- वसूली एजेंट तैनात, फिर भी सारा बकाया भोपाल (ईएमएस)। मध्य प्रदेश में कृषि भूमि मालिकों को शायद इस बात की जानकारी नहीं है कि उनसे हर साल भू-राजस्व वसूला जाता है। आमतौर अगर ये टैक्स किसान जमा नहीं करते लेकिन इसका बकाया उन पर चढ़ता जाता है। क्योंकि ये टैक्स इतना मामूली है कि सुनकर यकीन करना मुश्किल है। ये टैक्स अंग्रेज शासनकाल से चला आ रहा है। इसे न तो खत्म किया गया है और न ही बढ़ाया गया है। नियम के अनुसार हर बीघा पर भू-राजस्व (टैक्स) सालाना 50 पैसे लेकर 10 रुपये तक है। फिर चाहे इस जमीन की कीमत कितनी ही क्यों न हो। आमतौर पर जब जमीन का नामांतरण होता है या फिर खरीद-फरोख्त होती है, तभी इस टैक्स को भरा जाता है। यानी अगर एक बीघा जमीन की कीमत अगर 1 करोड़ रुपये है तो इस पर भू-राजस्व 50 पैसे लेकर 10 रुपये तक है। भू-राजस्व कर 96 साल से जस का तस मध्य प्रदेश में कृषि भूमि पर लिए जाने वाला भू-राजस्व 96 साल से जस का तस है। न इसे बढ़ाया गया और न कम किया गया। आज से दशकों साल पहले ये टैक्स किसानों को भारी पड़ता था लेकिन अब ये न के बराबर है। उस समय भू-लगान के डर से बड़े जमींदार या भू-स्वामी अपनी जमीन सरकार को सुपुर्द कर देते थे या फिर दान कर देते थे। जब ये राशि बहुत ज्यादा मानी जाती थी, तब भू-लगान वसूलने के लिए राजस्व विभाग ने हरेक गांव में वसूली पटेल की नियुक्ति की थी। ये वसूली पटेल कलेक्शन कर पटवारी के पास राशि जमा करवाता था। इसमें उसे कमीशन मिलता था। लेकिन अब ये राशि इतनी कम है कि न तो वसूली पटेल को रुचि रही और न ही राजस्व विभाग को। भू-लगान का पूरा इतिहास समझिए भू-लगान की व्यवस्था ब्रिटिश काल से ही चली आ रही है। ब्रिटिश राज में 1793 में लॉर्ड कॉर्नलविस ने पहली बार जमीदारों को जमीन का मालिकाना हक देते हुए उनसे भू राजस्व की वसूली शुरू की। जमीदार किसानों से राजस्व वसूल कर कुछ हिस्सा अपने पास रख कर ब्रिटिश सरकार को देते थे, जिसे स्थाई बंदोबस्त व्यवस्था कहा गया। अलग-अलग समय में इस व्यवस्था में परिवर्तन किए गए। इसके बाद 1929-30 में मिसल बंदोबस्त को अपनाया गया, जो ब्रिटिश कालीन भारत की संपूर्ण राजस्व भूमि का रिकॉर्ड था। इस काल में निर्धारित किए गए भू-लगान को आज भी आजाद भारत में जारी रखा गया है। हालांकि आजाद भारत में 1956 के राजस्व रिकॉर्ड और बंदोबस्त लागू हैं। दशकों पहले भू-लगान से डरकर जमीन छोड़ देते थे लोग बहुत पहले की बात है। बड़े जमीदारों और राजाओं ने भू-लगान नहीं भर पाने के कारण जमीन सरकार के हवाले कर दी थी। रतलाम, सैलाना और सेमलिया राजपरिवार से संबंधित महाराज अजय सिंह बताते हैं आज जमीनों के दाम करोड़ों में पहुंच गए हैं। अब जमीन से उत्पादन एवं कमाई भी अच्छी होने लगी है। लेकिन भू-लगान आज भी पैसे में ही बना हुआ है। लेकिन तब हालात ऐसे नहीं थे। देश आजाद होने के बाद भी भू राजस्व व्यवस्था अंग्रेजकालीन ही चल रही थी। तब एक बीघा जमीन का यही कुछ पैसे का भू-राजस्व बड़ा महंगा पड़ता था। जमींदार और राज परिवारों के पास हजारों बीघा जमीन थी, जिसका राजस्व भरने वह सक्षम नहीं थे। इसलिए या तो जमीन को सरकार को सुपुर्द कर दी गई या उन्हें अन्य लोगों को दान कर दी गई। अभी भू-लगान ऑनलाइन भरने की व्यवस्था है रतलाम के तहसीलदार ऋषभ ठाकुर बताते हैं भू-राजस्व संहिता में भू-राजस्व लेने की प्रक्रिया स्पष्ट है। इसके अनुसार भू-स्वामी को उसे जमीन का मालिकाना हक है, जिसके एवज में उन्हें भू-लगान यानि भू-राजस्व शासन को जमा करवाना है। अंतत: यह समस्त भूमि सरकार की ही है। अंग्रेज काल में यह राजस्व अवश्य महंगा लगता होगा लेकिन आज के दौर में यह बेहद नॉमिनल है। किसान ऑनलाइन माध्यम से भी यह राजस्व शासन को जमा करवा सकते हैं। विनोद / 31 मई 25