नई दिल्ली (ईएमएस)। आयुर्वेद के प्रमुख ग्रंथों जैसे चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भावप्रकाश और धन्वंतरी निघण्टु में प्रियंगु का उल्लेख विभिन्न रोगों के उपचार हेतु किया गया है। इन ग्रंथों में इसके प्रयोग पेस्ट, काढ़ा, तेल, घी और आसव के रूप में बताए गए हैं। प्रियंगु पौधा विशेषतः भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है, जो समुद्र तल से लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई तक उगता है। इसका वैज्ञानिक नाम कैलिकारपा मैक्रोफिला वाहल है और इसे अंग्रेज़ी में ब्यूटी बेरी या सुगंधित चेरी कहा जाता है। यह पौधा संस्कृत में प्रियंगु, शुभा, वनिता जैसे नामों से जाना जाता है, जबकि विभिन्न भारतीय भाषाओं में इसके अलग-अलग नाम हैं। यह पौधा स्वाद में तीखा, कड़वा और मधुर होता है, और स्वभाव से शीतल, लघु व रूखा माना जाता है। यह वात और पित्त दोषों को संतुलित करने में सहायक होता है। प्रियंगु का उपयोग त्वचा की रंगत निखारने, घाव भरने, उल्टी, जलन, पित्तजन्य बुखार, रक्तदोष, खुजली, मुंहासे, विष के प्रभाव और अत्यधिक प्यास जैसी समस्याओं में किया जाता है। इसके बीज और जड़ आमाशय की क्रियाओं को सक्रिय करते हैं और मूत्र संबंधित विकारों में लाभ पहुंचाते हैं। प्रियंगु, त्रिफला और नागरमोथा को मिलाकर बना चूर्ण दांतों से जुड़ी बीमारियों जैसे मसूड़ों की सूजन में उपयोगी होता है। पाचन संबंधी समस्याओं जैसे अजीर्ण, दस्त, पेट दर्द और पेचिश में इसके फूल और फल का चूर्ण कारगर है। रक्तातिसार और पित्तातिसार में शल्लकी, तिनिश, सेमल, प्लक्ष छाल और प्रियंगु के मिश्रण को मधु और दूध के साथ लेने से राहत मिलती है। इसके अलावा, प्रियंगु की पत्तियों को पानी में भिगोकर उसका अर्क पीने से यूटीआई जैसी समस्याओं में लाभ होता है। कठिन प्रसव की स्थिति में इसकी जड़ का पेस्ट नाभि के नीचे लगाने से प्रसव में जटिलताएं कम होती हैं। गठिया या आमवात की समस्या में इसके पत्ते, छाल, फूल और फल का लेप दर्द से राहत देता है। यह कुष्ठ और हर्पीज जैसे त्वचा रोगों में भी लाभकारी सिद्ध हुआ है। इसके अतिरिक्त, नाक और कान से रक्तस्राव होने पर प्रियंगु, लाल व नील कमल और पृश्निपर्णी से तैयार जल का सेवन प्रभावकारी माना गया है। बच्चों में उल्टी, पिपासा और अतिसार जैसी स्थितियों में प्रियंगु, सौवीराञ्जन और नागरमोथा के चूर्ण को मधु के साथ देना लाभप्रद होता है। विषनाशक गुणों के चलते यह कीटदंश या अन्य विषाक्त प्रभावों में भी उपयोगी है। आयुर्वेद के अनुसार प्रियंगु के सभी भाग पत्ते, फूल, फल और जड़ औषधीय गुणों से युक्त होते हैं। हालांकि, इसका सेवन चिकित्सकीय परामर्श के बाद ही करना चाहिए। आमतौर पर इसका 1-2 ग्राम चूर्ण चिकित्सक की सलाह पर दिन में एक या दो बार सेवन किया जा सकता है। बता दें कि आयुर्वेद में प्रियंगु एक ऐसी वनस्पति है जिसे अपने बहुआयामी औषधीय गुणों के लिए प्राचीन काल से जाना जाता है। इसे हिन्दी में बिरमोली या धयिया कहा जाता है। पेट और त्वचा संबंधी समस्याओं में इसके प्रयोग को विशेष रूप से प्रभावकारी माना गया है। सुदामा/ईएमएस 07 मई 2025
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