04-Jun-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। आमतौर पर मगादड़ किलों, खंडहरों और पुराने पेड़ों पर उल्टा लटकते नजर आते हैं। बुंदेलखंड और सागर जैसे क्षेत्रों में खास तौर पर इनकी दो प्रजातियां देखने को मिलती हैं एक बहुत छोटी, जिसे स्थानीय भाषा में चिपरु कहा जाता है, और दूसरी बड़ी, जो नदी-तालाब के किनारे या पेड़ों व खंडहरों में पाई जाती है। घरों में अक्सर जो चमगादड़ प्रवेश करती हैं, वे किसी कोने या अंधेरी जगह में छिप जाती हैं और फिर रात में उड़कर बाहर निकलती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इन्हें अशुभ मानने की परंपरा आज भी बरकरार है। माना जाता है कि यदि कोई चमगादड़ घर में दिख जाए, तो वह किसी अनहोनी का संकेत होता है। लोग आमतौर पर गोबर या अन्य वस्तुओं से उस जगह को बंद कर देते हैं, जहां से ये अंदर आई हों, ताकि वे वापस न लौट सकें। अगर इसके बावजूद वे आते रहें, तो कई बार उन्हें मारने तक की नौबत आ जाती है। हिंदू धर्मग्रंथों में भी चमगादड़ को शुभ नहीं माना गया है। कई पुराणों में इसका उल्लेख अपशगुन के रूप में हुआ है। सानौधा ग्राम पंचायत की एक बुजुर्ग महिला, जिन्हें सभी दादी अम्मा कहकर बुलाते हैं, बताती हैं कि यह पक्षी जिस घर में प्रवेश करता है, वहां परेशानियां शुरू हो जाती हैं। उनका मानना है कि यह जीव अकेले रहना पसंद करता है और यदि गलती से भी किसी घर में डेरा डाल दे, तो वह घर वीरान होने लगता है। बुंदेली बोली में एक कहावत प्रचलित है कि उल्टा लटकै, उजर ताकै, यानी चमगादड़ उल्टा लटककर उजाड़ की निगरानी करता है। हालांकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो चमगादड़ पारिस्थितिकी तंत्र का एक अहम हिस्सा हैं, लेकिन ग्रामीण अंचलों में इनके प्रति भय और अंधविश्वास अब भी गहराई से मौजूद है। मालूम हो कि चमगादड़ एक ऐसा जीव है जिसे अक्सर वीरान और मानव रहित जगहों पर देखा जाता है। इन्हें लेकर आम धारणा है कि ये जिस भी स्थान पर बसेरा करते हैं, वहां नकारात्मक ऊर्जा फैलती है और वह जगह धीरे-धीरे वीरान हो जाती है। सुदामा/ईएमएस 04 जून 2025