उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के स्वाधीनता संघर्ष के संयुक्त नायक अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स जिन्होंने शहादत हरिद्वार में दी तो जन्म सहारनपुर जनपद के गांव खजूरी अकबरपुर में लिया था,को केंद्र व प्रदेश सरकारों द्वारा वह सम्मान नही मिल पाया,जिसके वह हकदार है। मात्र 17 वर्ष की अल्पायु में 14 अगस्त सन 1942 में हरिद्वार की सड़कों पर तिरंगे फैहराते हुए शहीद हुए मेरे मामा अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स के बलिदान दिवस पर हरिद्वार जिला प्रशासन प्रतिवर्ष 14 अगस्त को एक कार्यक्रम तो हरिद्वार के भल्ला पार्क में आयोजित करता है।लेकिन उसमें शहीद के प्रति सम्मान का भाव कम और ओपचारिकता अधिक अपनाई जाती है।जिसमे अधिकृत रूप से शहीद जगदीश प्रसाद वत्स के परिजनों तक को आमंत्रित नही किया जाता।अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स की प्रतिमा के रखरखाव की जिम्मेदारी नगर निगम या फिर जिला प्रशासन की है।लेकिन उनकी प्रतिमा वर्ष भर धूल व गन्दगी ही नही ,आस पास के दुकानदारों द्वारा किया गया अतिक्रमण भी झेलती है।आजादी से पहले ब्रिटिश हुकूमत का प्रतिबंध था और आजादी के 75 वर्ष बाद भी लोकतांत्रिक रूप में चुनी गई उत्तराखंड सरकार और उसके जिला प्रशासन की मनमानी का शिकार आजादी के इन दीवानों व उनके परिवारों को झेलना पड़ रहा है। अमर शहीद जगदीश वत्स के नाम से हरिद्वार में स्वाधीनता सेनानी सदन बनाने की एक साल पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की घोषणा को भी सत्तारूढ़ पार्टी के शीर्ष नेता व अधिकारी पलीता लगा रहे है।क्या शहीद जगदीश वत्स के साथ हो रहे इस अन्याय का प्रतिवाद नही होना चाहिए? भला हो शहीदों के प्रति सम्मान अभिव्यक्त करने वाले सन्त ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी का,जिन्होंने स्वयं के खर्च से हरिद्वार के भल्ला पार्क में 17 वर्षीय शहीद जगदीश की प्रतिमा कुछ दशक पहले लगवा दी थी और जिला प्रशासन को प्रेरित कर सरकारी स्तर पर 14 अगस्त को श्रद्धांजलि कार्यक्रम परम्परा शुरू कराई।लेकिन समय के साथ जहां उक्त स्वाधीनता सेनानी पार्क आस पास के दुकानदारों द्वारा अतिक्रमण का शिकार है,वही जिला प्रशासन भी श्रद्धांजलि कार्यक्रम के नाम पर सिर्फ ओपचारिकता निभाकर स्वतंत्रता सेनानी व उनके परिवारों की भावनाओं को आहत कर रहा है। प्रति वर्ष उनके श्रद्धांजलि कार्यक्रम में शहीद जगदीश वत्स की जीवनी पाठ्यक्रम में शामिल करने व उनकी स्मृति में सरकारी स्तर पर एक पुरुस्कार शुरू करने की मांग उठती रही है।मेरे प्रस्ताव पर तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने शहीद जगदीश वत्स की जीवनी पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय लेकर अपर मुख्य सचिव को लिखित निर्देश भी दिया था,लेकिन उक्त पत्रावली सरकार बदलते ही कही लुप्त हो गई है।अलबत्ता शहीद वत्स के परिवार ने स्वयं के संसाधनों से शहीद जगदीश वत्स के गांव खजूरी अकबरपुर में उनकी स्मृति में खोले गए जगदीश प्रसाद स्मारक जूनियर हाईस्कूल परिसर में उनकी प्रतिमा लगा दी है। ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज हरिद्वार ने भी अपने इस छात्र शहीद जगदीश वत्स के नाम से वालीबाल टूर्नामेंट कराकर और कॉलेज परिसर में उनकी मूर्ति लगवाकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी है।इसी प्रक्रिया में हरिद्वार में प्रस्तावित स्वाधीनता सेनानी सदन भी शहीद जगदीश वत्स के नाम से बने इसके लिए स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन पुरजोर कौशिश में लगा है।लेकिन सरकार व प्रशासनिक स्तर पर इस बाबत बरती जा रही शिथिलता व नगर निगम की बेरुखी के चलते उंक्त बाबत जमीन तक उपलब्ध नही कराई जा सकी है। 17 वर्षीय जगदीश प्रसाद वत्स में बचपन से ही एक कवि के भी गुण थे ,जब वे कक्षा 10 के छात्र थे तो उन्होंने अपने तत्कालीन गुरु आचार्यश्री रामदेव के निधन से आहत होकर उन्हें जो काव्यांजलि प्रस्तुत की थी ,उस काव्यांजलि रूपी कविता को आर्य समाज के संस्थापक महऋषि दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक मे स्थान दिया है।इस कविता की खोज मेरे मित्र फिल्म निर्देशक डा सुभाष अग्रवाल ने टंकारा, गुजरात प्रवास के दौरान की।सचमुच हमारे लिए यह गौरवपूर्ण उपलब्धि है।अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स को भी वही सम्मान मिले, जो शहीद भगत सिंह को मिलता है। शहीदो के बीच कोई भेदभाव नही होना चाहिए ।जिसने भी देश के लिए प्राण न्योछावर किये, वही नमन किये जाने योग्य है। हरिद्वार में 17 वर्षीय जगदीश प्रसाद वत्स ने सन 1942 में ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज में पढते हुएआजादी का बिगुल बजाया था। कालेज के छात्रों का नेतृत्व करते हुए 17 वर्षीय जगदीश प्रसाद वत्स ने तिंरगे झण्डे हाथ में लेकर अंग्रेज पुलिस को चुनौती देने का साहस किया था। 13 अगस्त सन 1942 की रात्रि में छात्रावास में हुई छात्रो की एक बैठक में 14 अगस्त को तिरंगे फैहराने के लिए सडको पर निकलने और भारत माता की जय,इंकलाब जिन्दाबाद के नारे लगाने के लिए, लिए गए निर्णय को अमलीजामा पहनाते हुए छात्रों का दल 14 अगस्त की सवेरे ही हरिद्वार की सडको पर निकल पडा था। पुलिस की छावनी के बीच भी जब छात्र जगदीश प्रसाद वत्स ने सुभाष धाट पर पहला तिरंगा फैहराया तो अंग्रेज पुलिस की एक गोली उनके बाजू को चीरती हुई निकल गई । धायल जगदीश ने धोती को फाडकर धाव पर बांध लिया और फिर दुसरा तिरंगा फैहराने के लिए डाकधर की तरफ दौड लगा दी। पुलिस की गोली चलने से बाकी छात्र तो तितर बितर हो गए थे ,लेकिन 17 वर्षीय जगदीश तिरंगे फैहराने की जिद पर अडिग रहा और उसने दौडते हुए जाकर दुसरा तिरंगा डाकधर पर फैहरा दिया। वहां भी पुलिस ने गोली चलाई जो जगदीश के पैर में लगी। जगदीश ने फिर पटटी बांधी और रेलवे लाईन के रास्ते हरिद्वार के रेलवेस्टेशन पर पहुंचकर पाइप के रास्ते उपर चढकर तीसरा तिरंगा फैहरा दिया। जैसे ही जगदीश तिरंगा फैहराकर नीचे उतरा तो राजकीय रेलवे पुलिस के इन्सपैक्टर प्रेम शंकर श्रीवास्तव ने उन्हे घेर लिया। जगदीश ने तांव में आकर एक थप्पड इन्सपैक्टर श्रीवास्तव को रसीद कर दिया, जिससे वह नीचे गिर पडा। इन्सपैक्टर ने नीचे पडे पडे ही एक गोली जगदीश को मार दी जो उनके सीने में लगी। तीसरी गोली लगते ही जगदीश मुर्छि्त हो गया। जिन्हे इलाज के लिए देहरादून सेना अस्पताल ले जाया गया। बताते है कि वहां जगदीश को एक बार होश आया था और उनसे माफी मांगने को कहा गया था परन्तु माफी न मांगने पर उन्हे कथित रूप में जहर का इंजेक्शन देकर उनकी हत्या कर दी गई। सहारनपुर जिले के ग्राम खजूरी अकबरपुर निवासी जगदीश वत्स का शव भी पुलिस ने उनके पिता पंडित कदम सिंह शर्मा को नही दिया था।उल्टे दुस्साहसी अंग्रेजो ने जगदीश वत्स को गोली मारने वाले पुलिस इन्स्पैक्टर प्रेम शंकर श्रीवास्तव को पुलिस मैडल प्रदान किया था। प्रथम प्रधान मन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जगदीश वत्स की राष्टृभक्ति व वीरता की प्रंशसा करते हुए एक विजय टृाफी व एक प्रमाण पत्र वत्स परिवार को दी थी। जो धरोहर के रूप में आज भी सुरक्षित है। अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स के परिवार में किसी भी आश्रित ने किसी भी सरकार से स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी पेंशन या अन्य कोई सम्मान या सरकारी सहायता स्वीकार नही की।जबकि जगदीश की शहादत के एक वर्ष के अन्दर उनकी माता जमुना देवी व पिता कदम सिंह शर्मा की मृत्यु हो गई थी और घर में परिवार के नाम पर शहीद जगदीश की 15 वर्षीय छोटी बहन प्रकाशवती,13 वर्षीय छोटी बहन चन्द्रकला,10 वर्षीय छोटी बहन सुरेशवती और मात्र 5 वर्षीय छोटा भाई सुरेश दत्त वत्स रह गए थे, जिनके पालन पोषण की जिम्मेदारी 15 वर्षीय बहन प्रकाशवती यानि मेरी मां पर आन पडी थी,तो भी सरकारी सहायता को ठुकरा देना आजादी के बाद की यह एक बडी मिशाल कही जा सकती है। (लेखक अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स के भांजे व वरिष्ठ पत्रकार है) ईएमएस / 13 अगस्त 24