राज्य
30-Apr-2025
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:: तीसरे दिन अद्वैत वेदांत और आधुनिक विज्ञान के सन्दर्भ में संवाद, देशभर के विद्वान हुए सम्मिलित :: :: विज्ञान यदि अध्यात्म से रहित हो तो विनाश की ओर अग्रसर होता है : पंकज जोशी :: वेदांत और विज्ञान दोनों प्रश्नों पर आधारित हैं : नीलेश ओक इन्दौर (ईएमएस)। आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा संस्कृति विभाग, म.प्र. शासन द्वारा आयोजित एकात्म पर्व के तीसरे दिवस पर “चैतन्य: अद्वैत वेदांत एवं आधुनिक विज्ञान” विषयक सत्र ने श्रोताओं को वैचारिक गहराई में पहुंचा दिया। यह संवाद सत्र विज्ञान, वेदांत और अध्यात्म के सम्मिलन की दिशा में एक अभिनव प्रयास था। इस सत्र में रामकृष्ण मिशन के स्वामी आत्मप्रियानंद सरस्वती, आर्ष विद्या गुरुकुलम के संस्थापक स्वामी परमात्मानंद सरस्वती, लेखक-चिंतक नीलेश नीलकंठ ओक, प्रसिद्ध वैज्ञानिक पंकज जोशी, जेएनयू के प्रोफेसर रामनाथ झा, स्वामी प्रणव चैतन्य पुरी, लेखक मृत्युंजय गुहा मजूमदार, स्वामी वेदतत्त्वानंद पुरी, स्वामिनी सद्विद्यानंद सरस्वती और अन्य संत-चिंतक उपस्थित रहे। स्वामी परमात्मानंद सरस्वती ने कहा कि “वेदांत किसी मत का विषय नहीं, बल्कि मानव चेतना की खोज है। यह मनुष्य को उसकी वास्तविक स्वरूप से जोड़ने का विज्ञान है। जब हम बाह्य जगत को ही सत्य मान लेते हैं, तब अज्ञान के बल पर पूरी दृष्टि खड़ी हो जाती है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि वेदांत का संदेश केवल भारत तक सीमित नहीं, बल्कि वैश्विक चेतना के उत्थान का आधार बन सकता है। मृत्युंजय गुहा मजूमदार ने कहा कि 19वीं सदी तक विज्ञान न्यूटनियन भौतिकी पर आधारित था, परंतु 20वीं सदी की शुरुआत में हाइज़नबर्ग और श्रोडिंगर ने क्वांटम सिद्धांत प्रस्तुत किया, जहाँ चेतना को यथार्थ की निर्धारण शक्ति माना गया। उन्होंने कहा कि “चेतना की परिभाषा आधुनिक न्यूरोफिजिक्स में जहां न्यूरल करेस्पॉन्डेंस से जुड़ी है, वहीं अद्वैत वेदांत चेतना को स्वयं स्वतंत्र सत्ता मानता है।” प्रो. रामनाथ झा ने स्पष्ट किया कि अद्वैत वेदांत के अनुसार आकाश की भी उत्पत्ति हुई है, अत: वह नित्य नहीं है, जबकि न्याय और वैशेषिक दर्शन आकाश को नित्य मानते हैं। उन्होंने कहा — “न्यूटनियन विज्ञान का आधार द्वैत है जबकि उपनिषद कहता है – वह एक ही शक्ति है, अन्य सब उसकी ही अभिव्यक्ति हैं।” वैज्ञानिक पंकज जोशी ने चेताया कि विज्ञान जब अध्यात्म से कट जाता है, तब वह विनाशकारी हो सकता है। उन्होंने कहा कि आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के मूल में आज वही चेतना-चिंतन खड़ा है, जिसे भारतवर्ष सदियों से बुद्धि, मेधा, प्रज्ञा और चित्त के रूप में जानता रहा है। “आज की सबसे बड़ी सांस्कृतिक चुनौतियाँ विज्ञान व अध्यात्म के सामंजस्य से ही हल हो सकती हैं।” नीलेश नीलकंठ ओक ने कहा — “विज्ञान और अध्यात्म दोनों प्रश्न से प्रारंभ होते हैं। संत ज्ञानेश्वर ने 13वीं सदी में ही ब्रह्मांड केंद्रित सूर्य सिद्धांत का उल्लेख किया था, जो कॉपरनिकस की खोज से तीन सौ वर्ष पहले का है। यह संशय से सत्य की ओर बढ़ने की यात्रा है — ठीक वैसे ही जैसे शंकराचार्य के ‘नेति नेति’ सिद्धांत में है।” स्वामी आत्मप्रियानंद सरस्वती ने कहा — “वेदांत एक जीवंत संवाद है, जहाँ कोई अंतिम उत्तर नहीं बल्कि खोज ही केंद्र में है।” उन्होंने कहा कि “वेदांत केवल ज्ञान देने नहीं, बल्कि सत्य से मिलने की प्रक्रिया है।” स्वामिनी सद्विद्यानंद सरस्वती ने कहा कि वेदांत व विज्ञान दोनों के क्षेत्र अलग हैं — वेदांत उस सत्य की बात करता है जिसके साक्षात्कार के बाद और कुछ जानने योग्य शेष नहीं रहता। :: आचार्य शंकर के स्तोत्रों ने बंधा भक्ति और दर्शन का संगम :: वेदांत भारती की सुप्रसिद्ध स्तोत्र प्रशिक्षक लोकमाता विद्याशंकर ने कनकधारा स्तोत्र, अच्युताष्टकम्, द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र आदि की जीवंत प्रस्तुति दी। उनके गायन ने दर्शकों को भक्तिभाव से भर दिया। :: आज होगा ‘रील टू रियल: अवेकनिंग वननेस थ्रू स्टोरीटेलिंग’ सत्र :: आज रील टू रियल: अवेकनिंग वननेस थ्रू स्टोरीटेलिंग विषयक संवाद का आयोजन होगा, जिसमें इस्कॉन के आध्यात्मिक गुरु गौरांग दास, फ़िल्ममेकर प्रवीण चतुर्वेदी और हाइपरक्वेस्ट के संस्थापक विशाल चौरसिया जैसे वक्ता अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। :: दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी अद्वैत लोक प्रदर्शनी :: साथ ही अद्वैत वेदांत के लोकव्यापीकरण हेतु आयोजित अद्वैत लोक प्रदर्शनी, अद्वैत शारदा पुस्तकालय, व सांस्कृतिक प्रदर्शनियाँ भी विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। उमेश/पीएम/30 अप्रैल 2025