लेख
19-May-2025
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हमारी आजादी के करीब पच्चीस माह बाद जन्म लेने वाले हमारे संविधान की हम अब हीरक जयंती मना रहे है और इसी दौर में अब हमारे संविधान को सवालों के कटघरें में खड़ा करने की कौशिशें भी की जा रही है, वह भी किसी राजनेता या उसके दल द्वारा नहीं बल्कि देश की सर्वोच्च संवैधानिक हस्ती द्वारा, राष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय से चौदह सवाल पूछकर जानना चाहा है कि- ‘‘सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल व राष्ट्रपति के लिए ‘डेड लाईन’ कैसे तय कर सकता है?’’ वैसे आजादी के बाद से अब तक के वर्षों में संविधान को लेकर अनेक सवाल खड़े किए गए है, यही नही सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों ने बहुमत का फायदा उठाकर अपनी सुविधानुसार संविधान में सवा सौ से अधिक संशोधन भी किए है, किंतु निशान किसी राजनीतिक दल ने नही बल्कि स्वयं संविधान प्रमुख राष्ट्रपति ने लगाने की कौशिश की है। इस तरह एक बार फिर प्रजातंत्र के स्तंभों में टकराव की स्थिति पैदा हो रही है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि ‘‘जब कोई विधेयक राज्यपाल के पास आता है तो उनके पास क्या संवैधानिक विकल्प होते है? क्या राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य है? जब वे अनुच्छेद 200 के तहत् अपने विकल्पों का इस्तेमाल करते है तो क्या उन्हें हमेशा मंत्री परिषद की बात माननी चाहिए? राष्ट्रपति ने यह भी जानना चाहा है कि क्या अनुच्छेद-200 के तहत् राज्यपाल जो फैसले लेते है उनकी न्यायिक समीक्षा हो सकती है या नही? क्या अदालतें उन फेसलों पर सवाल उठा सकती है?’’ अपने चौदह सवालों की फहरिश्त में राष्ट्रपति ने यह भी पूछा है कि क्या अनुच्छेद-361, अनुच्छेद-200 के तहत् राज्यपाल के कार्यों की न्यायिक समीक्षा पर पूरी तरह से रोक लगा सकता है? राष्ट्रपति यह भी पूछती है कि क्या अदालतें न्यायिक आदर्शों के माध्यम से समय सीमा तय कर सकती है, क्या वे यह भी बता सकती है कि राज्यपाल को अनुच्छेद-200 के तहत् अपनी शक्तियों का प्रयोग कैसे करना चाहिए? साथ ही राष्ट्रपति के विवेकाधिकार की समीक्षा हो सकती है या नहीं? राष्ट्रपति ने यह भी पूछा है कि क्या अदालतें न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय सीमा तयकर समती है? क्या वे यह भी बता सकती है कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद-201 के तहत् अपनी शक्तियों का प्रयोग कैसे करना चाहिए? राष्ट्रपति ने यह भी पूछा है कि क्या राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेनी चाहिए जब राज्यपाल किसी बिल को राष्ट्रपति की सहमति के लिए आरक्षित करते है? इस तरह राष्ट्रपति ने अपने चौदह सवालों के माध्यम से संविधान की कानूनी धाराओं का हवाला देते हुए अनेक संवैधानिक सवालों के जवाब जानना चाहे है। हमारी आजादी के अब तक के इतिहास में शायद पहली बार हमारी सबसे बड़ी संवैधानिक हस्ती ने ऐसे संवैधानिक सवालिया निशान खडे़ किए है, जिनके उत्तर मांगे गए है। अब यहां अहम् सवाल यह है कि महामहिम राष्ट्रपति द्वारा उठाए गए इन संवैधानिक सवालों के जवाब क्या हमारी संवैधानिक हस्तियों या विद्वानों के पास है? यदि है तो उन्हें जवाब देकर राष्ट्रपति महोदया को संतुष्ट करना चाहिए और यदि नहीं है तो फिर इनके जवाब खोजने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि ये ही सवाल हमसे हमारी भावी पीढ़ी भी पूछ सकती है और फिर हमें माकूल जवाब देकर उन्हें संतुष्ट करना पड़ेगा, अन्यथा हमारे संविधान पर लगा सवालिया निशान और अधिक गहरा हो जाएगा? ईएमएस / 19 अप्रैल 25