(परशुराम जयंती(30 अप्रैल)पर विशेष) विष्णुदेव के दिव्यतम,थे छठवें अवतार। परशुराम जी को नमन् ,रचा धर्म का सार।। मातु रेणुका लाल थे,जमदग्नि मुनि के ताप। संहारा नित पाप को,हरा सकल अभिशाप।। भग्न हुआ शिव का धनुष, परशुराम जी क्लांत। पर प्रभु रघुवर का विनय,देव हुए तब शांत।। मार अधर्मी यह धरा,कर दी थी निष्पाप। परशुराम के तेज को,कौन सकेगा माप।। अंधकार में कर दिया,जिसने तो उजियार। परशुराम जी की सदा,बोलो सब जयकार।। अमर चिरंजीवी बने,शौर्य,दिव्यता मान। संतों के रक्षक सदा,हर द्विज के अरमान।। परशुराम जी की कथा,लगती मंगल गान। सदा सनातन के लिए,भाव भरे अरमान।। परशुराम जी ने किया,नित अधर्म-संहार। किया सदा संस्कार को,मुनिवर ने अति प्यार।। शिव के धनु से था बहुत,जिसको तो अनुराग। शिव श्रद्धामय नित रहे,भाव रहे नित जाग।। आज जयंती हर्षमय,मंगलमय है काल। दिवस बहुत शुभ लग रहा,सबको करे निहाल।। ईएमएस / 29 अप्रैल 25