नई दिल्ली (ईएमएस)। गजपीपल एक लताधारी पौधा है, जिसके पत्ते मोटे और चमड़े जैसे होते हैं। इसके फूल बेलनाकार और छोटे होते हैं, जबकि फल लाल रंग के और तीखे स्वाद वाले होते हैं। इसके बीजों में कई औषधीय गुण होते हैं, जो विभिन्न बीमारियों के उपचार में सहायक होते हैं। आयुर्वेद में अनेक औषधियों का उल्लेख मिलता है, जिनमें से गजपीपल एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। इसे गजा पिप्पली और सिंधेप्सस ऑफिसिनेलिस के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधा पिप्पली के समान दिखता है लेकिन आकार में बड़ा होता है, इसलिए इसे गजपीपल कहा जाता है। यह भारत के उन स्थानों पर पाया जाता है, जहां जलवायु स्थिर रहती है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में गजपीपल का विशेष उल्लेख मिलता है। सुश्रुत संहिता में इसे कफ और वात दोष को संतुलित करने वाली औषधि बताया गया है। इसकी तासीर गर्म होती है, जिससे यह शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। यह पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है, भूख बढ़ाने में सहायक होता है और पेट के कीड़ों को नष्ट करता है। इसके नियमित सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे व्यक्ति कई प्रकार की बीमारियों से बच सकता है। विशेष रूप से श्वसन रोगों के उपचार में गजपीपल का उपयोग किया जाता है। इसका चूर्ण शहद के साथ लेने से खांसी और कफ में राहत मिलती है। इसके अलावा, यह आमातिसार यानी आंवयुक्त दस्त और पेट दर्द में भी कारगर साबित होता है। हालांकि, इसका अत्यधिक सेवन शरीर में अधिक गर्मी उत्पन्न कर सकता है, जिससे कुछ लोगों को समस्या हो सकती है। इसलिए इसे सीमित मात्रा में और चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार ही लेना चाहिए। यदि सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो गजपीपल शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकता है और कई रोगों से बचाव में मदद कर सकता है। आधुनिक शोधों में यह पाया गया है कि गजपीपल में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबायोटिक और एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं। इसके अर्क में मौजूद फ्लेवोनोइड्स और फेनोलिक यौगिक शरीर को मुक्त कणों से बचाने में मदद करते हैं, जिससे उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी होती है। यह लीवर को डिटॉक्स करने और रक्त परिसंचरण को बेहतर बनाने में भी सहायक है। इसके सेवन से शरीर की सूजन और जोड़ों के दर्द में राहत मिल सकती है। सुदामा/ईएमएस 24 अप्रैल 2025