लेख
02-May-2024
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- 5-7 सौ में प्रेस कार्ड और 5-7 लाख में सम्मान के बीच मना रहे विश्व प्रेस दिवस (3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर विशेष) 5 सौ 7 सौ में प्रेस कार्ड और पांच सात लाख में अखबारों पत्र पत्रिकाओं द्वारा सम्मान की लाॅलीपाप देने और मिलने की खबरें और सूचनाओं के बीच हम सब आज 3 मई को भारत में भी विश्व प्रेस दिवस मना रहे हैं। जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस घोषित करने के बाद विश्व प्रेस दिवस के रूप में ही जाना जाता है। प्रेस के हालात आज ये हैं कि, रील बनाने के लिए चौराहे पर नाचने वाली से लगाकर छोटे बड़े नेता अभिनेता या सोशल साइट्स के तथाकथित सेलिब्रिटी मतलब सीधे साफ शब्दों में कहें तो हर कोई ऐरा गैरा एक्स, वाय, झेड भी प्रेस (जिसके लिए वर्तमान में प्रचलित शब्द मिडिया )..... पर उंगली उठाता रहता हैं। .....चाहे उनका कृत्य गलत, अव्यावहारिक, असामाजिक या आपराधिक अथवा गैर जिम्मेदाराना ही क्यों न हों.... वे अपनी ग़लती अपनी कमी नही मान मीडिया को ही दोषी ठहराते हैं।.... आइना दिखाने के लिए उधर मीडिया में भी कुछेक जमीर वाले अभी भी है, जो उनका पुरजोर विरोध करते उनको ही नहीं जन जन को उनकी हैसियत .....बोलें तो उनकी औकात उनके मुंह पर ही बता देते हैं.... परन्तु धीरे धीरे वे भी बहुत कम होते जा रहे हैं। और उनके लिए ही अत्यंत ज़रुरी है प्रेस स्वतंत्रता। भारत में प्रेस या कहें मीडिया एंव पत्रकारों की स्वतंत्रता अथवा आजादी भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार से सुनिश्चित होती है। प्रेस की इसी आजादी को विश्व स्तर पर सम्मान देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस घोषित किया जिसे विश्व प्रेस दिवस के रूप में भी जाना और मनाया जाता है। वैसे हम भारत के पत्रकार हर साल 16 नवंबर को हमारा राष्ट्रीय प्रेस दिवस भी मनाते हैं क्योंकि उस दिन हमारे यहां पीसीआई की स्थापना जो हुई थी। आज की पीढ़ी के जो पत्रकार हैं उनमें से शायद अधिकांश को ....पीसीआई क्या है... यह ही पता न हो .... जिसके चलते वह भी यहां दिया जाना वांछित ही है। हालांकि उनकी इस अपरिचितता के लिए इन पत्रकारों का कोई दोष नहीं है क्योंकि इन्हें बताया ही नहीं गया या इनकी मनोवृत्ति ऐसी कर दी कि इन्होंने जानना भी नहीं चाहा..... सबसे पहले और सबसे तेज के चक्कर में ये यहां वहां से कोर्स कर कर के प्रेस का प्रतिनिधित्व करने पत्रकार बने या जैसा कि मैंने शुरुआत में कहा पांच सौ सात सौ में कार्ड लेकर फील्ड में आ गए.... पढ़ने जानने की, न लालसा रही न जिज्ञासा इसलिए नहीं जानते। खैर.... प्रेस स्वतंत्रता के संदर्भ में तो वर्तमान समय में दो स्तरीय स्थिति है.... एक जो लिखते हैं दूसरे जो लिखाते है.....सीधे सीधे कहे तो एक अखबार मालिक और दूसरे उनके कर्मी जिनमें संपादक, उप संपादक, प्रतिनिधि और रिपोर्टर जैसे अन्य सभी जमात शामिल, तो प्रेस स्वतंत्रता किसके लिए ? क्या दोनों के लिए ? नये जमाने की प्रेस जिसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कहा जा रहा उसकी बात करना तो बेमानी ही है.उसका कोई औचित्य हीं नहीं है... क्योंकि जब 1991 में यूनेस्को ने विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का निर्णय लिया था तब इसका अस्तित्व ही नहीं था ....और वर्तमान में भी नब्बे प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकारिता के मापदण्डों तक दस प्रतिशत भी नहीं पहुंच पाया है ।... ये तो बस बहसबाजी और बाईट मीडिया बन गया है। आलोचको की मानें तो उनके अनुसार वहां... बाइट पत्रकारिता... होती है... बाईट ले ली बन गई रिपोर्ट हो गई पत्रकारिता.... तो 1991 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता की बात अखबारों के मद्देनजर ही कहीं गई थी । हालांकि अब इलेक्ट्रॉनिक के बाद एक और सोशल मीडिया भी प्रेस की जमात में शामिल होने को तत्पर है... इसलिए प्रेस शब्द के आयाम का विस्तार तो जरूरी हो गया है। इसको पुनः परिभाषित भी करना होगा। सिर्फ अखबारों को लेकर प्रेस स्वतंत्रता की बात में तो पिछले वर्षों चर्चित एक व्यंग्यात्मक जुमला कि...... जो छप कर बिकते थे अब बिक कर छपेंगे बहुत कुछ कह गया है....संदर्भ सीमित था लेकिन अर्थ अनन्त है। ... हालांकि हकीकत यह भी है कि, कुछेक ऐसे भी हैं ....जो न छपकर बिकते हैं, न बिककर छपते हैं ....बस चलते हैं.... मतलब छपते ही नहीं तो और क्या... साल में दो चार छः बार भी छप गए तो छप गये नहीं तो चल तो रहे ही है।..... सरकारी संस्थान जैसे मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग के प्रकाशन भी इसमें शामिल हैं... और ऐसे सैंकड़ों नहीं हजारों, लाखों है भारत में। इनमें से अधिकांश स्वयं सिद्ध नही होकर प्लांट किये गये है और लगातार किये जा रहे है.... कुछ विशेष उद्देश्य प्राप्ति के लिए कुछ क्षेत्र विशेष के सक्षमों द्वारा.... और इन तथाकथित सक्षमों द्वारा ही पूर्ण जिम्मेदारी एंव ईमानदार से पत्रकारिता के मानकों को निभाते प्रेस की मर्यादा और गरिमा को क़ायम रखने वाले अखबारों को बांधने के जतन किए जा रहे हैं.... चाहे नीतियों का हवाला देकर दबाव बनाते अथवा सुविधाओ के साथ प्रलोभन देकर.... मतलब साम दाम दण्ड भेद भरपूर चल रहा है प्रेस की आजादी को दबाने में। हालांकि ये तथाकथित सक्षम प्रेस के समर्थन से ही सक्षम बन पायें हैं, नहीं तो इनकी हैसियत कुछ भी नहीं थी... और अब उस पर ही उंगली उठा उसे बांधने का प्रयास कर रहे ...यह भूल कर की प्रेस का स्वरूप बहुत विराट है .....उसे किसी भी तरह के बंधन में बांधा जाना संभव नहीं है, परन्तु ये चंद प्रेस करें जयचंदी स्वभाव वालों से मिल उन्हें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लाभान्वित कर या प्रलोभन देकर, उनके साथ अपना यह कुत्सित प्रयास कर रहे .... इसलिए ही प्रेस स्वतंत्रता की जरूरत है ..... लेकिन अभी उसके पहले प्रेस के इन लोभी जयचंदो की पहचान कर उन्हें हटाने की जरूरत है। भारत में इसके लिए ही शायद पीसीआई का गठन किया गया जिसकी स्थापना दिवस को हम राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाते हैं। जैसा मैंने उपर बताया। पर पीसीआई अर्थात प्रेस कौंसिल आॅफ इंडिया भी अपनी स्थापना के उद्देश्य में सफल नहीं हो पाया इसलिए वो भी परिवर्तनीय है। और विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने के पहले प्रेस से दूषित लोभी जयचंदो को किनारे कर अखबार मालिकों और पत्रकारों को स्व आचार संहिता बना उसके अनुरूप आचरण सुधार की आवश्यकता है। दो शब्दों में कहूं तो स्वतंत्रता के पहले स्वच्छता। .../ 2 मई 2024