यों ने कहा, जब तक मंदिर के शिखर का निर्माण नहीं होता है ऐसी अवस्था में भगवान प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकती है। सरकार ने अहंकार के चलते, सनातन धर्म के सबसे बड़े धर्म गुरुओं (शंकराचार्यों) की बात भी नहीं मानी। जबकि उन्होंने स्पष्ट रूप से चेतावनी देते हुए कहा था यदि अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होगी, तो प्रकृति-जन्य आपदा आना निश्चित है। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में चारों शंकराचार्य में से कोई भी शंकराचार्य शामिल नहीं हुआ। अब जिस तरह की प्राकृतिक आपदाएं देखने को मिल रही हैं। उसके बाद यही कहा जा सकता है, प्रकृति के नियमों का पालन नहीं किए जाने पर प्रकृति अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए प्रयास कर रही है। उसे ही प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। यहां केवल भारत की बात नहीं हो रही है। पूरी दुनिया के देशों में जिस तरह से प्रकृति को चुनौती देते हुए मानवीय विकास और मानवीय अहंकार के चलते जिस तरह से विकास और आग्नेयू शास्त्रों के माध्यम से राज करने का जो प्रयास हो रहा है, उसके कारण दुनिया के देश विनाश के रास्ते पर चल पड़े हैं। अब इसे प्राकृतिक आपदा कहें, या ईश्वर का प्रकोप कहें। इसमें सभी एक राय नहीं हो सकते हैं। विकास की इस दौड़ में मानव जाति अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति अथवा ईश्वर को चुनौती देने का काम कर रही है। यही कारण है, कि दुनिया के सारे देशों में अब प्राकृतिक आपदाएं बड़ी तेजी के साथ बढ़ रही हैं। विकसित राष्ट्र भी अब इससे अछूते नहीं रहे। अमेरिका, यूरोपीय देश, रूस, चीन जैसी महाशक्तियों को भी प्राकृतिक आपदा झेलनी पड़ रही है। अरब के देशों में बाढ़ आ रही है, जहां रेत का समंदर है वहां बारिश का सैलाब बता रहा है कहीं कुछ तो गलत हुआ है। लगातार भूकंप के झटके दुनियां को सचेत कर रहे हैं, सुप्त ज्वालामुखी अब मुंह खोलने को तैयार नजर आने लगे हैं। ये प्राकृतिक आपदाओं से विकास इन्फास्ट्रक्चर नष्ट हो रहा है। वैसे भी मानवीय शक्ति जब-जब भगवान बनने की कोशिश करती है, तब-तब ईश्वर का (प्रकृति) प्रकोप इसी तरह से सामने आता है। इस खतरे की घंटी से सभी को सावधान होने की जरूरत है। भौतिक संसाधन और कृत्रिम विकास अल्पकालीन होते हैं, इन्हें दीर्घकालीन नहीं बनाया जा सकता है। इस तथ्य को सभी को समझना जरूरी है। ईएमएस / 27 अप्रैल 24