नई दिल्ली (ईएमएस)। दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने एक ऐसा महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जो पारिवारिक विवादों और घरेलू हिंसा कानून के दायरे को लेकर एक अहम नजीर बन सकता है। अदालत ने कहा कि यदि पति-पत्नी के बीच तलाक हो चुका है, तो घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिला केवल मुआवजे की मांग कर सकती है। ऐसे में किसी भी अन्य प्रकार की राहत या शर्तें, कानूनी रूप से उचित नहीं मानी जा सकती। यह फैसला उस मामले में आया, जहां एक महिला ने घरेलू हिंसा की शिकायत करते हुए अपने पूर्व पति और उनके माता-पिता के खिलाफ याचिका दायर की थी। इस आदेश के खिलाफ पति के माता-पिता ने सेशन कोर्ट में अपील की। उनके वकील प्रशांत दीवान ने दलील दी कि महिला ने पहले ही एकतरफा तलाक हासिल कर लिया है और यह तलाक 3 मई से प्रभावी हो चुका है। ऐसे में अब घरेलू हिंसा याचिका में कोई अन्य राहत, जैसे कि यात्रा पर रोक, वैध नहीं। एडिशनल सेशन जज विक्रम ने मामले की गहराई से जांच की और पाया कि महिला के वकील ने भी तलाक की डिग्री को चुनौती नहीं दी है और तलाक की प्रति रिकॉर्ड में दर्ज है। जब पति-पत्नी के बीच तलाक की डिग्री प्रभावी हो चुकी है, तो घरेलू हिंसा कानून के तहत मांगी गई राहतों में से केवल मुआवजे की मांग ही वैध मानी जा सकती है। अन्य सभी राहतें, जैसे कि निवास, सुरक्षा, या विदेश यात्रा पर प्रतिबंध, अब लागू नहीं की जा सकतीं। यदि पत्नी को मुआवजा चाहिए, तो वह इसे संपत्ति की कुर्की के जरिए सुरक्षित कर सकती है। लेकिन, यात्रा पर रोक जैसे कदम अकारण और अतिरेक हैं। रोहिणी कोर्ट की सेशन कोर्ट ने महिला अदालत का आदेश रद्द किया। अजीत झा/ देवेन्द्र/ नई दिल्ली /ईएमएस/16/ मई /2025