विमुक्त जनजातियों के लगभग 15 करोड़ लोग प्रत्येक वर्ष 31 अगस्त को अपना आजादी का पर्व बड़े उल्लास के साथ मनाते हैं, यह परंपरा 31 अगस्त 1952 से शुरू हुई जऑकि लगातार जारी। ये वे समुदाय है जिन्हे ब्रिटिश हुकूमत ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1871 के तहत जन्मजात अपराधी घोषित किया था। यूर्ती आरतवर्ष 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था किंतु इन विद्रोही समुदायों को वास्तविक आजादी 31 अगस्त 1952 को मिली, जब इन्हें तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लम माई पटेल के प्रयास से भारत सरकार ने ब्रिटिश कालीन कुख्यात क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट समाप्त कर दिया था। सरकारी दस्तावेजों में ती इन समुदायों की क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट से मुक्ति मिल गई और इन्हें हैनोटिफाइड क्रिमिनल ट्राइब के बजाए डिनोटिफाइड ट्राइब्स या विमुक्त जनजातियों कहा जाने लगा है। किंतु जमीनी सच्चाई यह है कि भारत के इन असल स्वतंत्र योद्धाओं के वंशर्जी की हालत आजाद आरत में बद से बदतर हुई है। न केवल उनके विकास के मार्ग अवरुद्ध किये गये बल्कि इन विद्रोही समुदायों के हौसले भी पस्त कर दिये गये हैं। विशेषकर उत्तर प्रदेश राज्य जहां पर ब्रिटिश हकूमत के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत सबसे पहले हुई और सर्वाधिक आबादी इन समुदायों दायों की है वहां पर यह लोगे अपनी मूलभूत पहचान अर्थात विमक्त जाति के पैमाण पत्र देने की सरकार से दशकों से गुहार लगा रहे हैं। यहां तक की गवर्नर हाउस से अनेकों बार सूबे की सरकार को इस संबंध में पत्र लिखे गए और शासन के उच्च अधिकारियों एवं खुद मुख्यमंत्री महोदय से इस संबंध में प्रत्यक्ष अनुरोध किया गया लेकिन सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी। इनके हिस्से की नौकरियों शिक्षण संस्थाओं में इनके लिए निधर्धारित सीटी योजनाओं एवं बजट को बड़ी ही युक्ति पूर्वक अन्य सक्षम वर्गों को हस्तांतरित किये जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है आरक्षण-अक्षण के दौर में विमुक्त जातियों के अधिकारों के हमम का कर खेल निरंतर जारी है। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लगातार बगावत करने और जाजादी के बाद राज्य सरकारी की घौर उपेक्षा के कारण यह समुदाय हाशिए पर आ चुके हैं यह सर्वाधिक रूप से पिछड़े हुए लोग हैं। 1960 के दशक से विमुक्त समुदायों को मुख्यधारा में जाने हेतु इनके बच्र्चा शिक्षा देने के लिए आश्रम पद्धति विद्यालय खोले गए थे उतर प्रदेश में श्री क्षेत्र आश्रम पद्धति विद्यालय खोले गए किंतु उनके बच्चों को नियमित रूप से कभी भी हर एक जिले में विमुक्त जाति के प्रमाण पत्र जारी नहीं किए गए जिससे वे शिक्षा के के मूलभूत अधिकार से लगातार बंचित रहे। हालांकि अधिकांश विमुक्त जातियां अनुसूचित जाति या ओबीसी में शामिल कर ली गई और यहीं से शुरू हुआ इसके शोषण का असली खेल। अनुसूचित जाति एवं ओबीसी में शामिल करने से यह समुदाय केवल उनकी संख्या में वृद्धि करने में सहायक हुई तदनुसार उनके कोटे में भी वृद्दधि हुई जबकि विकास कार्य हेतु आवंटित किए गए बजट में किंतु इनके हिस्से में कुछ भी नहीं आया। प्रदेश सरकार के अधिकारियों की नासमझी का आलम यह रहा की कभी इन जातियों के विमुक्त जाति की सूची में जोड़ा गया तो कभी हटाया गया। वर्ष 1962 में बिना किसी जिलेवार प्रतिबंध के 29 स्थिर वासी विमुक्त जातियों की तथा 25 घुमंजू विमुक्त जातियों की सूची जारी की गई किंतु विमुक्त जाति प्रमाण पत्र जारी करने में इन जातियों पर ब्रिटिश शासन कालीन जिलेवार प्रतिबंध लगा दिया गया। फिलहाल विमुक्त जातियां अपनी मौलिक पहचान विमुक्त जनजाति (यानी ब्रिटिश विद्रोही सर समुदाय) बनाए रखना चाहती है। विमुक्त जनजाति (डिनोटिफाइड ट्राई ही इन के लिए गौरवमयी पहचान है। आपराधिक जनजाति अधिनियमः अंग्रेजों ने जब भारत भूमि पर अपने पैर जमाना शुरू किए तो यहां की जल, जंगल और जमीन की मातिकान जातियों ने अपने-अपने इलाकों में हथियारबंद विद्रोह शुरू कर दिये थे। फिर उत्तर भारत में सबसे बड़ी रक्त स रंजित क्रांति 1857 में घटित हुई, जिसमें करोड़ों लोगों क जान गवानी पड़ी थी। ऐसी स्थिति में भारत में अपना शासन कायम रखने के उद्देश्य से ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया ने उदारता का परिचय देते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का शासन स्वयं अपने हाथ में ले लिया था और उन तमाम विद्रोहियों को आम माफी की दे दी थी जिन्होंने तहे दिल से क्षमा याचना कर ली थी किंतु भारत के कुछ जनसमुदाय ऐसे थे जिन्होंने अपने जीवन मूल्यों के अनुसार नतो रानी से माफी मांगी थी और न ही सरेंडर किया था बौक से तंग आकर अपने इन कट्टर दुश्मन समुदायों समुदायों पर पर क्रिमिनल इ एक्ट लगाया गया। को नियंत्रित करने एवं दंडित करने के लिए सन 1871 से इ बेशक भारत को आजादी 15 अगस्त 1947 को प्राप्त हो गई थी, किंतु अंग्रेजों द्वारा जन्मजात अपराधी धोषित समुदायों पर ब्रिटिश सरकार दवारा थोपा गया क्रिमिनल ट्याम्स एक्ट, 31 अगस्त 1962 तक जारी रहा तात्पर्य है है की विद्रोही समुदायों को आजादी भारत के के 5 वर्ष 16 दिन बाद। ही मिल सकी वह श्री केवल कागजातों में। सामाजिक व्यवहार एवं सरकारी नौकरशाह इनके साथ अभी भी जन्मजात अपराधियों जैसा व्यवहार करते हैं। क्रिमिनल ट्राइब्या एक्ट की समाप्ति के बाद विद्रोही समूदायों को विमुक्त जाति कहा जाने लगा। क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट केंद्रीय कुख्यात कानून था लेकिन इस एक्ट की समाप्ति के पश्चात भारत सरकार ने विमुक्त जातियों की पहचान एवं उन को मुख्यधारा में लाने का दायित्व राज्य सरकारों को सौंप दिया। हालांकि इनके विकास के लिए तत्कालीन योजना आयोग ने पर्याप्त धनराशि भी राज्य सरकारों को दी थी। सर्वाधिक लंबे समय तक क्रिमिनल ट्राइईब्स एक्ट की यातनाएं उत्तर प्रदेश की विमुक्त जातियों ने झेली। दुर्भाग्य से आजाद भारत में इन समुदायों के अत्थान की बात तो दूर यह अपनी मूलभूत पहचान के संकट से गुजरने को मजबूर हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने 1961 1 मैं एक शासनादेश जारी किया था। इस शासनादेश में स्पष्ट किया गया था कि ब्रिटिश हुकूमत के काले कानून (क्रिमिनल ट्राईब्स एक्ट) की समाप्ति के बाद अब सभी विमुक्त जातियां, बिना किसी प्रतिबंध के देश के सामान्य नागरिक है। सरकारी कागजात में इन समुदायों के के ऊपर से जन्मजात आपराधिक जनजाति होने का विधिक कलंक हट गया है किंतु तथाकथित सभ्य समाज और पुलिस उन्हें अपराधी नजरिये से देखते हैं। आये दिन निर्दोष लोगों को उत्पीड़ित किया जाता है। अपराध कोई भी करे पुलिश सांसी, कंजर, नट, कपबंदिया, पारधी, बावरिया, बधिक, भांतु, हा पथरकट, लोधा, गूजर, मल्लाह, खटिक, पासी, राजभर, मेवाती आदि कलंकित विमुक्त जातियों के युवाओं को जेल में ठूंस देती है। शिक्षा के अधिकार से वंचना उत्तर प्रदेश में सन 2007 तक अनुसूचित जाति, विमुक्त जाति, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचि अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के लिये शिक्षण संस्थाओं प्रशिक्षण संस्थानौ, प्राविधिक संस्थानों एवं उक्त विषयक कोचिंग संस्थानों में प्रवेश दिये जाने का प्रावधान था। किंतु 2008 से तत्कालीन प्रदेश सरकार ने विमुक्त जातियों के लिये किये गये महत्वपूर्ण प्रावधानी को समाप्त कर दिया था। वास्तविक स्वातंत्र्य यौद्धा और संस्कृति के रक्षकः विमुक्त जातियां न केवल वास्तविक स्वातंत्र्य यौदद्याजी के वंशज है बल्कि ये हिंदू संस्कृति के रक्षक भी रहे हैं। जो खिलजी, मुगली गली और अंग्रेजों से लोहा लेने के कारण मुख्यधारा से दूर हो गये थे। वे समुदाय तमाम बदहाली की जिंदगी जीते हुए भी हिंदुत्व की रक्षा, राष्ट्र का सम्मान और अपने इतिहास के अनुसार राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को प्रगाढ़ रखना चाहते है। उत्तर प्रदेश में कुस आबादी का 26% बोट बैंक जाज उस सरकार की तरफ निहार रहा है जो उनको सरदार बल्लभ भाई पटेल द्वारा दिए गए मूलभूत संवैधानिक अधिकारी की वापसी करा सकै तत्काल प्रभाव से इन विमुक्त घुमंतु जातियों को अलग श्रेणी बनाकर 1994 के पूर्व की भांति हमें शिक्षा का अधिकार दिला सके। विमुक्त जनजातियां एक विशिष्ट वर्गः समाज विज्ञानियों एवं कतिपय उच्च न्यायालयों के निर्णय के अनुसार विमुक्त जनजातियां एक विशिष्ट वर्ग है जो अत्यंत पिछड़े होने के कारण किसी अन्य आरक्षण श्रेणी के अभ्यर्थियों के साथ मिलाए जाने पर उनका मुक्तवला नहीं कर सकते। राष्ट्रीय विमुक्त घुमंतु एवं आध घुमंतू जनजाति आयोग (इदाते आयोग- 2018) में बहुत ही सारगर्भित सिफारिश की है कि विमुक्त एवं घुमंतु जनजातियों को जो एससी एसटी या ओबीसी में सम्मिलित कर जी गई है, उनके लिए उनकी आबादी के अनुपात में इन कोड़ा की उप वर्गीकृत कर दिया जाय। सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय श्री कोटा के अंदर कोटा के पक्ष में है। जिसका विरोध इन आरक्षित वर्गों की कीमी लेयर हो चुकी जातियां विरोध कर रही है। जबकि विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियां इस निर्णय का पुरजोर स्वागत और समर्थन करती हैं, किंतु ये सब भूषा समुदाय है, जो अपने हक की मांग भी करें तो उनकी आवाज को दबा दिया जाता है। बहरहाल जब तक विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों के लिए पत्येक उपआरक्षण श्रेणी नहीं बनाई जाएगी तब तक आरक्षण-शक्षण का शिलसिला बदलते दूर दूर जारी रहेगा। (पूर्व उपसचिव एवं निदेशक (शोध), राष्ट्रीय विमुक्त, घुमंतू डॉ बीके लोधी, डीएनटी एक्टीविस्ट एवं अर्दच घुमंतू जनजातिय आयोग, आरत सरकार। पूर्व सीनियर फैलो आईसीएसएसआर, भारत सरकार।) ईएमएस/ 30 अगस्त 24