हमारी आजादी और हमारे संविधान की हीरक जयंती मनाने के बाद आज भी हम देश के कुछ मौजूद हालातो के लिए हमारे पूर्व प्रधानमंत्री को दोषी ठहरा रहे हैं, यह कहां तक उचित है? जबकि हम जानते हैं कि हर प्रधानमंत्री तत्कालीन राजनीतिक सामाजिक और देश की आर्थिक स्थिति के अनुरूप महत्वपूर्ण फैसले लेते हैं उनमें उनका या उनके राजनीतिक दल का कोई हित समाहित नहीं होता है किंतु आज की यह परंपरा ही बन गई है कि स्वयं को श्रेष्ठ प्रशासक या प्रधानमंत्री साबित करने क लिए आज श्रेष्ठ कार्यों से नहीं बल्कि अपने मुखारविंद से पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री की आलोचना की जाती है। आज भी ऐसे कई अवसर आते हैं जब देश के मौजूदा शासकों द्वारा हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आलोचना की जाती है यही नहीं हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक को पाकिस्तान के मौजूदा संदर्भ में नहीं बक्शा जा रहा आज भी देश के विभाजन के लिए गांधीजी को ही दोषी माना जा रहा है जबकि हमारा इतिहास गवाह है कि तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों ने गांधी को देश विभाजित करने के लिए मजबूर किया था। यहां सबसे उल्लेखनीय महत्वपूर्ण बात यह है कि हम हमारे पूर्वज राज नायकों की आलोचना करके हमारी नई पीढ़ी को क्या सीख दे रहे हैं क्या हम चाहते हैं कि हमारी नई पीढ़ी हमारे इस इतिहास से प्रेरित होकर राजनीति में उनका दामन थाम ले जो कांग्रेस विरोधी हैं आखिर हमारे इन प्रयासों से क्या होगा क्या देश का सच्चा और सही इतिहास उनके सामने आ पाएगा आखिर आज भी इस तथ्य से कौन इनकार कर सकता है कि कांग्रेस देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल है और देश की ए जड़ी में उसका अहम योगदान है यह बात में किसी राजनीति या किसी दल विशेष से लगाओ की वजह से नहीं कह रहा हूं मैं तो महज जो तत्कालीन वास्तविकता थी उसे नई पीढ़ी की जानकारी के लिए सामने रख रहा हूं। देश का प्रधानमंत्री कोई भी किसी भी डाल से जुड़ा शख्स हो किंतु उसे पद पर रहते देश को सामने रखकर काम करना पड़ता है फिर वह चाहे जवाहर लाल हो या चरण सिंह या अटल जी या मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी सभी अपने-अपने तरीके से काम करते हैं और मेरा ऐसा मानना है कि सभी का नजरिया स्वयं या अपने दल के हित का नहीं बल्कि देश के हित का रहा है और वही नजरिया आज हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री जी का भी है जो अपने देश की अतीत से चली आ रही गरिमा को अखंडित और बरकरार रखना चाहते हैं। इसलिए आज के समय की सबसे पहले और हम जरूर हमारे नजरिए में सुधार की है क्योंकि देश के शासन के सर्वोच्च पद पर विराजित शख्स न परिवार का होता है और ना समाज का वह सिर्फ और सिर्फ देश का होता है वह जो भी फैसला लेता है तब उसके सामने देश होता है समाज या परिवार नहीं और इसके लिए हर समीक्षक में निर्विकार भाव या पूर्वाग्रह विहीन होना बहुत जरूरी है तभी हम किसी का भी सही समीक्षा के निकट पहुंच सकते हैं और यह भी समझ लेना चाहिए कि हम बुद्धिजीवी हैं राजनीतिजीवी नहीं तभी हम हर ओर से निष्पृद रह पाएंगे। ईएमएस / 25 मई 25