राज्य
30-Apr-2025
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:: व्यवस्था और मानवीय शिक्षा से आत्मनिर्भरता सम्भव :: इन्दौर (ईएमएस)। मानव चेतना विकास केंद्र, पिवडाय, इन्दौर में राज्य आनंद संस्थान, आनंद विभाग, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा स्वीकृत दो वर्षीय अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत प्रायोजित 30 दिवसीय - आत्मनिर्भरता से पूरकता की कार्यशाला 1-30 अप्रैल 2025 को संपन्न हुई। इस कार्यशाला में प्रदेश के विभिन्न चयनित शैक्षणिक संस्थाओं के 20 प्रतिभाशाली छात्र, छात्राओं ने भाग लिया। डॉ अभय वानखेड़े, अनुसंधान परियोजना निदेशक ने स्पष्ट किया की युवाओं को रोजगार / कौशल आधारित शिक्षा के साथ परिवार मूलक मानवीय शिक्षा का समावेश अत्यंत आवश्यक है। मानवीय मूल्य शिक्षा के भाव और बढ़ते सोशल मीडिया के प्रभाव से विद्यार्थियों में तनाव, अकेलापन, भय व आलस्य बढ़ा है। अपनी मौलिक चाहना के अध्ययन अभ्यास से मानसिक स्वतंत्रता व निर्णय लेने योग्यता का विकास होता है, फलतः विद्यार्थियों में मानसिक, भावनात्मक, और आर्थिक स्वतंत्रता से पूर्ण होना बनता है जिससे प्रत्येक मानव में बौद्धिक समाधान और परिवार में भौतिक समृद्धि को सुनिश्चित किया जा सकता है। राज्य आनंद संस्थान, आनंद विभाग इसी दिशा में प्रयासरत है। इसी क्रम में इस अनुसन्धान परियोजना के द्वारा मानव में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता की पहचान कर स्वयं में सुखपूर्वक, परिवार में समृद्धि, समाज में अभयता और प्रकृति में सहअस्तित्व पूर्वक जीने के शिक्षा संस्कार की सूचना - चिंतन - मनन - अध्यन – अभ्यास करते हुए समीक्षा कर विश्वासपूर्वक जीने की विषय वस्तु से अवगत कराया गया। कार्यशाला के दौरान विद्यार्थियों की लिए जिंदगी से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न आधारित तकनिकी सत्र जैसे – आजादी क्या है, असली चाहत क्या, मेरा महत्व क्या, क्या तय करे, कैसे तय करे, मेरा रोल क्या, में कौन, मेरा फैलाव क्या, मेरी पहचान क्या, सम्मान क्या, क्यों कैसे, थैंक्स क्या, कैसे, खालीपन क्या है, कैसे भरें, हमसे आगे कौन, मेरा स्वभाव क्या, क्रियेटिविटी क्या, परिवार क्या, समाज क्या, नेचर से रिश्ता क्या, कण्ट्रोल क्या, मेरा एफर्ट कंहाँ, व्यवस्था क्या और पक्का क्या। उक्त सभी सत्रों को मानव चेतना विकास केंद्र में मानवीय शिक्षा व्यवस्था का अध्ययन कर रहे युवा साथियों ने पूर्ण किये। संवाद सत्र में विद्यार्थियों ने करियर, दोस्ती में शोषण, प्रतियोगिता, दूसरों से अपेक्षा, माता- पिता के बढ़ती दूरी और अकेलेपन जैसे प्रश्न पूछे, जिसके तार्किक, व्यावहारिक, सार्वभौमिक उत्तर अजय दायमा, संस्थापक - मानव चेतना विकास केंद्र द्वारा सहजता से दिए गए। सभी सहभागियों में समझाने और सिखाने की अनुकूलता के लिए उन्हें अपने अभिभावक/ मेंटर के साथ भी रहने का समय दिया गया। समझे हुए को समझाने, जानने को बताने की प्रक्रिया में प्रस्तुतीकरण के दो भाग स्पष्ट किये गए। पहला बोलकर व्यक्त होना और दूसरा जीकर व्यक्त होना। निया देहरिया, सीएम राइज स्कूल, तामिया की छात्रा ने व्यवस्था में जीने के स्वरुप को जानने की जिज्ञासा व्यक्त की। सुमित मालवीय ने शोषण मुक्त जीने, परिवार में अपनेपन के साथ रहने के लिए क्या-क्या समझना इसको जानने का प्रयास किया। अमृता सनोदिया, विधि महाविद्यालय, छिन्दवाड़ा ने यह जानने का प्रयास किया मानव में भय और प्रलोभन के कारन नियंत्रण दीखता है तो फिर स्वनियंत्रण के साथ जीने के लिए क्या और कैसे समझना बहुत जरुरी है। कुमारी नेहा, शासकीय विधि महाविद्यालय, छिन्दवाड़ा की छात्रा ने प्रश्न किया की मै तन, मन, धन के सदुपयोग को कैसे जानकर जी पाऊँगी। अनन्या सिंह, जीजामाता कन्या महाविद्यालय, इन्दौर की छात्रा ने समझने का प्रयास किया कि मेहनत के साथ मानवीय दिशा को पहचान कर जीया जा सकता है इसके लिए सही समझ / समाधान को पाना संभव है। कुमारी वर्षा, कस्तूरबा ग्राम ट्रस्ट संस्थान, इन्दौर की छात्रा को केंद्र में परिवार के सामूहिक किचन और अपनत्व के भाव से बहुत प्रभावित हुई। कार्यशाला की विषय वस्तु को 28 सत्रों में विभक्त किया गया था। विषय वस्तु की समझ को स्पस्ट करने के लिए प्रतिदिन चर्चा सत्र, प्रस्तुति सत्र, कार्यअभ्यास सत्र और व्यवहार सत्र किये गए। दोस्ती सत्रों को केंद्र के युवाओं ने अपनी अभी तक की आत्मनिर्भरता के साथ जीने की समझ, प्रयास और अनुभव के आधार पर पूर्ण किया। सभी सत्रों के मूल्यांकन के लिए व शोध निष्कर्ष आंकलन हेतु सत्र पूर्व और सत्र उपरांत आंकलन सह जाँच और विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया। चेतना विकास केंद्र एक परिवार मूलक शैक्षणिक केंद्र है, जो विगत 16 वर्षो से मानवीय शिक्षा के लिए क्रियाशील है। केंद्र में भारत के 11 राज्यों से 132 सदस्य रहते है। यहाँ मुख्य रूप से मानव-मानव के साथ और मानव-प्रकृति के साथ जीने का अस्तित्व सहज नियम को समझने, समझाने और जीने की शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया जाता है। केंद्र में अपनी जरुरत की लगभग सभी वस्तुओं का उत्पादन, प्रसंस्करण एवं निर्माण किया जाता है, परिसर में ही 200 गिर गायों की नौकर मुक्त गौशाला भी है। विशेष उल्लेखनीय है कार्यशाला में शिक्षा - व्यवस्था को समझने, जीने, समझाने की दिशा कार्य कर रहे रवि शेषाद्री, रामेन्द्र सिंह भदौरिया, चरण सिंह नायक, अनीस खान, सागर चावड़ा, अमित पाण्डेय, तारकेश राव, दिलीप चौहान ने भी अपनी सहभागिता से सभी छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन व प्रेत्साहित किया। उमेश/पीएम/30 अप्रैल 2025