ज़रा हटके
07-Jun-2025
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वाशिंगटन (ईएमएस)। मोटापा न केवल शरीर के लिए, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बनता जा रहा है। ताजा शोध में पाया गया है कि मोटापा चिंता जैसी मानसिक समस्याओं को जन्म दे सकता है और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकता है। यह असर आंत और मस्तिष्क के बीच होने वाली जैविक अंतःक्रिया के कारण हो सकता है। अमेरिका के जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर और पोषण विभाग की अध्यक्ष डेजीरी वांडर्स द्वारा किए गए इस शोध में चूहों पर परीक्षण किए गए, जिससे यह निष्कर्ष सामने आया है। शोध में चूहों को दो समूहों में विभाजित कर एक समूह को छह सप्ताह तक कम वसा वाला आहार दिया गया, जबकि दूसरे समूह को 21 सप्ताह तक उच्च वसा वाला आहार दिया गया। अपेक्षा के अनुरूप, उच्च वसा वाले आहार से चूहों का वजन काफी बढ़ा और उनके शरीर में वसा की मात्रा भी अधिक हो गई। जब शोधकर्ताओं ने इन चूहों पर व्यवहार संबंधी परीक्षण किए, तो उन्होंने देखा कि मोटे चूहों में चिंता जैसे व्यवहार अधिक स्पष्ट रूप से देखने को मिले, जैसे किसी खतरे के समय ठिठक जाना। इसके साथ ही मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस हिस्से, जो चयापचय और संज्ञानात्मक कार्यों को नियंत्रित करता है, उसमें भी मोटे चूहों में अलग-अलग प्रकार के संकेत देखे गए। यही नहीं, शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि मोटे और दुबले चूहों की आंत में मौजूद सूक्ष्मजीवों की संरचना में बड़ा अंतर था, जो मस्तिष्क और मानसिक स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं। प्रोफेसर वांडर्स का कहना है कि इस अध्ययन के निष्कर्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति और व्यक्तिगत जीवनशैली दोनों पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं। खासतौर पर यह निष्कर्ष दर्शाता है कि मोटापा सिर्फ शारीरिक बीमारियों जैसे टाइप-2 मधुमेह और हृदय रोग का कारण नहीं बनता, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि आहार, आंत की स्थिति और मस्तिष्क के बीच एक जटिल संबंध है, जिसे समझना आवश्यक है। यह अध्ययन खास तौर पर बच्चों और किशोरों के लिए महत्वपूर्ण है, जहां मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। अध्ययन यह भी संकेत देता है कि समय रहते मोटापे की रोकथाम और प्रारंभिक हस्तक्षेप से न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाया जा सकता है। सुदामा/ईएमएस 07 जून 2025