नई दिल्ली (ईएमएस)। अरावली पर्वतमाला जिसे पर्यावरणीय संतुलन और जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। अब मानव इतिहास के एक नए अध्याय को भी उजागर कर रही है। दिल्ली से कुछ ही किलोमीटर दूर दमदमा क्षेत्र में पुरापाषाण काल की दुर्लभ कलाकृतियां मिली है। जून में जारी हुई ग्रीनवॉल प्रोजेक्ट के तहत किए गए एक विस्तृत सर्वेक्षण में ऐसे पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं, जो बताते हैं कि एनसीआर में लाखों साल पहले भी इंसानों का बसेरा था। हरियाणा वन विभाग और गुरुजल फाउडेंशन के द्वारा ग्रीनवॉल प्रोजेक्ट को लागू करने से पहले अरावली के 420 एकड़ इलाके में पुरातत्व विरासत अनुसंधान और प्रशिक्षण अकादमी द्वारा सर्वे किया गया था। सर्वे के दौरान विशेषज्ञों को प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक इस क्षेत्र में मानव गतिविधियां लगातार जारी रहने के साक्ष्य मिले हैं। ये निष्कर्ष न केवल अरावली के महत्व को बढ़ाते हैं बल्कि भारत के मानव इतिहास को समझने के लिए नई राहें भी खोलते हैं। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार ग्रीनवॉल प्रोजेक्ट के तहत दमदमा-खेड़ला क्षेत्र में अरावली की 420 एकड़ भूमि पर किए गए अध्ययन के दौरान महत्वपूर्ण पुरातात्विक खोजें की गई हैं। इनमें सबसे प्रमुख दमदमा क्षेत्र से मिली पुरापाषाण कालीन कलाकृतियां हैं। इन कलाकृतियों में हाथ की कुल्हाड़ी, क्लीवर और खुरचने वाले औजार शामिल हैं। विशेषज्ञों का दावा है कि ये औजार लगभग छह से आठ लाख साल पुराने हो सकते हैं, जो इस बात का संकेत है कि मानव सभ्यता का विकास इस क्षेत्र में काफी पहले से हो रहा था। ये कलाकृतियां अधिकतर क्वार्जिटिक बलुआ पत्थर पर तैयार की गई हैं, जो उस समय के मानव की पत्थर के औजार बनाने की तकनीक और कौशल को दर्शाती हैं। इन औजारों की खोज से यह स्पष्ट होता है कि उस सुदूर अतीत में अरावली का यह हिस्सा आदिमानव के लिए एक महत्वपूर्ण निवास स्थान रहा होगा, जहां वे शिकार, भोजन संग्रह और अन्य दैनिक गतिविधियों के लिए इन औजारों का उपयोग करते थे। अजीत झा/ देवेन्द्र/नई दिल्ली/ईएमएस/09/जून/2025