क्षेत्रीय
30-Dec-2024
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रायपुर(ईएमएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने 30 दिसंबर को सामाजिक समरसता पर चर्चा करते हुए इसे राष्ट्रीय चरित्र का एक महत्वपूर्ण तत्व बताया। इस अवसर पर उन्होंने स्वयंसेवकों और अधिकारियों से संवाद करते हुए सामाजिक समरसता गतिविधियों के महत्व पर जोर दिया। डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारत के प्रत्येक गांव, तहसील और जिले में ऐसी सज्जन शक्ति विद्यमान है जो सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने का कार्य करती है। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में जाति और पंथ से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी गई है, जिससे 140 करोड़ भारतीय किसी भी धर्म, जाति या पंथ से हो, अपने राष्ट्रीय चरित्र को नहीं भूलते। सरसंघचालक ने बताया कि देश में विभिन्न भाषाएं, वेशभूषा, पूजा पद्धतियां और उपासना विधियां होने के बावजूद भारतीयता की डोर उन्हें एक सूत्र में बांधती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय चरित्र की स्थापना के लिए सामाजिक समरसता की जड़ों को मजबूत करना आवश्यक है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर कहा कि मंदिर, जलाशय, शमशान जैसे स्थानों पर सभी जाति, पंथ और वर्गों का समान अधिकार है। यह भारत का शाश्वत आचरण है और इसे बरकरार रखना होगा। डॉ. मोहन भागवत ने भारतीय जीवन मूल्यों में सामाजिक समरसता के दर्शन की बात की और कहा कि समाज में नकारात्मक शक्तियां तो हमेशा रही हैं, लेकिन भारतीय समाज ने एकता और अखंडता के साथ अपने अनुकूल व्यवस्था का निर्माण किया। उन्होंने पूज्य गुरुघासीदास का भी उल्लेख किया, जिनके विचार आज भी समाज के लिए मार्गदर्शन का स्रोत बने हुए हैं। गुरु घासीदास ने मानवता और प्रकृति के साथ सद्भावपूर्ण व्यवहार का संदेश दिया है। यह उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगातार सामाजिक समरसता की दिशा में कार्य कर रहा है। डॉ. मोहन भागवत 27 दिसंबर से छत्तीसगढ़ के प्रवास पर हैं और इस दौरान उन्होंने विभिन्न सामाजिक संगठनों और स्वयंसेवकों से मुलाकात की। सत्यप्रकाश(ईएमएस) 30 दिसंबर 2024