पटना,(ईएमएस)। चिराग पासवान की पार्टी पार्टी एलजेपी-आर बिहार विधानसभा की सभी 243 सीटों पर लड़ेगी। इस ऐलान से साफ हो गया है कि चिराग ने अभी से संकेत दे दिए हैं कि वे सीट बंटवारे में कोई समझौता नहीं करेंगें। या करेंगे भी तो सीएम की कुर्सी उन्हे देना ही पडेगी। इससे समूचे एनडीए में खलबली मच गई है। इससे पहले वर्ष 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान का बगावती तेवर लोग देख चुके हैं। उन्हें एनडीए में जब मन माफिक सीटें नहीं मिलीं तो उन्होंने अलग चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। हालांकि एनडीए से अलग चुनाव लड़ने के बावजूद वे खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते रहे। इससे लोगों में यह संदेश गया कि भाजपा की शह पर नीतीश कुमार को कमजोर करने के लिए चिराग ऐसा कर रहे हैं। इस चर्चा को और भी बल तब मिला, जब चिराग ने चुन-चुन कर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिए। इससे नीतीश कुमार को इस रूप में नुकसान हुआ कि विधानसभा में जेडीयू विधायकों की संख्या घट कर 43 पर आ गई। तब जेडीयू ने चुनाव परिणाम की समीक्षा के दौरान पाया कि तकरीन 3 दर्जन सीटों पर चिराग ने नुकसान पहुंचाया था। नीतीश को चिराग की हरकतों से इतनी कोफ्त हुई कि उन्होंने जल्दी ही इसका बदला चुका लिया। लोजपा दो हिस्सों में बंट गई। चिराग के चाचा लोकसभा में 4 विधायकों के समर्थन से मंत्री बन गए। चिराग अपने धड़े के इकलौता सांसद रह गए। 134 सीटों पर उतारे थे अपने उम्मीदवार चिराग की सियासी गतिविधियों पर संदेह इसलिए हो रहा है कि पिछली बार भी उन्होंने एनडीए से पंगा लेकर 134 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए थे। इससे नीतीश कुमार को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। बड़ी मुश्किल से इसकी कसक नीतीश भूले हैं। लोकसभा चुनाव में एनडीए में चिराग की वापसी पर नीतीश ने कोई एतराज नहीं जताया। चिराग भी उनसे जब-तब मिलते रहे हैं। संबंधों को पुख्ता बनाने के लिए नीतीश ने चिराग के बहनोई को अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बना दिया। फिर भी चिराग के तेवर नरम नहीं दिख रहे। इस बार एनडीए के लिए सरकार बनाना प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। केंद्र में जगह मिलने के बाद भी विरोध करते रहे चिराग पीएम नरेंद्र मोदी की लगातार हो रही बिहार यात्राएं और बजटीय प्रवाधान के अलावा कई योजनाओं के लिए बड़ी राशि की घोषणा वे करते रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के बाद बिहार की सत्ता बचाए रखने को एनडीए ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है।नरेंद्र मोदी की सरकार ने जब तीसरी बार मंत्रिमंडल का गठन किया तो उसमें चिराग को भी जगह दी गई। 5 सांसदों के नेता चिराग पासवान को वही मंत्रालय दिया गया, जो उनके पिता रामविलास पासवान संभालते थे। नई सरकार के तीन महीने भी पूरे नहीं हुए थे कि चिराग ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। उनके अंदाज से तो लगता ही नहीं था कि वे एनडीए सरकार का हिस्सा हैं। सरकार के 3 फैसलों पर उन्होंने उसी सुर में विरोध जताया, जिस सुर में विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर था। इनमें एक मुद्दा था सुप्रीम कोर्ट का अनुसूचित जाति के लिए सब कोटा निर्धारण का फैसला। विपक्ष को तो सरकार के हर फैसले पर आपत्ति होती है, पर एनडीए के मंत्री रहते हुए चिराग ने इसका विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ उन्होंने अपील दायर करने की बात कही। इसी तरह सरकारी नौकरियों में लेटरल एंट्री का विरोध चिराग ने किया। वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक मोदी सरकार ने जब लोकसभा में पेश किया तो चिराग ने इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में भेजने की सलाह दी। केंद्र सरकार के तीनों फैसलों पर चिराग पासवान के स्टैंड से सवाल उठने लगे कि क्या फिर वे बगावती तेवर अपनाने वाले हैं? वीरेंद्र/ईएमएस/11जून2025