लेख
27-Apr-2025
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सुप्रीम कोर्ट के दो सदस्यों की खंडपीठ ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ कोर्ट में एक एसी टिप्पणी की, जिसकी चर्चा देशभर में हो रही है। राहुल गांधी द्वारा की गई विनायक दामोदर राव सावरकर पर की गई टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट ने गैर जिम्मेदाराना बताते हुए सख्त लहजे में कहा, यदि दोबारा राहुल गांधी द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का मजाक बनाया गया, विनायक दामोदर सावरकर के खिलाफ यदि कोई बयान दिया गया, तो हम स्वयं संज्ञान लेकर राहुल गांधी पर कार्रवाई करेंगे। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी एक ऐसे मामले में आई, जिसमें राहुल गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसमें हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से जारी समन को रद्द करने से इनकार किया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, राहुल गांधी सेशन कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर कर सकते हैं। इस मामले की अपील राहुल गांधी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई की। राहुल गांधी के खिलाफ जो आपराधिक कार्रवाई चल रही थी, उस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच में सुनवाई के लिए लगा था। 17 नवंबर 2022 को भारत जोड़ो यात्रा के दौरान महाराष्ट्र के अकोला में दामोदर राव सावरकर के खिलाफ राहुल गांधी ने टिप्पणी की थी। इस बयान के बाद देश भर में राहुल गांधी के खिलाफ कई स्थानों पर मुकदमे दर्ज किए गए। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा, स्वतंत्रता सेनानियों के साथ ऐसा व्यवहार ठीक नहीं है। कानून के आधार पर राहुल गांधी को राहत दी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने जब अपना फैसला लिखा, उसमें जो टिप्पणी की गई थी। उसका कोई उल्लेख नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से सावरकर की विचारधारा को लेकर सरकार उन्हें स्वतंत्रता संग्राम का महानायक बनाने का प्रयास कर रही है। पिछले कुछ दशकों में इंग्लैंड से बहुत सारे ऐसे दस्तावेज जो ब्रिटिश सरकार के पास थे, वे एक लंबे समय के बाद भारत सरकार के पास समय-समय पर वापस लौटे हैं। इन दस्तावेजों में वीर सावरकर जब जेल में बंद थे उस समय लिखे पत्र भी सार्वजनिक हुए। यह पत्र कब भारत सरकार को मिले हैं इसकी जानकारी तो नहीं है। दामोदर राव सावरकर शुरुआती दौर में अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में उतरे थे। जब उन्हें जेल हुई, उसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन से अलग होते हुए, अंग्रेज सरकार से माफी मांगी। अपने आप को अंग्रेज सरकार का मुलाजिम बताते हुए सरकार को भरोसा दिलाया था, सरकार जो कहेगी वह करेंगे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दामोदर राव सावरकर ने अंग्रेजों की सेना में युवाओं की भरती के लिए अभियान चलाया था। ब्रिटिश सरकार द्वारा जो दस्तावेज सार्वजनिक किए गए हैं, उसके अनुसार दामोदर राव सावरकर को अंग्रेज सरकार से पेंशन भी मिलती थी। इस बात की जानकारी दस्तावेजों के माध्यम से बहुत बाद में प्राप्त हुई है। दामोदर राव सावरकर ने छदम नाम से एक पुस्तक लिखी। जिसमें उन्हें वीर सावरकर के रूप में प्रस्तुत किया गया। 2014 में जब से केंद्र में भाजपा की सरकार आई है। उसके बाद से वीर सावरकर को महिमा मंडित करते हुए, स्वतंत्रता संग्राम का महान आंदोलनकारी और विचारक बताने की एक नई कोशिश शुरू की गई है। नाथूराम गोडसे जिन्होंने महात्मा गांधी की हत्या की थी, उन्हें भी महानायक बनाया जा रहा है। जगह-जगह उनके मंदिर बनने लगे। इसके साथ ही महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में उनकी आलोचना करते हुए, गलत तथ्यों के आधार पर, देश में एक नई राजनीति शुरू हुई है। राहुल गांधी जिस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए थे। सुप्रीम कोर्ट मे जो याचिका उन्होंने लगाई थी। उस पर विचार करके कोर्ट को निर्णय देना था। पिछले कुछ वर्षों में महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, जवाहरलाल नेहरू एवं अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में गलत तथ्यों के साथ आलोचना एक पक्ष द्वारा प्रचारित की जा रही है। इसी पक्ष द्वारा वीर सावरकर और नाथूराम गोडसे को लेकर जो बातें प्रचारित की जा रही हैं, वह सत्य से परे हैं। इस पर राजनीतिक संग्राम तो होना ही था। वह हो भी रहा है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में पिछले कुछ वर्षों से मामलों की सुनवाई के दौरान तरह-तरह की टिप्पणियां जजों द्वारा की जाती हैं। जब उन्हीं मामले में आदेश आते हैं। उनमें न्यायालय में जो टिप्पणियां जजों द्वारा की गई थी वह आदेश में देखने को नहीं मिलती हैं। न्यायालय में जजों द्वारा जो मौखिक टिप्पणियां की जाती हैं, उन्हें लेकर सरकार और एक राजनीतिक संगठन उसका इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए करने लगता है। जिसके कारण अब हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज भी राजनीतिक विवाद का विषय बनने लगे हैं। पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई, कोलकाता के एक जज महोदय वहां की राज्य सरकार के खिलाफ सुनवाई के दौरान तरह-तरह की टिप्पणी करते रहे। जिसके कारण पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार को समय-समय पर काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। वही जज महोदय इस्तीफा देकर भाजपा में आ गए और सांसद बन गए। कोर्ट की मौखिक टिप्पणियों को आधार बनाकर सरकार उसे निर्णय के रूप में प्रचारित करती है। जन सामान्य के बीच में यह धारणा बनने लगी है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज सरकार के खिलाफ जो भी मामले होते हैं उन मामलों में सरकार को विशेष तरजीह देती है। जबकि न्यायालय के लिए सभी पक्ष समान रूप से बराबर हैं। जब निर्णय आते हैं, न्यायालय द्वारा जो टिप्पणियां मौखिक रूप से की गई हैं। जब उनके अनुकूल फैसला देखने को नहीं मिलता हैं, तो लोगों का न्यायपालिका पर विश्वास कम होने लगता है। कोर्ट द्वारा जो भी टिप्पणी की जाती है यदि वह सभी के ऊपर समान रूप से लागू की जाती हैं तो इससे आमजनों का न्यायपालिका के ऊपर विश्वास बढ़ेगा। यदि वही टिप्पणियां केवल एक वर्ग विशेष के बारे में की जाती हैं। आदेश में उन्हें स्थान नहीं मिलता है। दूसरे पक्ष द्वारा यदि वही कार्य किये जा रहे हैं, न्यायालय द्वारा उन्हें अनदेखा किया जाता है। हजारों मामले में यह अंतर पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिल रहा है। जिसके कारण न्यायपालिका की विश्वसनीयता और न्याय प्रक्रिया पर लोगों के मन में सवाल उठने लगे हैं। न्यायपालिका की विश्वसनीयता और निष्पक्षता को बनाए रखने की जिम्मेदारी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की है। जिस तरह से वीर सावरकर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को चेतावनी दी है। एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी की बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया देश में देखने को मिल रही है। पिछले कुछ वर्षों मे वीर सावरकर और नाथूराम गोडसे और उनकी विचारधारा को लेकर देश में नई राजनीति शुरू हुई है। उसकी क्रिया-प्रतिक्रिया स्वाभाविक रूप से होगी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में यदि यह टिप्पणी करनी थी, तो सावरकर को लेकर नहीं करनी थी। किसी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के खिलाफ यदि इस तरीके की टिप्पणियां की जाती हैं। उन सभी के लिए सुप्रीम कोर्ट यदि चेतावनी देता, तो बेहतर होता। ईएमएस/ 27 अप्रैल 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