वैश्विक स्तरपर पूरी दुनियाँ की नजरे अब भारत पर लगी हुई है,कि भारत पहलगाम आतंकी हमले का जवाब उसके आकाओं को कैसे देता है?, ताबड़तोब 23 अप्रैल 2024 को देर रात्रि तक कैबिनेट सुरक्षा समिति (सीसीएस) ने पांच सख़्त कठोर निर्णय लिए हैं, जिसमें सिंधु जल सन्धि 1960 को अस्थाई निलंबन, एकीकृत चेक पोस्ट अटारी तत्काल प्रभाव से बंद, एसएएआरके पाक नागरिकों पर रोक जारी, वीजा रद्द तथा उच्चआयोग के सैन्य सलाहकारों की वापसी तथा संख्या को घटकर 30 कर दी गई है। इसके जवाब में पाकिस्तान ने भी गुरुवार दिनांक 24 अप्रैल 2024 को अपने देश के सीसीएस की सभा में 1972 में भारत-पाक के बीच हुए शिमला समझौते जो उस समय के पाक राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो व भारतीय पीएम इंदिरा गांधी के बीच हुआ था, को रद्द करने पर विचार किया गया है जिसकी गीदड़ भभकी दी गई है। इसमें मेरा मानना है कि यह समझौता रद्द करना भारत के लिए अच्छा भी होगा क्योंकि यह पाक के लिए आत्मघाती कदम सिद्ध होगा व भारत के लिए पीओके प्राप्त करने की राह आसान करने वाला होगा, क्योंकि वैसे भी पाक हमेशा से ही इस समझौते का उल्लंघन करते आया है, इसको निलंबित करने में भारत के हाथ खुले हो जाएंगे वह खुल्लम खुल्ला पीओके को भारत में मिलाने की रणनीति पर काम शुरू कर देंगे, वैसे भी भारतीय कश्मीरी आजकल रोड पर उतरकर आंदोलन कर इस घटना पर रोष प्रकट कर गुस्से से विरोध कर रहे हैं। उधर पीओके के बाशिंदे भी भारत के साथ मिलना चाहते हैं, इसलिए शिमला समझौता तोड़ने का यह फैसला भारत के पक्ष में ही जाएगा क्योंकि पहलगाम आतंकी हमला पाक को पड़ गया महंगा! पानी वीजा सीमाचौकी बंद अबकीबार फाइनल जंग कश्मीरीयों के पहलगाम हमले के खिलाफ जंग व भारत के सख्त इश्क एक्शन से आतंक के खिलाफ होगा कड़ा रिएक्शन इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे भारतीय कैबिनेट सुरक्षा समिति (सीसीए) के 5 निर्णयों से घबरा कर शिमला समझौता रद्द करने की गीदड़भबकी समझौता रद्द होने पर भारत पीओके वापस लाने के लिए स्वतंत्र होगा। साथियों बात अगर हमपाक द्वारा 1972 में हुए शिमला समझौते को रद्द करने की गीदड़भभकी की करें तो पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत के बड़े कदम उठाए हैं जिससे पाक इन कड़े निर्णयों से बौखला गया है, पाक की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की एक बैठक गुरुवार को पीएम की अध्यक्षता में हुई, इसमें पाकिस्तान ने शिमला समझौते को स्थगित करने धमकी दी।दरअसल, पाक के पीएम ने गुरुवार को आनन-फानन में नेशनल सिक्योरिटी कमेटी की बैठक बुलाई, इसमें पाक ने कई फैसले लिए हैं।पाक ने भारत पर अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया और शिमला समझौते को रद्द करने की धमकी देने लगा है। पाक ने कहा कि वह शिमला समझौते समेत भारत से किए गए सभी द्विपक्षीय समझौतों को निलंबित करने का अधिकार सुरक्षित रखता है। पाक की इस गीदड़ भभकी के बाद शिमला समझौता एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है। इसे 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक निर्णायक युद्ध के बाद शांति बहाल करने के लिए साइन किया गया था। साथियों बात अगर हम शिमला समझौते को समझने की करें तो, हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाक के तत्कालीन पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो मिले, दोनों नेताओं ने दो जुलाई 1972 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, इस समझौते को हम शिमला समझौता के नाम से जानते हैं। इस समझौते में दोनों देशों ने शांतिपूर्ण तरीके से अपने मतभेदों का समाधान करने की प्रतिबद्धता जताई थी। इसका लक्ष्य शांति बनाए रखना और रिश्ते सुधारना था। समझौते के जरिए भारत-पाक ने तय किया कि दोनों देश कोई भी विवाद आपसी बातचीत से सुलझाने की कोशिश करेंगे, इसमें तीसरा देशया संगठन दखल नहीं देगा, कश्मीर में भारत और पाक के बीच नियंत्रण रेखा को कोई भी देश एकतरफा नहीं बदलेगा, दोनों देश इसका सम्मान करेंगे, दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ हिंसा, युद्ध या गलत प्रचार नहीं करेंगे, दोनों शांति से रहेंगे और अपने रिश्तों को बेहतर बनाएंगे, समझौते के तहत भारत ने युद्धबंदी बनाए गए पाकिस्तान के 90 हजार लोगों को रिहा कर दिया, इस दौरान कब्जा की गई जमीन को मुक्त किया, पाक ने भी कुछ भारतीय सैनिकों को रिहाई दी थी, इस समझौते ने जम्मू-कश्मीर के मुद्दे अंतरराष्ट्रीय पटल पर जाने से रोका। भारत की दलील है कि कश्मीर का मामला दोनों देशों के बीच का मामला है।भारत और पाक के बीच 1971 में युद्ध हुआ, जो पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) की आज़ादी को लेकर थ। पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में भारी अत्याचार किए, जिसकी वजह से लाखों लोग भारत में शरण लेने आ गए, इसके जवाब में भारत ने हस्तक्षेप किया और पाक के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू की।यह युद्ध भारत की निर्णायक जीत में समाप्त हुआ, पाक सेना के लगभग 93,000 जवानों ने भारतीय सेना केसामने आत्मसमर्पण कर दिया और एक नया देश- बांग्लादेश विश्व मान चित्र पर उभरा भारत इस स्थिति में था कि वह पाक पर भारी शर्तें थोप सकता था, लेकिन इसके विपरीत, भारत ने शांति और स्थिरता को प्राथमिकता दी,इसी सोच के तहत भारत ने पाक को बातचीत के लिए बुलाया और शिमला समझौता हुआ। साथियों बात अगर हम शिमला समझौते की मुख्य शर्तों और प्रावधानों की करें तो,शिमला समझौते में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सहमति बनी थी, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं - (1) द्विपक्षीयता का सिद्धांत: भारत और पाकिस्तान ने यह स्वीकार किया कि वे अपने सभीविवादों को आपसी बातचीत के माध्यम से सुलझाएंगे,यानी किसी तीसरे पक्ष जैसे कि संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, या अन्य कोई बाहरी शक्ति की मध्यस्थता को अस्वीकार किया गया,यह भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत थी, क्योंकि पाक बार-बार कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करता रहा है। (2) बल प्रयोग नहीं होगा: दोनों देशों ने यह वचन दिया कि वे एक-दूसरे के खिलाफ हिंसा या सैन्य बल का प्रयोग नहीं करेंगे और सभी मुद्दों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाएंगे।(3)नियंत्रण रेखा की पुनः स्थापना: 1971 के युद्ध के बाद की स्थिति के अनुसार एक नई नियंत्रण रेखा निर्धारित की गई, जिसे दोनों देशों ने मान्यता दी। यह वही नियंत्रण रेखा है जो आज भी भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाओं को परिभाषित करती है। (4 ) युद्धबंदियों और कब्जाई जमीन की वापसी: भारत ने पाकिस्तान के लगभग 93,000 युद्धबंदियों को बिना किसी अतिरिक्त शर्त के रिहा कर दिया. इसके साथ-साथ, जो जमीन भारत ने युद्ध के दौरान कब्जा की थी, उसका अधिकांश हिस्सा भी पाकिस्तान को लौटा दिया गया। साथियों बात अगर हम शिमला समझौते के महत्व और कूटनीति को समझने की करें तो,शिमला समझौते के माध्यम से भारत ने कश्मीर को एक द्विपक्षीय मुद्दा घोषित करवाया, इसका अर्थ यह हुआ कि अब पाक संयुक्त राष्ट्र या किसी तीसरे देश से मध्यस्थता की उम्मीद नहीं कर सकता, एक तरफ पाक की हार और सैनिकों का आत्मसमर्पण था, वहीं दूसरी ओर भारत का परिपक्व और शांति-पसंद दृष्टिकोण था, यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत की छवि को और मजबूत करता है। शिमला समझौते का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव कश्मीर मुद्दे पर पड़ा, पाक अक्सर इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जाने की कोशिश करता है, लेकिन शिमला समझौता इसे द्विपक्षीय संवाद तक सीमित करता है। भारत इसे एक कानूनी आधार के रूप में प्रयोग करता है कि कश्मीर कोई अंतरराष्ट्रीय मुद्दा नहीं है, 1948 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने कश्मीर पर एक प्रस्ताव पारित किया था,जिसमें जनमत संग्रह का उल्लेख था, लेकिन 1972 में शिमला समझौते के तहत पाकिस्तान ने द्विपक्षीयता को स्वीकार कर इन प्रस्तावों की प्रासंगिकता समाप्त कर दी थी, यही कारण है कि भारत संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप को खारिज करता है। साथियों बात अगर हम समझौता होने के कारणों और, क्या शिमला समझौता तोड़ सकता है पाक? की करें तो 2025 में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाक पर कड़ी कूटनीतिक कार्रवाई शुरू की, इसके जवाब में पाक ने शिमला समझौते का हवाला देते हुए कहा कि वह भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित करता है, जब तक कि भारत संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों और अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन नहीं करता, लेकिन क्या पाक ऐसा कर सकता है? तकनीकी तौर पर, कोई भी देश किसी संधि से खुद को अलग कर सकता है, लेकिन ऐसा करने से उसकी अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता पर गहरा असर पड़ता है, अगर पाक शिमला समझौते को नकारता है, तो वह यह भी स्वीकार करेगा कि अब कश्मीर मुद्दे को बातचीत से सुलझाने की कोई गुंजाइश नहीं रही, भारत इस स्थिति में दो टूक कह सकता है कि यदि पाक समझौते को रद्द करता है, तो फिर वह भी किसी बंधन में नहीं रहेगा।अगर पाक शिमला समझौते को रद्द करता है, तो यह द्विपक्षीय वार्ताओं को पूरी तरह रोक सकता है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तनाव और बढ़ सकता है, साथ ही शिमला समझौते में लाइन ऑफ कंट्रोल का पालन करना दोनों देशों की जिम्मेदारी है अगर यह समझौता रद्द होता है, तो दोनों देशों की सेनाएं पर अधिक आक्रामक हो सकती हैं और संघर्ष की आशंका बढ़ सकती है, साथ ही भविष्य में युद्धबंदी या संघर्ष के मामलों में भरोसे की कमी हो सकती है।शिमला समझौता दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों को सामान्य करने और भविष्य में किसी भी विवाद को शांति और संवाद के जरिए सुलझाने की प्रतिबद्धता है। इस समझौते में यह तय किया गया कि भारत और पाक अपने सभी मुद्दों को आपसी बातचीत से हल करेंगे,किसी तीसरे देश या संस्था को इसमें हस्तक्षेप की इजाजत नहीं दी जाएगी।इस समझौते का एक अहम बिंदु यह भी था कि भारत और पाक, कश्मीर में नियंत्रण रेखा को एक-दूसरे की स्वीकृति के साथ मान्यता देंगे और इसेकोई भी पक्ष एकतरफा रूप से नहीं बदलेगा, दोनों देशों ने यह भी संकल्प लिया कि वे एक-दूसरे के खिलाफ बल प्रयोग, युद्ध या भ्रामक प्रचार का सहारा नहीं लेंगे, शांति बनाए रखेंगे और रिश्तों को बेहतर करेंगे।पाक की ओर से शिमला समझौते को रद्द करने की धमकी केवल एक राजनीतिक हथकंडा है, भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि कश्मीर मुद्दा द्विपक्षीय है और शिमला समझौता इसका आधार है, इस समझौते को रद्द करने की धमकी देकर पाक न केवल खुद की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि यह भी साबित कर देगा कि वह शांतिपूर्ण समाधान में विश्वास नहीं करता। अतः अगर हम उपरोक्त पुरे विवरण का अध्ययन अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे किभारतीय कैबिनेट सुरक्षा समिति (सीसीएस) के पांच निर्णयों से घबरा, भारत- पाक शिमला समझौता रद्द करने की गीदड़ भभकी- समझौता रद्द होने पर भारत पीओके वापस लेने के लिए स्वतंत्र होगा पहलगाम आतंकी हमला पाक को पड़ गया महंगा? पानी वीजा सीमाचौकी बंद-अबकी बार फाइनल जंग ? कश्मीरियों के पहलगाम हमले के खिलाफ़ जंग में उतरने व भारत के सख़्त एक्शन से आतंक के आकाओं खिलाफ़ होगा कड़ा रिएक्शन। (संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी)) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 27 अप्रैल /2025