जल का उचित उपयोग और संरक्षण न केवल हमारे आज के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश की मोहन सरकार का जल गंगा संवर्धन अभियान एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य जल संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में यह अभियान जल, जंगल, जमीन और पर्यावरण संरक्षण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।यह अभियान राज्य के जल स्रोतों, नदियों, तालाबों और जलाशयों की रक्षा और पुनर्जीवन पर केंद्रित है। जल संरक्षण को जन-आंदोलन का रूप देने और भूजल स्तर में सुधार लाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। 30 मार्च 2025 से शुरू होकर 30 जून 2025 तक चलने वाला यह 90-दिवसीय अभियान उज्जैन की पवित्र क्षिप्रा नदी के तट से शुरू हुआ, जिसका समापन भी उज्जैन में ही होगा। इस अभियान के तहत न केवल जल स्रोतों की सफाई और पुनर्जीवन पर काम किया जा रहा है, बल्कि जल संचयन के उपायों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके तहत पुराने जलाशयों और तालाबों की सफाई और पुनर्निर्माण किया जा रहा है ताकि जल को संरक्षित किया जा सके। जल गंगा संवर्धन अभियान का मुख्य उद्देश्य जल संसाधनों का संरक्षण और पुनर्जनन, भूजल स्तर में वृद्धि, और जल संरक्षण के प्रति बढ़ाना है। इस अभियान के तहत जहाँ प्रदेश भर में पुराने तालाबों, कुओं, बावड़ियों और नदियों की सफाई और गहरीकरण किया जा रहा है वहीँ नई जल संरचनाओं का निर्माण कार्य भी प्रगति पर है। वर्षा जल को संग्रहित करने की दिशा में पूरे प्रदेश में इस समय गंभीर प्रयास हो रहे हैं। राज्य में नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए जल गंगा अभियान के तहत विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा शहरों और ग्रामीण इलाकों में वर्षा जल संचयन के लिए टैंक का निर्माण किया जा रहा है, ताकि मानसून के दौरान पानी का संचयन किया जा सके और जल संकट को रोका जा सके। जल संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पौधारोपण पर विशेष जोर दिया जा रहा है। युवा पीढ़ी को जल संरक्षण के महत्व को समझाने के लिए रैलियाँ, जल चौपाल, और प्रदर्शनियाँ आयोजित की जा रही हैं। जल गंगा संवर्धन अभियान का व्यापक प्रभाव मध्यप्रदेश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में देखा जा सकता है। इस अभियान की सबसे बड़ी विशेषता जन-भागीदारी है। सरकार ने इसे केवल सरकारी आयोजन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि विभिन्न सामाजिक संगठनों, ग्राम विकास समितियों और आम नागरिकों को इसमें शामिल किया है। प्रदेश में 1.06 लाख जल दूत तैयार किए गए हैं जो जल स्रोतों के प्रति जन-जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। ये जलदूत स्थानीय स्तर पर जल संरचनाओं के रख-रखाव और जल संरक्षण का कार्य करेंगे। धार जिले में ग्राम विकास प्रस्फुरण समितियों ने श्रमदान के माध्यम से तालाबों और कुंडों की सफाई की जिससे सामुदायिक सहभागिता को बल मिला है। सरकारी विभागों के साथ-साथ एनजीओ और स्थानीय समाज से जुड़े लोग भी इस अभियान का हिस्सा बनकर जल संरक्षण में सहयोग दे रहे हैं। गांवों में जल संरक्षण समितियाँ बनाकर उन्हें सक्रिय किया गया है। अभियान के तहत प्रदेश भर में जल संरक्षण के अनेक कार्य किये जा रहे हैं। बालाघाट जिले में सर्वाधिक 561 खेत तालाब बनाए गए हैं। प्रदेश में अनूपपुर जिला 275 खेत तालाब बनाकर दूसरे क्रम और अलीराजपुर जिला 216 खेत तालाब बनाकर तीसरे क्रम पर है। अमृत सरोवर निर्माण के लिए सिवनी जिले में सबसे अच्छा कार्य हुआ है। टीकमगढ़ में 70 प्राचीन तालाबों और 10 बावड़ियों के निकट क्षेत्रों से अतिक्रमण हटाकर उन्हें स्वच्छ और सुंदर बनाने का कार्य हो रहा है। सागर में नदियों को पुनर्जीवित करने के कार्य भी किए जा रहे हैं। उज्जैन में पंचक्रोशी यात्रा के मार्ग में अभियान के तहत जल संरक्षण से संबंधित अनेक कार्यों को किया जा रहा है। आदिवासी झाबुआ जिले में कुओं की सफाई से जल स्तर में अपेक्षित सुधार हुआ है। यह अभियान/ न केवल जल संकट से निपटने में सहायक होगा, बल्कि किसानों के लिए सिंचाई और पेयजल की उपलब्धता भी सुनिश्चित करेगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का मानना है जल प्रकृति का अमूल्य उपहार है जिसका संरक्षण और संवर्धन करना हम सभी की जिम्मेदारी है। हम अगर जल की बूंद-बूंद बचाएंगे, तभी हमारी सांसें बचेंगी। जल गंगा संवर्धन अभियान मध्यप्रदेश सरकार की एक दूरदर्शी पहल है, जो जल संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दे रही है। यह अभियान न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए जल संकट का समाधान प्रस्तुत करता है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी एक सुरक्षित और समृद्ध कल सुनिश्चित करता है। ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ) ईएमएस / 30 अप्रैल 25