अवधपुरी / भोपाल(ईएमएस)। राजधानी में आज से 6 दिवसीय भावना योग प्रशिक्षक प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ श्री विद्याप्रमाण गुरुकुलम् में हुआ। जिसमें मुनि श्री ने गंभीर आत्मचिंतन और आध्यात्मिक जागृति के वातावरण को जाग्रत किया। इस अवसर पर देशभर से पधारे भावनाशील साधकों ने भावना योग के प्रशिक्षक बनने की भावना से इस महाशिविर में भाग लिया। प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने बताया कि शिविर में मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज का आरंभिक उद्बोधन अत्यंत भाव स्पर्शी रहा, जिसमें स्पष्ट किया गया कि भावना केवल एक क्रिया नहीं,बल्कि आत्मा की चेतना का सूक्ष्म स्पंदन है आज की इस भागती दुनिया में,जहाँ व्यक्ति बाहरी उपलब्धियों से भरा है लेकिन भीतर से खाली है। वहाँ भावना योग एक चेतनामयी समाधान के रूप में उभर रहा है। मुनि श्री ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से बताया कि कैसे एक ही घटना दो लोगों को अलग-अलग दिशा में ले जा सकती है। जिसमें एक टूटता है,तथा दूसरा निखरता है। इसका रहस्य है व्यक्ति की भावधारा। भावनाएँ ही कर्म का बीज हैं, और उन्हें शुद्ध कर लेने पर आत्मा परमात्मा से मिल सकती है। उन्होंने स्पस्ट करते हुये कहा कि भावना का अर्थ सिर्फ इमोशन नहीं, बल्कि चेतना की कंपनशील स्थिति है, जो हमारे व्यवहार, वाणी, शरीर और अंततः कर्म के बंधन को प्रभावित करती है जैसे-जैसे भावना शुद्ध होती है, चेतना परिष्कृत होती है और आत्मा मोक्ष के पथ पर अग्रसर होती है आचार्य परंपरा से प्रेरित वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रवचन में आचार्य कुंदकुंद से लेकर आधुनिक मनोविज्ञान तक के परिप्रेक्ष्य में भावना योग को व्याख्यायित किया गया है उन्होंने साहू अशोक जैन का उदाहरण देते हुये उस ऐतिहासिक घटना उल्लेख किया गया। जहाँ उन्होंने सार्वजनिक अपमान को भी आत्मकल्याण का माध्यम बना लिया था, यही है भावना योग का वास्तविक स्वरूप। चार चरणों में आत्म-परिष्कार का पथ। शिविर में भाग लेने वाले साधकों को बताया गया कि भावना योग केवल भावना को अनुभव करने की साधना नहीं, बल्कि उसके नियोजन और शुद्धिकरण की सशक्त प्रक्रिया है। इसके चार प्रमुख चरण जिसमें -प्रार्थना आत्मा के उज्ज्वल संकल्प की उद्घोषणा दूसरा प्रतिक्रमण विगत की अशुद्धियों से क्षमायाचना तीसरा प्रत्याख्यान - भविष्य के लिए दृढ़ संकल्प तथा चौथा है सामायिक जो कि आत्मा में स्थित रहकर पूर्ण जागरूकता का अभ्यास कराता है। इस अवसर पर शिविर संचालकों ने किट के रूप में निर्देशिका और साधना डायरी का वितरण किया गया जिसके माध्यम से वह शिविर उपरांत भी भावना योग की निरंतर साधना कर सकेंगे। शिविर के आगामी सत्रों में ध्यान, आत्म-साक्षात्कार और जीवन-परिवर्तन की अनुभूत प्रक्रियाओं को अनुभूति स्तर पर अनुभव कराया जाएगा। भाव से बड़ा कोई योग नहीं, और आत्मा से सुंदर कोई साध्य नहीं। इसी भावध्वनि के साथ इस शिविर का वातावरण न केवल भावनाओं की शुद्धि की ओर प्रेरित कर रहा है, बल्कि आत्मा के परम लक्ष्य की दिशा में एक ठोस मार्गदर्शन भी प्रदान कर रहा है। अविनाश जैन विद्यावाणी / 07 जून, 2025